ब्रितानी सांसदों ने फ़लस्तीन को राष्ट्र का दर्जा देने के पक्ष में वोट डाला है.
ब्रिटेन की संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमंस के आधे से कम सांसदों ने मतदान में हिस्सा लिया. ये महज़ सांकेतिक मतदान था और इसके नतीजे से फ़लस्तीन को मान्यता देने के बारे में ब्रिटेन की मौजूदा नीति में फ़िलहाल बदलाव आने की संभावना नहीं है.
लेबर पार्टी के सांसद ग्राहम मॉरिस द्वारा रखे गए प्रस्ताव पर सरकारी मंत्रियों ने वोट नहीं किया.
साल 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ़लस्तीनियों का दर्जा बढ़ाकर उन्हें "ग़ैर-सदस्य पर्यवेक्षक राष्ट्र" का दर्जा दिया गया था.
उस वक़्त महासभा में 138 देशों ने फ़लस्तीनियों के पक्ष और नौ ने उनके ख़िलाफ़ वोट दिया था. ब्रिटेन समेत 41 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था.
लेबर सांसद ग्राहम मॉरिस का कहना था कि फ़लस्तीन को राष्ट्र के तौर पर मान्यता देना शांति की ओर ”सांकेतिक रूप से अहम” क़दम है. उन्होंने ये भी कहा कि फ़िलहाल इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच रिश्तों में गतिरोध है.
‘नतीजा मानने को बाध्य नहीं’
ब्रिटेन का कहना है कि वो अपने चुने हुए समय पर फ़लस्तीन राज्य को मान्यता देने का अधिकार रखता है.
प्रस्ताव पर बहस से पहले प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के प्रवक्ता ने कहा था, "सरकार का रुख़ साफ़ है और नहीं बदला है. सरकार दो राष्ट्र समाधान के पक्ष में है और इसके लिए हम अपने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों-इसराइल और फ़लस्तीनी प्राधिकरण- के साथ काम करना जारी रखेंगे."
मध्य पूर्व मामलों के मंत्री टोबियास एलवुड का कहना था कि सरकार, मतदान के नतीजे के मुताबिक़ क़दम उठाने को बाध्य नहीं है.
इसराइल का कहना है कि फ़लस्तीन को मान्यता देना जल्दबाज़ी होगी और इससे दोनों पक्षों के बीच शांति समझौते की कोशिशों पर असर पड़ेगा.
वहीं फ़लस्तीनी अधिकारियों का कहना है कि शांति वार्ता विफल होने की वजह से उसे कई क़दम उठाने पड़े हैं जिनमें और ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल करना है.
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