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देशभर के किशोरों की कल्पनाशीलता से उपजे कुछ फ्यूचर प्रोजेक्ट्स

दिल्ली के प्रगति मैदान में 6 से 8 अक्तूबर तक चले चौथे राष्ट्रीय प्रदर्शनी और प्रोजेक्ट प्रतियोगिता में शामिल हुए 900 छात्रों ने अपनी कल्पना की उड़ान से दर्शकों को हैरान कर दिया. देशभर से चुने गये इन छात्रों ने अपने अनूठे प्रोजेक्ट्स और प्रयोगों के जरिये साबित किया कि वे अपनी कल्पनाशक्ति से देश […]

दिल्ली के प्रगति मैदान में 6 से 8 अक्तूबर तक चले चौथे राष्ट्रीय प्रदर्शनी और प्रोजेक्ट प्रतियोगिता में शामिल हुए 900 छात्रों ने अपनी कल्पना की उड़ान से दर्शकों को हैरान कर दिया. देशभर से चुने गये इन छात्रों ने अपने अनूठे प्रोजेक्ट्स और प्रयोगों के जरिये साबित किया कि वे अपनी कल्पनाशक्ति से देश का भविष्य संवारने की क्षमता रखते हैं.
इस प्रतियोगिता का आयोजन केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रलय ने किया था. मंत्रलय के सामने अब इन युवा वैज्ञानिकों के सपनों को संवारने की चुनौती है. जरूरत इस बात की है कि इन छात्रों को उचित मार्गदर्शन और मंच मिले, जिससे वे अपने प्रोजेक्ट्स को धरातल पर उतार सकें और वैज्ञानिक बनने के अपने सपनों को पंख लगा सकें. प्रतियोगिता में शामिल कुछ चुनिंदा प्रोजेक्ट्स से आपको रूबरू करा रहा है आज का नॉलेज..
ऑटोमेटिक रेलवे क्रॉसिंग गेट
इस तकनीक की मदद से ट्रेन आने के समय किसी रेलवे फाटक को बिना कर्मचारी के बंद किया जा सकता है. इसके लिए फाटक से एक निश्चित दूरी पर इस सिस्टम को इंस्टॉल किया जायेगा और ट्रेन के वहां से गुजरने से पहले इसका स्विच चालू हो जायेगा, जिससे फाटक बंद हो जायेगा. ट्रेन के गुजरने के बाद दूसरा स्विच चालू होगा, जो फाटक को खोल देगा. इससे रेलवे का खर्च कम होने के साथ मानव-रहित रेलवे क्रॉसिंग पर दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है. सेंसर आधारित मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के नौवीं कक्षा के छात्र गोविंद चौहान ने इस तकनीक को विकसित किया है.
राख से पैदा होगी बिजली
इस तकनीक के तहत करीब एक किलो राख, उसका एक-चौथाई हिस्सा पानी, पुराने सेलों से निकाली गयी कार्बन की रॉड और जस्ते की प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें कार्बन इलेक्ट्रॉड और जस्ते की प्लेट को पानी में राख का घोल बना कर तैयार करके इलेक्ट्रॉडों को मिश्रण में डालने पर गैल्वेनोमीटर तथा वोल्टमीटर और आमीटर में धारा का विक्षेप प्राप्त होता है. यानी विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है. और इसके परिपथ में बल्ब जोड़ दिया जाये, तो वह जलने लगता है. मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के दसवीं के छात्र राजकुमार सिंह कुशवाह ने इस तकनीक को विकसित किया है.
मूक बधिर भी लेंगे संगीत का आनंद
तमिलनाडु के सातवीं कक्षा के छात्र एन सुरेश कुमार द्वारा साउंड प्रॉसेसर ड्राइवर व वाइब्रेटिंग साउंड ब्रिज की मदद से तैयार किया गया यंत्र मूक बधिर लोगों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है. भौतिकी के सिद्धांत के मुताबिक, ध्वनि तरंगें (साउंड वेव) द्रवीय तथा गैसीय माध्यमों के बजाय ठोस माध्यमों में तेज गति से चलती हैं. मॉडल बनाने वाले छात्र एन सुरेश के मुताबिक, यह मशीन भी इन्हीं सिद्धांतों पर कार्य करेगी.
इस मशीन को तैयार करने के लिए इलेक्ट्रिक वायर, स्विच बॉक्स, इलेक्ट्रिक सप्लाई, साउंड जेनरेटर, माइक (सेल फोन आदि भी), साउंड प्रोसेसर ड्राइवर, वाइब्रेंट साउंड ब्रिज और वाइब्रेशन सेंसर की जरूरत होगी.
कैसे काम करेगी मशीन : इस मशीन के मुख्य रूप से तीन अहम हिस्से होते हैं. पहला हिस्सा वह है जहां से ध्वनि उत्पन्न की जाती है यानी साउंड जेनरेटर. दूसरा हिस्सा जहां से ध्वनि तरंगे प्रवाहित होती है यानी वाइब्रेंट साउंड ब्रिज और तीसरा हिस्सा जहां से ध्वनि को महसूस किया जाता है यानी वाइब्रेशन सेंसर.
साउंड जेनरेटर के रूप में माइक, सेल फोन, कंप्यूटर या अन्य माध्यम (जो ध्वनि की तीव्रता को बढ़ा सके) को साउंड जेनरेटर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. साउंड जेनरेटर से निकली ध्वनि वाइब्रेंट साउंड ब्रिज के माध्यम से कंपन में तब्दील हो जाती हैं. इस प्रकार उत्पन्न हुई ध्वनि तरंगें वाइब्रेशन सेंसर के द्वारा श्रोता तक पहुंचती हैं. सेंसर शरीर के ठोस हिस्से-जैसे दांत, हेड बोन्स या नसों पर लगाया जा सकता है. इस प्रकार की कंपित तरंगें मस्तिष्क के कठोर हिस्से व कानों के बीच से गुजरती हैं. अंत में ये तरंगें मस्तिष्क के भीतरी हिस्से में पहुंचती हैं, जहां पर यह ध्वनि में परिवर्तित होकर मस्तिष्क में सुनाई देने वाले हिस्से में पहुंच जाती हैं. इस उपकरण का इस्तेमाल मूकबधिर छात्रों के लिए किया जा सकता है.
बिना बिजली के चलनेवाला फ्रिज
ग्रामीण क्षेत्रों में फलों, सब्जियों, दूध आदि खाद्य पदार्थो को बचाने के लिए वैशाली जिले के बिदुपुर के आठवीं के छात्र रिषभ कुमार ने एक ऐसा फ्रिज विकसित किया है, जो बिना बिजली के चलता है. इसके लिए फ्रिज के आकार के एक पात्र बनाया गया है, जिसके तीनों ओर दो इंच की दूरी पर जाला लगाया गया है. जाल और पात्र के बीच लकड़ी का कोयला भरते हुए कोयले के बीचोबीच कच्च धागा लगाया गया, जिसका ऊपरी सिरा पानी से भर बर्तन में रख दिया, ताकि लगातार कोयले तक पानी का रिसाव होता रहे. चूंकि कोयले में अनेक छिद्र होते हैं, इससे कारण वह पानी को अवशोषित करता है और आस-पास की गरमी से वाष्प में बदल जाता है और उस स्थान को ठंडा करता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि पर्यावरण अनुकूल होने के साथ ही इससे सीएफसी यानी क्लोरोफ्लोरो कार्बन पैदा नहीं होता.
ट्रेन से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन
ओड़िशा के आठवीं के छात्र अंशुमान महाराज ने चलती ट्रेन से विद्युत ऊर्जा पैदा करने की तकनीक विकसित की है. इसके लिए प्रोपेलर, घूमने वाली रॉड, डायनामो, बैटरी या इनवर्टर, इलेक्ट्रिक पंखा, एलक्ष्डी लाइट और घूमते हुए पहियों की जरूरत होगी. ट्रेन की छत पर प्रोपेलर को ऐसे रखा जायेगा, जिससे घूमने वाली रॉड को उससे जोड़ा जा सके. तेज हवा से जब पंखा घूमेगा तो रॉड भी घूमेगी और डायनामो काम करेगा. इससे बैटरी को चार्ज करते हुए विद्युत ऊर्जा हासिल की जा सकती है. यह सिस्टम प्रोपेलर व डायनामो से जुड़े सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है. तेज हवा की काइनेटिक एनर्जी से प्रोपेलर घूमता है और विंड एनर्जी को मैकेनिकल एनर्जी में तब्दील करता है. फिर डायनामो मैकेनिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिकल एनर्जी में तब्दील करता है.
वाहन चलने पर जलेंगी स्ट्रीट लाइटें
पंजाब के छात्र आयुष खन्ना का सोलर रोड मॉडल भविष्य के लिए अच्छी तकनीक साबित हो सकता है. सौर ऊर्जा के सिद्धांत से बनने वाली सोलर सड़कों पर रात में वाहन चलने पर स्ट्रीट लाइटें स्वयं जल जायेंगी. ईंधन की बचत के साथ बिजली उत्पादन के लिए ऊर्जा का नया स्नेत भी बनेगा. इस रोड में सोलर सेल के माध्यम से ऊर्जा संरक्षित की जायेगी. लकड़ी, एलक्ष्डी, पेंट, बैटरी और तारों के माध्यम से यह सड़क तीन परतों में बनेगी.
पहली परत रोड सरफेस लेयर ग्लास से निर्मित होगी, जिसके माध्यम से सूरज की किरणों सोलर सेल तक पहुंचेंगी. दूसरी परत इलेक्ट्रॉनिक्स लेयर होगी जो सोलर सेल, माइक्रोप्रोसेसर, पीजोक्रिस्टल, इंडक्शन सेल, हीटिंग एलिमेंट और एलक्ष्डी से बनेंगी. तीसरी परत बेस प्लेट लेयर होगी, जहां से संरक्षित की गयी ऊर्जा को सोलर रोड से अन्य माध्यमों को सप्लाई की जायेगी.
क्या होंगे फायदे : यह ऊर्जा घरों आदि में भी उपयोग में लायी जा सकेगी.
– सोलर रोड से हाइ स्पीड इंटरनेट, टेलीफोन आदि की सुविधाएं आसान और सर्वसुलभ बनायी जा सकती हैं.
– सोलर रोड पर गाड़ियों के चलने के दौरान उसकी मौजूदा स्थिति के बारे में सूचना कंट्रोल रूम को मिल जायेगी.
– सड़क के नीचे लगे माइक्रोप्रोसेसर सेंसर से कंट्रोल रूम को सूचनाएं मिलेंगी, जिससे सड़क पर होने वाली दुर्घटनाएं रुकेंगी.
स्ट्रीट लाइट में बिजली की बचत
उद्देश्य : इस प्रोजेक्ट के द्वारा एलडीआर के इस्तेमाल करके स्ट्रीट लाइट में खपत होने वाली बिजली की बचत की जा सकती है. मध्य प्रदेश के सागर जिले की भावना बारडिया ने इसे बनाया है.
उपकरण : 12 वोल्ट बैटरी, स्चित, 555 आइसी, एलक्ष्डी, वेरिएबल रेसिस्टेंट तय मानक के और एक ब्लैंक पीसीबी बोर्ड.
कार्यप्रणाली : जब एलडीआर सेंसर पर लाइट पड़ती है, तो प्रतिरोध कम हो जाता है तथा वोल्टेज ग्राउंड हो जाता है. इससे आइसी में इनपुट नहीं मिलता है, इसलिए एलक्ष्डी नहीं जलती और एलडीआर सेंसर पर लाइट नहीं पड़ती, तो वोल्टेज में अंतर होने से आइसी में इनपुट मिलता है तथा एलक्ष्डी चालू हो जाती है.
उपयोग : एलडीआर सेंसर सर्किट आधारित इस सिस्टम को उपयोग में लाते हुए स्ट्रीट लाइट में खपत होने वाली बिजली को बचाया जा सकता है.
सिलाई मशीन से सिंचाई और रोशनी
तमिलनाडु की छात्र के इलाया भारती ने सिलाई मशीन से सिंचाई कार्य को मुमकिन बनाया है. इसके लिए उसने सकरुलेशन पंप के दो बिंदुओं में से एक को सिलाई मशीन के पहिये के केंद्र से जोड़कर और दूसरे को बेल्ट द्वारा डायनामो से कनेक्ट किया है. सिलाई मशीन का पहिया घूमने पर कुएं या पानी के स्नेत वाली किसी जगह से पाइप के माध्यम से पानी निकलने लगता है. इस प्रक्रिया के दौरान डायनामो द्वारा उत्पन्न की गयी बिजली को ‘सेविंग बैटरी’ में संरक्षित किया जा सकता है. इस प्रकार प्राप्त बिजली को रात के समय घर में रोशनी के लिए किया जा सकता है. सिंचाई और घरों में रोशनी के लिए इस सिस्टम को इस्तेमाल में लाते हुए उन ग्रामीण इलाकों में व्यापक बदलाव लाया जा सकता है, जहां अब तक बिजली नहीं पहुंच पायी है या फिर पहुंची भी है तो कम समय ही रहती है.
अग्निसूचक सह अग्निशामक यंत्र
बिहार के बेगूसराय जिले से विज्ञान प्रदर्शनी में भाग ले रही छात्र साक्षी कुमारी ने स्वचालित अग्निसूचक सह अग्निशामक यंत्र तैयार किया है. कैल्शियम काबरेनेट हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से क्रिया कर कैल्शियम क्लोराइड, जल और सीओ2 में विभक्त हो जाता है. तापमान बढ़ने पर गैसीय आयतन बढ़ने से सायरन बजने लगता है. इस दौरान अवमुक्त होने वाली सीओ2 गैस आग बुझा देती है.
कैसे काम करेगा उपकरण : आग लगने से पैदा ताप द्वारा धातु के बर्तन के अंदर की वायु में प्रसार के कारण यंत्र की नली की एक भुजा पर दाब बढ़ता है, जिससे दूसरी भुजा पर पारे की सतह ऊपर उठ जाती है और परिपथ पूरा होते ही सायरन बज उठता है.
पशुओं के लिए सुरक्षा रस्सी
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के छात्र आदित्य नारायण मिश्र ने इसके लिए एक सिस्टम तैयार किया है, जिसे पशुओं को बांधी जानेवाली रस्सी से जोड़ा गया है. इसमें पशुओं को बांधी जाने वाली रस्सी को एक 12 वोल्ट की बैटरी के माध्यम से संचालित किया जाता है. यदि कोई इस रस्सी को खोलता है या काटता है, तो इस सिस्टम में लगा रिले नेगेटिव करंट इंगित करता है और घर में रखा अलार्म सिस्टम बजने लगता है. इसकी तकनीक की खासियत यह भी कही जा सकती है कि इसकी कीमत सिर्फ 35 से 50 रुपये है. इस युक्ति का इस्तेमाल सीमाई इलाकों में सुरक्षा के लिए भी किया जा सकता है.

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