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अब भारत कर सकता है तूफ़ान का सामना

सलमान रावी बीबीसी संवाददाता, दिल्ली भारत में पिछले एक साल के दौरान आए दो भीषण विनाशकारी तूफानों में समय रहते उठाए गए क़दमों की वजह से जान-माल का नुकसान काफी कम कर लिया गया. इसका मुख्य कारण है तूफ़ान की पूर्व चेतावनी. इसका श्रेय मौसम विभाग के वैज्ञानिकों को जाता है, जिन्होंने समय रहते ही […]

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भारत में पिछले एक साल के दौरान आए दो भीषण विनाशकारी तूफानों में समय रहते उठाए गए क़दमों की वजह से जान-माल का नुकसान काफी कम कर लिया गया.

इसका मुख्य कारण है तूफ़ान की पूर्व चेतावनी. इसका श्रेय मौसम विभाग के वैज्ञानिकों को जाता है, जिन्होंने समय रहते ही तूफ़ान के बारे में जानकारी जुटाई और लोगों को आगाह भी कर दिया.

तूफ़ान की उत्पत्ति से लेकर उसके रास्ते की पहचान करना अब भारत में मौसम वैज्ञानिकों के लिए आसान होता जा रहा है.

इसका कारण है तूफ़ान की पूर्व चेतावनी की तकनीक का विकास. 1999 में जब ऐसा ही भीषण तूफ़ान ओडिशा के तट से टकराया था तो इसमें कई जानें गई थीं क्योंकि एहतियाती क़दम नहीं उठाए जा सके थे.

पढ़िए सलमान रावी की पूरी रिपोर्ट

हुदहुद हो या पायलिन, तूफ़ान की पूर्व चेतावनी ने इतना मौक़ा ज़रूर दिया कि प्रशासनिक अमले के लोग समय रहते ही एहतियाती क़दम उठा पाने में कामयाब रहे और नतीजा हुआ कि इतने भीषण तूफ़ानों के बावजूद जान का नुकसान काफ़ी कम रहा.

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इसका श्रेय मौसम वैज्ञानिकों को दिया जा रहा है जिन्होंने दोनों ही भीषण तूफानों का पता लगाने में तब कामयाबी हासिल कर ली जब उनका बनना ही शुरू हुआ था.

फिर वैज्ञानिकों ने तूफ़ान के रास्ते का भी पता लगा लिया और समय रहते ही संवेदनशील इलाक़ों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में काफ़ी मदद मिल पाई.

मौसम विभाग के अतिरिक्त निदेशक लक्ष्मण सिंह राठौर मानते हैं कि पिछले कुछ सालों के दौरान भारत ने तूफ़ान की पूर्व चेतावनी की तकनीक काफ़ी विकसित कर ली है.

वो कहते हैं, "आंकड़ों को सम्मिलित करने की तकनीक विकसित हुई है. संचार की तकनीक भी विकसित हुई है. तूफ़ान की उत्पत्ति की पहचान और उसके मार्ग की पहचान करने की तकनीक में भी हमने काफी तरक़्क़ी हासिल की है."

कामयाबी

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राठौर का कहना है कि पूर्व चेतावनी के साथ यह पता लगा लेना कि कौन-कौन से इलाक़े ज़्यादा प्रभावित होंगे और तूफ़ान की तीव्रता कितनी होगी भी मौसम के और ख़ास तौर पर तूफ़ान की चेतावनी देने में काफी मददगार साबित हो रही है.

पिछले एक साल में दो भीषण तूफ़ानों का सामना तो बख़ूबी कर लिया गया मगर इसी दौरान पहाड़ी इलाक़ों में बारिश ने जमकर तबाही मचाई जिससे जान और माल का भी काफ़ी नुकसान हुआ है.

इसकी वजह थी कि समय रहते बारिश की तीव्रता की पूर्व चेतावनी नहीं दी जा सकी. राष्ट्रीय आपदा राहत बल के अनिल शेखावत कहते है कि बारिश होने की चेतावनी तो दी जाती है मगर उसकी तीव्रता की पूर्वचेतावनी एक बड़ी चुनौती है.

शेखावत कहते हैं, "पिछले एक साल के दौरान दो बड़े तूफ़ानों का हमने किया. माल का तो नुकसान हुआ क्योंकि तूफ़ान काफी भीषण थे. मगर वक़्त रहते किए गए इंतज़ाम की वजह से हम जानें बचाने में कामयाब रहे."

तीव्रता का पूर्वानुमान

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पायलिन और हुद-हुद तूफानों के आने से काफी पहले ही मौसम विभाग ने इनकी तीव्रता पहचान ली और इसका पता भी लगा लिया कि यह तूफ़ान किन किन इलाक़ों को ज़्यादा प्रभावित कर सकते हैं. इलाक़ों में आपदा रहत विभाग की टीमों को पहले ही तैनात कर दिया गया.

हल्की बारिश की तीव्रता की पूर्व चेतावनी पर मौसम वैज्ञानिक लक्ष्मण सिंह राठौर स्वीकार करते हैं कि बारिश की तीव्रता का पूर्वानुमान करने में अभी भी विज्ञान पीछे है. भारत ही नहीं, बारिश की तीव्रता की पूर्व चेतावनी पूरे विश्व के मौसम वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है.

पायलिन और हुदहुद से निपटने के लिए किये गए एहतियाती क़दमों के कारण राहत और आपदा प्रबंधन की टीमें पहले से ही हरकत में आ गई और दोनों ही तूफ़ान उतनी तबाही नहीं मचा पाये जितना की 1999 में मचाई थी.

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