भारत में ओपेरा को लोग सिर्फ़ चिल्लाना समझते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है.
ये कहना है दिल्ली की सुनंदा राव का जो भारत के गिने चुने ओपेरा गायकों में से एक हैं.
तो फिर भारत जैसे देश में जहां इस विधा के ज़्यादा क़द्रदान नहीं है, सुनंदा ने ओपेरा गायक बनने की क्यों ठानी?
बीबीसी स्टूडियो तशरीफ़ लाईं सुनंदा ने कहा, "ओपेरा मेरा जुनून है. पैसे कमाने का ज़रिया नहीं. मैं भारत में ओपेरा के प्रति लोगों की राय बदलना चाहती हूं."
क्या होता है ओपेरा?
सुनंदा ने बताया कि ये गायकी सिर्फ गले से नहीं बल्कि शरीर से भी बयां करनी होती है. .
ये सांस रोकने और लेने की तकनीक से भी संचालित होता हैं. इसमें आवाज़ के साथ शरीर का सामंजस्य होना बड़ा ज़रूरी है.
जैसे गायकी की दूसरी विधाओं में वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल बेहद अहम होता है लेकिन ओपेरा गायकी इस सिद्धांत पर आधारित है कि इंसान की आवाज़ ही अपने आप में एक संगीत है और इसे वाद्य यंत्रों के सहारे की ज़रूरत नहीं.
सुनंदा ने बताया, "ओपेरा गायक माइक का इस्तेमाल नहीं करते. इसलिए हमारे लिए ज़रूरी हो जाता है कि अपनी आवाज़ को ऐसे साधें कि हॉल में आख़िर की कतार में बैठे दर्शक तक भी आवाज़ पहुंचे."
कई देशों में शो
सुनंदा भारत के अलावा जर्मनी, इटली और कई यूरोपीय देशों में भी परफ़ॉर्म कर चुकी हैं.
लेकिन जैसे दूसरे देशों में उन्हें बेहतरीन रिस्पॉन्स मिलता है वैसा भारत में नहीं मिलता.
सुनंदा कहती हैं, "भारत में हम ज़्यादातर प्राइवेट शो करते हैं जिनमें बहुत गिने-चुने लोग होते हैं. क्योंकि ओपेरा के सार्वजनिक शो यहां कामयाब नहीं होते."
सुनंदा के पति एक जर्मन नागरिक हैं. वो साल में आधा समय दिल्ली में और आधा जर्मनी में बिताती हैं.
ओपेरा की शिक्षा
उन्होंने 14 साल की उम्र से ओपेरा सीखना शुरू कर दिया था. दिल्ली स्कूल ऑफ़ म्यूजिक उनकी पहली पाठशाला थी.
इसके बाद उन्होंने जर्मनी के मशहूर संगीत स्कूल कोलोन विश्वविद्यालय से ओपेरा की शिक्षा प्राप्त की.
फ़िलहाल दिल्ली में वो एक संगीत स्कूल चलाती हैं जहां 25 छात्रों को ओपेरा की ट्रेनिंग दे रही हैं.
सुनंदा भारत में ओपेरा के वर्तमान से भले ही संतुष्ट ना हों लेकिन वो यहां इसका भविष्य सुनहरा देखती हैं.
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