रक्तदान को ‘महादान’ कहा जाता है, क्योंकि यह एक ऐसा दान है जिससे किसी व्यक्ति को जीवनदान मिलता है, लेकिन रक्तदान के बारे में आज भी हमारे देश में इतनी भ्रांतियां हैं कि बहुत से लोग अभी भी रक्तदान घबराते हैं और नतीजा होता है कि खून न मिल पाने की वजह से कई मरीजों की मौत तक हो जाती है.
गुड़गांव स्थित मेदान्ता अस्पताल के हीमेटोलॉजी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ राजीव पारेख ने बताया, ‘हमारा देश विज्ञान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल कर चुका है लेकिन आज भी रक्तदान को लेकर हमारे यहां सकारात्मक सोच नहीं है. रक्त के बारे में विचार तब ही आता है, जब हमारे किसी करीबी को इसकी जरुरत पड़ती है. मगर जरुरत पूरी होते ही हम रक्तदान के बारे में भूल जाते हैं.
’ उन्होंने कहा ‘दुर्घटना में गंभीर रुप से घायलों को रक्त की जरुरत पड़ती है. थैलेसेमिया ऐसी बीमारी है, जिसमें नियमित रुप से खून की जरुरत होती है. कई बड़े ऑपरेशन भी ऐसे होते हैं, जिनमें खून की जरुरत पड़ती है. इसके अलावा सेप्टीसेमिया के मरीजों को खून देना होता है. जरा सोचिये, आखिर इतना रक्त कहां से आएगा. इसकी कोई फैक्टरी नहीं होती और यह जागरुक व्यक्तियों द्वारा किया गया महादान है.
’ गाजियाबाद स्थित कोलंबिया एशिया अस्पताल के इंटर्नल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ दीपक वर्मा ने कहा ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार, किसी भी देश की रक्त संबंधी जरुरत पूरी करने के लिए एक फीसदी आबादी का रक्तदान करना जरुरी है. लेकिन इस बारे में जागरुकता का अभाव है और जो रक्त मिलता है वह जरुरत के हिसाब से नहीं के बराबर होता है.’ महाराष्ट्र के चालीसगांव निवासी दीपक शुक्ला अब तक 114 बार रक्तदान कर चुके हैं. स्थानीय कॉलेज में प्राध्यापक दीपक मानते हैं, ‘रक्त के अभाव में किसी की जान नहीं जानी चाहिए और हर व्यक्ति को रक्तदान जरुर करना चाहिए.
शुक्ला ने फोन पर कहा ‘मैंने आखिरी बार 21 अप्रैल को रक्तदान किया और यह सोच तक मुङो अत्यंत संतुष्टि देती है कि मेरे रक्तदान करने से कोई मौत के मुंह में जाने से बच गया. रक्तदान से न तो कोई कमजोरी आती है और न ही किसी तरह की समस्या होती है. मैं चाहता हूं कि मेरा रक्तदान का सिलसिला आगे भी जारी रहे.’
डॉ दीपक वर्मा ने कहा ‘एक बार में व्यक्ति 350 से 450 मि ली रक्तदान करता है और इसकी भरपाई केवल 24 घंटे के अंदर हो जाती है. 16 साल से 65 साल की उम्र का, न्यूनतम 50 किग्रा वजन वाला ऐसा कोई भी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है, जिसके शरीर में हीमोग्लोबिन की न्यूनतम मात्र 12.5 ग्राम हो. हैपेटाइटिस और एचआईवी संक्रमित व्यक्ति रक्तदान नहीं कर सकते. मधुमेह के वह मरीज भी रक्तदान नहीं कर सकते जो इन्सुलिन लेते हैं. लेकिन अन्य के लिए कोई बाधा नहीं है.’
डॉ राजीव पारेख ने कहा ‘रक्त मानव शरीर में प्रवाहित होने वाला ऐसा अनमोल संसाधन है जो जीवनदान देता है. कई बाह्य कारणों के कारण रक्त की जरुरत पड़ती है. जरा सोचिये, अगर हमारे घर में किसी को थैलेसेमिया, हीमोफीलिया हो या किसी का कैंसर, आघात या अंग प्रत्यारोपण के लिए ऑपरेशन होना है तो हम खून किस तरह जुटाते हैं. घर का कोई भी सदस्य रक्त दे सकता है. इसके लिए बाहर से रक्तदाता खोजे जाते हैं. यदि हर व्यक्ति एक साल में कम से कम तीन और अधिकतम चार बार रक्तदान करे तो खून की जरुरत बहुत हद तक पूरी हो सकती है.