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पुरानी बातें मुझसे मत कीजिए: गुलज़ार

मधु पाल मुंबई से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए आपको अपनी पुरानी फ़िल्मों में से कौन सी सबसे ज़्यादा पसंद है? पुराने दौर के गानों के बारे में क्या सोचते हैं? कौन सा गाना आपके दिल के सबसे ज़्यादा क़रीब है? अंगूर, आंधी, मौसम, माचिस जैसी क्लासिक फ़िल्में बनाने वाले और कई बेमिसाल गीत लिखने […]

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आपको अपनी पुरानी फ़िल्मों में से कौन सी सबसे ज़्यादा पसंद है? पुराने दौर के गानों के बारे में क्या सोचते हैं? कौन सा गाना आपके दिल के सबसे ज़्यादा क़रीब है?

अंगूर, आंधी, मौसम, माचिस जैसी क्लासिक फ़िल्में बनाने वाले और कई बेमिसाल गीत लिखने वाले गुलज़ार को ये सारे सवाल परेशान करते हैं.

वो कहते हैं, "मुझसे पुराने दौर की बातें मत करिए. आगे की बात करिए. युवा पीढ़ी की बातें करिए."

‘किल दिल’

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गुलज़ार मीडिया से बहुत कम मुख़ातिब होते हैं.

और गुलज़ार किसी फ़िल्म का प्रमोशन करें, यह तो लगभग नामुमकिन सा लगता था. भले ही वो किसी ना किसी रूप में उस फ़िल्म से जुड़े हुए ही क्यों ना हों.

इसलिए फ़िल्म ‘किल दिल’ के सिलसिले में जब उन्होंने फ़िल्म की टीम के आग्रह पर मीडिया से बात करना मंज़ूर किया तो ये सुखद आश्चर्य जैसा था.

यशराज बैनर की इस फ़िल्म में गुलज़ार ने गाने लिखे हैं. ‘स्वीटा’, ‘बोल बेलिया’, ‘किल दिल’ जैसे गाने उन्होंने लिखे.

नए गानों से परहेज़ नहीं

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नए गानों, उनके बोलों और धुनों पर बीते ज़माने के कई गायक, गीतकार और संगीतकार सवाल उठाते रहे हैं, लेकिन गुलज़ार को इन गानों से परहेज़ नहीं है.

वो कहते हैं, "हर दौर की अपनी मेलोडी होती है. अपना संगीत, अपनी रफ़्तार होती है. आज के संगीत की लय बड़ी ख़ूबसूरत है. रफ़्तार ज़रूर थोड़ी ज़्यादा है, लेकिन पुरानी रफ़्तार से चलूंगा तो चल नहीं पाऊंगा इस दौर में."

‘किल दिल’ के निर्देशक शाद अली हैं, जिनकी हिट फ़िल्म ‘बंटी और बबली’ के गीत भी गुलज़ार ने लिखे थे.

संगीतकार तिकड़ी शंकर-अहसान-लॉय के साथ जुगलबंदी उन्हें बहुत पसंद है.

‘ख़ुशनसीब हूं मैं’

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गुलज़ार को इस साल दादा साहब फाल्के सम्मान दिया गया.

युवाओं के साथ काम करने को वो अपनी ख़ुशनसीबी मानते हैं.

गुलज़ार कहते हैं, "देखिए, बुज़ुर्गों का हाथ बच्चे ना पकड़ें तो वो कमरे में ही बंद रहते हैं. नए फ़िल्मकार मुझे मौक़ा देते हैं. मैं लकी हूं."

अपने लिखे गानों के हिट होने में वो धुन का बड़ा योगदान मानते हैं.

गुलज़ार कहते हैं, "हिट हमेशा ट्यून होती है. वरना कई शब्द तो समझ में ही नहीं आते. इस इंडस्ट्री में सिर्फ़ दो ही कवि हुए हैं जिनके शब्दों पर धुन बनती थी. कवि प्रदीप और साहिर लुधियानवी."

अस्सी साल के हो चुके गुलज़ार को काम करते रहना बहुत पसंद है.

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वो आख़िर में कहते हैं, "मैं तो ढीठ हूं. जब तक गिर नहीं पडूंगा तब तक चलता ही रहूंगा."

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