महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की विजय के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, "मोदी लहर आज भी सुनामी की तरह सब को ध्वस्त करने में सक्षम है."
हरियाणा में उनकी बात सच साबित होती है लेकिन अगर महाराष्ट्र में मोदी लहर होती तो भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत क्यों नहीं मिला?
शिवसेना ने गठबंधन तोड़ने के बाद भाजपा का कड़ा विरोध किया लेकिन इसके बावजूद इसे पिछले चुनाव से कहीं अधिक सीटें मिलीं.
ज़ुबैर अहमद का विश्लेषण
महाराष्ट्र के नतीजों से ऐसा लगता है कि न तो मोदी लहर थी और न ही सुनामी जैसी कोई बात.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र में बीजेपी के स्टार चुनाव प्रचारक थे.
उन्होंने राज्य भर में 27 रैलियों को सम्बोधित किया. पार्टी केवल मोदी के नाम पर चुनाव लड़ी थी.
मोदी लहर
अगर मोदी लहर होती तो पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल जाना चाहिए था.
बीजेपी के एक प्रवक्ता ने मुझ से कहा था कि उनकी पार्टी उम्मीद के मुताबिक 145 सीटों से अधिक सीटें लाने में सफल होगी.
बीजेपी के अनेक नेता ये सुनने के लिए तैयार ही नहीं थे कि उनकी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सकेगा क्योंकि वो भी अंदर ही अंदर मोदी के चमत्कार पर भरोसा कर रहे थे.
अगर मोदी लहर होती तो चुनाव के समय मोदी के खिलाफ बोलने वालों को शिकस्त का मुंह देखना पड़ता.
लेकिन शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे बार बार नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोले. इसके बावजूद शिवसेना को पिछले चुनाव से अधिक सीटें मिलीं.
बीजेपी की जीत
कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को मोदी ध्वस्त करने में कामयाब नहीं हो सके.
हाँ, ये स्वीकार करना होगा कि नरेंद्र मोदी के कारण बीजेपी को काफी सीटें मिली हैं. मोदी की लहर नहीं थी लेकिन बीजेपी की इस जीत में उनका हाथ ज़रूर था.
उनकी प्रशंसा करने वालों की कमी नहीं थी. लेकिन विधानसभा चुनावों में मई के आम चुनावों वाली बात नहीं थी. सच तो ये है कि उनके खिलाफ बोलने वालों की भी कमी नहीं थी.
मैंने चुनाव के दौरान महाराष्ट्र भर में ये महसूस किया कि लोग मोदी सरकार से बहुत ज़्यादा खुश नहीं हैं.
‘गुजरात के प्रधानमंत्री’
पुणे के नज़दीक के एक गाँव में एक किसान की लड़की ने मुझ से दो टूक शब्दों में कहा कि मोदी ने किसानों के लिए अब तक कुछ नहीं किया है. इसलिए उनका वोट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को जाएगा.
कुछ लोगों ने कहा कि मोदी बोलते अधिक हैं और शब्दों के राजा हैं लेकिन काम कम करते हैं. कुछ नेताओं ने मोदी को एक अच्छा ‘अभिनेता’ बताया.
और कुछ ने तंज भरे अंदाज़ में कहा कि वो केवल ‘गुजरात के प्रधानमंत्री’ हैं.
मोदी विरोधी बातें जितनी मैंने महाराष्ट्र में सुनीं, उतनी किसी और राज्य में अब तक नहीं सुनी थीं.
बदलाव के वोट
हाँ, ये ज़रूर है कि मोदी से भी अधिक आलोचना मैंने कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के नेताओं की सुनी.
कई ने कहा कि कांग्रेस-एनसीपी सरकार के 15 साल के लम्बे काल में भ्रष्टाचार, घोटाले और किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दे ख़बरों में छाए रहे.
लोगों का मत इस मिली-जुली सरकार के खिलाफ भी था. आम तौर से लोगों ने मुझे बताया कि वो बदलाव चाहते हैं और वो बदलाव के लिए वोट देंगे.
बदलाव की इस चाह के बावजूद सभी मुख्य पार्टियों के अपने अपने किले मज़बूत रहे.
मोदी इन किलों को ध्वस्त करने में कामयाब नहीं रहे और इसी लिए बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला.
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