जमशेदपुर : कैंसर जैसी घातक बीमारी को मात देकर जिंदगी की जंग जीत चुकी है बाराद्वारी की नीलम चंद्रा आज कैंसर मरीजों के जीवन में प्रकाश भरने का काम कर रही हैं. शहर में जन्मी व पली-बढ़ी नीलम वर्तमान में परिवार के साथ जबलपुर में रहती हैं. 29 सितंबर को वह मायके जमशेदपुर आयीं. यहां आने के पीछे उनका उद्देश्य लोगों को इस बीमारी और इसके सही इलाज की जानकारी देना है.
थी जीने की जिद
जब डॉक्टर ने नीलम को ब्रेस्ट कैंसर के स्टेज टू का मरीज बताया तो वह हताश हो गयी थी लेकिन फैमिली मेंबर्स व फेंड्स ने हौसला दिया. इलाज शुरू हुआ. कई टेस्ट हुए जो काफी पीड़ादायक थे. पांच सर्कल में उसे किमो थेरेपी दी गयी. जिसके बाद सर्जरी हुई. प्रभावित जगह पर 72 स्टीच लगाये गये. 15 दिनों के बाद यह प्रक्रिया फिर से दोहरायी गयी. फिर 12 सर्कल में किमो थेरेपी व 31 रेडिएशन दिये गये. अब हर महीने वह फॉलो अप के लिए जाती हैं. सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास के कारण नीलम का इलाज सफल रहा. डॉक्टरों ने उसके हिम्मत की दाद दी.
* बनी काउंसलर
वह कहती हैं मेरा ट्रीटमेंट मुंबई के टाटा कैंसर अस्पताल में हुआ. इलाज के दौरान वह डॉक्टरों से कैंसर से संबंधित हर तरह की जानकारी लेती रही. वह कहती हैं कि बीमारी से संबंधित अधिक-से-अधिक जानकारी मरीज को बीमारी से लड़ने का हौसला देती है. वह कहती हैं कि मेरे हौसले देखकर डॉक्टरों ने मुझे काउंसलर बनने का सुझाव दिया. ठीक हो जाने के बाद डॉक्टरों के सुझाव पर सप्ताह में दो दिन पति के साथ अस्पताल जाना शुरू किया. कई मरीज की काउंसिलिंग की, जो जिंदगी से हार चुके थे. वह मरीज को खुद का उदाहरण देती हैं.
* मुझे जीना है यही है मेडिसिन
नीलम कहती हैं कि घर के किसी सदस्य को कैंसर हो जाने पर पूरा परिवार कैंसर का मरीज हो जाता है. ऐसे में इलाज के साथ-साथ मरीज में आत्मविश्वास जगाना बहुत जरूरी है. जब नीलम स्वस्थ हो गयीं तो एक मैनेजमेंट कंपनी द्वारा उन्हें लिखने का मौका दिया गया. उन्होंने कैंसर के बारे में अपने अनुभव, डॉक्टरों से मिली जानकारी, अवधारनाएं आदि का उल्लेख करते हुए लिखना शुरू किया. इस किताब का नाम है बैटलिंग कैंसर विद पॉजेटिव एटीट्यूट (सकारात्मक सोच के साथ कैंसर को दें मात). छह जुलाई को किताब का लोकार्पण जबलपुर में हुआ. यह किताब उन पीडि़त महिलाओं को जीने की ललक और कैंसर से लड़ने की प्रेरणा देगी जो नीलम की तरह ब्रेस्ट कैंसर से पीडि़त हैं. वह कहती हैं कि जिस दिन मरीज ठान ले कि उसे जीना है उसी दिन कैंसर जैसी बीमारी भी नतमस्तक हो जायेगी.