।। मोहन गोप ।।
धनबाद : सारा शहर गंदगी से नरक बना है. लेकिन शहर से सटा दामोदरपुर का संताल टोला चकाचक है. यहां न तो कहीं कचरे का ढेर नजर आता है और न बदबूदार नालियां बहती हैं. प्राय: घर मिट्टी के हैं और साफ-सुथरे. छत खपरैल की है और बेहतर रखरखाव की मिसाल पेश करती है. यह न तो नगर निगम के क्षेत्र में है और न ही यहां कोई सफाईकर्मी ही आता है. दरअसल सफाई और कचरा मैनेजमेंट आदिवासी समाज के दिनचर्या में शामिल है.
हीरापुर तेलीपाड़ा से सटा है दामोदरपुर संताल टोला. आबादी कोई पांच सौ की होगी. सड़कें एक दम साफ. कहीं कोई पॉलीथिन या कचरा नहीं. कहीं कोई नाली नहीं. घर के सामने झाड़ू-बहारू यहां के लोगों की दिनचर्या में शामिल है. हर घर के आगे सोख्ता बना है. घर का पानी मिट्टी के गड्ढे में जमा होता है. यह वाटर हार्वेस्टिंग का काम भी करता है. यानी पानी का अधिकांश हिस्सा धरती सोख लेती है. जब यह गड्ढा भरने लगता है तो घर के लोग पानी निकाल कर दूर फेंक आते हैं. शौचालय घर से सटा कर नहीं बनाया जाता है. बल्कि घर के एक किनारे में बनाया जाता है. सफाई संस्कार में शामिल है.
यहां हर दिन स्वच्छता अभियान : ग्रामीणों ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी की सफाई की अपील सही है. लेकिन आदिवासी समाज शुरू से साफ-सफाई को प्राथमिकता देता रहा है. सुबह में हर घर के लोग अंदर से लेकर सड़क तक की सफाई करते हैं. जो पहले निकलता है, वह दूसरे के घर के बाहर की भी सफाई कर देता है. इसके साथ कुआं में यदि गंदगी हो जाती है, तो मिल कर सफाई करते हैं. गांवों के नौजवानों को बुलाकर सफाई में लगाया जाता है. कुआं में ब्लिचिंग पाउडर डालते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि शहर में लोगों को अपने काम से मतलब होता है. जहां तहां मल मूत्र त्याग देते हैं. कचरा फेंक देते हैं. नगर निगम भी नाम का है. लेकिन टोला में एक दूसरे को अहमियत दी जाती है. जहां-तहां मल मूत्र त्यागना, कचरा फैलाना गलत माना जाता है.
* हां, मैं शहर हूं
मैं, शहर हूं. मैं, पढ़ा-लिखा हूं. मैं, सभ्य हूं. मैं क्यों दामोदरपुर के संताल टोला की सफाई से सबक लूं? मैं वोट दूं या नहीं, मगर मैं डेमोक्रेसी का अर्थ जानता हूं, इसलिए मैं हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराता हूं. इसलिए मैं हर समस्या के लिए प्रशासन को दोषी मानता हूं. इसलिए मैं नेताओं और राजनीति को कोसता हूं. मैं, गांव के गंवई लोगों की तरह थैला लेकर बाजार नहीं जाता.
मैं, पॉलिथिन में सामान लेकर आता हूं. फिर पॉलिथिन को कूड़े में फेंक देता हूं. मैं जानता हूं कि पॉलिथिन से पर्यावरण को बहुत नुकसान है, पर मैं इसकी चिंता क्यों करूं? यह चिंता मैं करूंगा, तो सरकार क्या करेगी? मैं पढ़ा-लिखा हूं, इसलिए सरकार और प्रशासन से पाई-पाई वसूलना जानता हूं. मैं जानता हूं कि पॉलीथिन नष्ट नहीं होता. इसी पॉलीथिन से शहर के नाले जाम हो जाते हैं.
बरसात में सड़कों पर पानी लग जाता है. तो मैं क्या करूं? मैंने तो पार्षद से लेकर मेयर, डिप्टी मेयर तक को चुना है. अब यह उनकी जिम्मेदारी है. मैं, मुहल्ले की, शहर की सफाई की चिंता क्यों करूं? यह चिंता मैं करूंगा, तो हमारे सांसद व विधायक क्या करेंगे? मैं, उन्हें क्यों बेरोजगार बनाऊं? हां, मैं शहर हूं, इसलिए मुझे अपना अधिकार मालूम है. मैं जानता हूं कि मैं सरकार को टैक्स देता हूं, इसलिए सारी नागरिक सुविधाएं मुहैय्या कराना सरकार की जिम्मेदारी है. हां, मुझे पान-गुटखा खाने का शौक है और जहां मन होगा वहां मैं थूकूंगा. मेरा घर साफ होना चाहिए. घर का कचड़ा मैं चाहें जहां फेंकूं मेरी मरजी. निगम क्यों बना है?
* अंतत:
क्या हमारे मुहल्ले, हमारी कॉलोनी, हमारे शहर को साफ-सुथरा रखने को लेकर हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं? क्या सारी चीजों के लिए हमें सरकार व प्रशासन का ही सहारा है? यदि आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास है, तो सामने आयें. अपने मुहल्ले, अपनी कॉलोनी के लोगों के साथ मिलकर कमेटी बनायें और वर्ष भर साफ-सफाई की व्यवस्था बनाये रखने की दिशा में प्रयास करें. इस प्रयास में प्रभात खबर आपके साथ होगा.