रांची: गुमला जिला अंतर्गत कामडारा थाना क्षेत्र के मुरगाकोना जंगल में मारे गये सात लोगों में से दो की शिनाख्त मदन साहू और करमपाल साहू के रूप में की गयी है. दोनों सगे भाई थे और ग्राम रक्षा दल के लिए काम करते थे. इसके अलावा पुलिस के स्पेशल पुलिस अफसर (एसपीओ) भी थे. हालांकि पुलिस अब सिर्फ मदन साहू को ही अपना एसपीओ मान रही है.
यह संगठन नक्सलियों व उग्रवादियों के खिलाफ पुलिस की मदद भी करता था. यही कारण है कि पुलिस की नजर में न तो यह संगठन वैध था और न ही अवैध. क्योंकि पुलिस ने इस संगठन का खुल कर समर्थन नहीं किया है. वहीं पुलिस यदि इसे अवैध मानती, तो इस संगठन पर सीधी कार्रवाई कर दी जाती. पुलिस की ओर से ग्राम रक्षा दल को मदद करने के उद्देश्य से कुछ सदस्यों को एसपीओ के रूप में नियुक्त किया गया है. पीएलएफआइ के उग्रवादियों ने इसी वजह से ग्राम रक्षा दल के तीन सदस्यों की हत्या की साजिश रची और बोलेरो गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें चार निदरेष लोग भी मारे गये. ज्ञात हो कि वाहन में कुल सात लोग सवार थे, जिसमें से तीन लोग ही ग्राम रक्षा दल के सदस्य थे. इनमें मदन साहू, करमपाल साहू और दोनों का मौसेरा भाई लाल मोहन साहू दल से जुड़ा था.
गुमला में पुलिसिंग का बुरा हाल
गुमला जिला की पुलिस पर किसी का नियंत्रण नहीं है. गुमला जिला की पुलिस ने कभी भी पीएलएफआइ के खिलाफ कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया. जिस इलाके में घटना हुई है, उस इलाके के डीएसपी एजरा बोदरा थे. एजरा बोदरा लंबे समय से पुलिसिंग छोड़ विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे हुए थे. जिस दिन कामडारा में घटना हुई, उसी दिन गृह विभाग ने एजरा बोदरा को वीआरएस देने की अधिसूचना जारी कर दी थी.
पूछताछ के लिए कर्रा से पांच लोग हिरासत में
खूंटी. गुमला जिले के कामडारा थाना क्षेत्र में सोमवार की शाम हुई सात लोगों की हत्या के बाद खूंटी पुलिस ने पीएलएफआइ उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है. पुलिस ने मंगलवार को कर्रा थाना क्षेत्र से एक चौकीदार समेत पांच लोगों को हिरासत में लिया है. हिरासत में लिये गये लोगों में बंधन उरांव, जबरा उरांव, धंगा उरांव और बहल प्रसाद शामिल हैं. हिरासत में लिये गये चौकीदार का नाम सुकरा है. सभी कर्रा थाना क्षेत्र के ही रहनेवाले हैं. खूंटी के एसपी सुदर्शन प्रसाद मंडल ने बताया कि सभी को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है.
15 दिन में नहीं चला एक भी बड़ा अभियान
रांची: नक्सलियों व उग्रवादियों के खिलाफ राज्य भर में चलाया जा रहा अभियान शिथिल पड़ गया है. इसकी दो वजह बतायी जा रही है. पहली वजह जिलों के एसपी का तबादला होना, जबकि दूसरी वजह जिलों की पुलिसिंग पर ऊपर का नियंत्रण नहीं होना है. गुमला की घटना के बाद पुलिस मुख्यालय के एक अधिकारी ने ऑफ द रिकार्ड कहा कि यह तो होना ही था. जब पुलिस व सीआरपीएफ के जवान सिर्फ अपने ठिकाने पर रुके हुए हैं. विधानसभा चुनाव सामने है, इसके बाद भी पिछले 15-20 दिनों में राज्य भर में नक्सलियों और उग्रवादियों के खिलाफ कोई भी बड़ा अभियान नहीं चलाया गया है. पीएलएफआइ के प्रभाव के इलाके चाईबासा, खूंटी, गुमला और सिमडेगा में भी कोई अभियान नहीं चला. इन इलाकों में अभियान का अचानक रोक दिया जाना पुलिस अफसरों के समझ से परे है.
खुफिया एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि गुमला जिला की पुलिस उस वक्त भी पीएलएफआइ के खिलाफ सक्रिय अभियान नहीं चला रही थी, जिस वक्त खूंटी, सिमडेगा व चाईबासा में अभियान चल रहा था. हाल में खूंटी और सिमडेगा एसपी के तबादले के बाद सभी जगहों पर अभियान को बंद कर दिया गया है. इधर, अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन झारखंड प्रदेश ने घटना की निंदा की है.
राज्य पुलिस व सीआरपीएफ के बीच सब ठीक नहीं
नक्सलियों और उग्रवादियों के खिलाफ अभियान में शिथिलता की एक बड़ी वजह राज्य पुलिस और सीआरपीएफ के बीच सब कुछ ठीक नहीं होना भी है. हालांकि इस मुद्दे पर दोनों फोर्स के अधिकारी खुले तौर पर तो कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन अंदर ही अंदर विवाद बढ़ रहा है. सूत्रों के मुताबिक हालत यह है कि नक्सलियों-उग्रवादियों के खिलाफ अभियान चलानेवाले दोनों फोर्स एक-दूसरे से सूचनाओं का आदान-प्रदान भी नहीं करते हैं. दोनों फोर्स के अधिकारी एक-दूसरे पर नक्सलियों-उग्रवादियों के खिलाफ मिली सफलता का क्रेडिट लेने का आरोप लगाते हैं. सीआरपीएफ के अधिकारी इसके लिए पुलिस मुख्यालय के एक शीर्ष अफसर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जबकि राज्य पुलिस के अफसरों का कहना है कि सीआरपीएफ अपना नंबर बढ़ाने के लिए सफलता का श्रेय लेना चाहती है.