दहेज से जुड़े मामले अक्सर चर्चा में रहते हैं.
बिहार के दरभंगा शहर की 27 साल की गुंजा देवी से जुड़ा ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों सुर्ख़ियों में था.
गुंजा ने आरोप लगाया है कि उन्हें दहेज के कारण शौचालय में बंद रखा जाता था.
गुंजा के पिता श्याम सुंदर सिंह की शिकायत के बाद पुलिस ने सात सितंबर को उन्हें ससुराल से मुक्त कराया.
फ़िलहाल गुंजा मधुबनी ज़िले के पसटन गांव स्थित अपने मायके में हैं. लेकिन गुंजा के पति के वकील ने इन आरोपों को ग़लत क़रार दिया है.
बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए स्थानीय पत्रकार मनीष शांडिल्य ने पसटन में उनसे मुलाक़ात की.
गुंजा की आपबीती, उन्हीं की ज़ुबानी
जून, 2010 में दरभंगा के प्रभात प्रसाद सिंह के साथ मेरी शादी हुई. लगभग एक साल तक संबंध मधुर रहे.
लेकिन 2011 के अप्रैल में बेटी को जन्म देते ही रिश्ता बिगड़ने लगा. नतिनी को देखने आए मेरे माता-पिता को मुझसे मिलने तक नहीं दिया गया.
मेरी सास मुझे बदक़िस्मत कहने लगी. मैं बीमार पड़ी तो मुझे मेरी बेटी के बिना ही मायके भेज दिया गया.
लगभग चार महीने बाद ससुराल वापस लौटी तो और दहेज मांगा जाने लगा. और ऐसा नहीं होने पर मेरी मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना का सिलसिला शुरू हुआ.
मायके वाले कभी-कभार मिलने आते तो उन्हें मुझसे मिलने नहीं दिया जाता.
अंधेरे कोने में सिमटी ज़िंदगी
कुछ दिनों बाद मुझे घर के अंदर शौचालय के बग़ल में एक अंधेरे कोने में बिना बिस्तर वाली चौकी पर रहने को मजबूर कर दिया गया. मैं यहीं लगभग तीन साल तक रही.
वहां तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती थी और न ही बिजली को कोई बल्ब ही लगा था.
मेरे बर्तन अलग कर दिए गए. मुझे वक़्त-बेवक़्त जूठा और बासी खाना दिया जाने लगा. घर के काम-काज से अलग कर मेरे साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाने लगा.
इतना ही नहीं कोई मेहमान आता तो मुझे शौचालय में बंद कर दिया जाता.
बेटी को किया दूर
लगभग एक साल पहले एक दिन मेरे पति ने मेरा सिंदूर धो डाला, चूड़ियां तोड़ दी और मुझे विधवा वाली सफ़ेद साड़ी पहनने के लिए मजबूर कर दिया.
इसके बाद मैं जब कभी सिंदूर लगाती तो मुझे इसके लिए भी मारा जाता.
साथ ही बेटी लक्की को मुझसे दूर करने की कोशिशें की जाने लगी. वह मुझे मम्मी कहती तो उसे भी डांटा-मारा जाता.
उसे समझाया जाता कि मैं नौकरानी हूं, अछूत हूं.
ससुराल नहीं लौटूंगी
यह सब जब लगभग दो साल तक चला तो मेरे पिता ने थाने में शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद ससुराल वालों ने दबाव में दिखावे का समझौता किया.
फिर पिताजी ने जब सितंबर के शुरुआत में वरीय पुलिस अधिकारियों के पास गुहार लगाई तब जाकर मैं मुक्त हो पाई.
आज मुझे लगता है कि उन्हें दोबारा दहेज मिल भी जाता तो भी वे मेरे साथ बदसलूक़ी करना जारी रखते. मेरे पति की नीयत मुझे रास्ते से हटाकर फिर से शादी करने की थी.
मैं अब उस घर में नहीं लौटूंगी. अगर पति अपनी ग़लती मानते हुए मेरे मायके आकर रहना मंज़ूर करें तो ही मैं उनके साथ रह सकती हूं.
आज़ाद होने के बाद मैं अब ख़ुश हूं लेकिन मुझे बेटी से अलग कर दिया है. अपना हक़ और अपनी बेटी वापस पाने के लिए मैं लड़ूंगी.
पुलिस जांच
दरभंगा पुलिस उनके पति को गिरफ़्तार करने के लिए छापेमारी कर रही है जबकि गुंजा के सास-ससुर को कोर्ट से ज़मानत मिल गई है.
गुंजा की बेटी लक्की अभी अपने दादा-दादी के साथ है.
गुंजा को दरभंगा की महिला थानाध्यक्ष सीमा कुमारी के नेतृत्व में पुलिस बल ने मुक्त कराया था. उन्हें गुंजा के कुछ आरोप पहली नज़र में सही लगे हैं.
बीबीसी को सीमा ने बताया कि जब गुंजा को उन्होंने पहली बार देखा तो उनकी मांग में न तो सिंदूर था और न ही माथे पर बिंदी थी.
साथ ही उन्हें गुंजा और उनकी बेटी लक्की के बीच का रिश्ता सामान्य नहीं लगा. उन्होंने लक्की को अपनी मां से ज़्यादा दादा-दादी और पिता के क़रीब पाया.
गुंजा के पति के वकील का पक्ष
गुंजा के आरोपों के संबंध में बार-बार संपर्क किए जाने के बावजूद उनके पति प्रभात प्रसाद सिंह और सास-ससुर से संपर्क नहीं हो सका.
दूसरी ओर इस मामले में प्रभात प्रसाद सिंह के वकील चंद्रकांत सिंह का कहना है कि उनके मुवक्किलों को ग़लत आरोपों में फंसाया गया है.
चंद्रकांत सिंह के अनुसार न तो कभी गुंजा को शौचालय में बंद किया गया और न ही उन्हें घर के किसी अंधेरे कोने में रहने को मजबूर किया गया.
जिन तीन सालों के दौरान गुंजा ने अपने ऊपर उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं, उस दौरान भी कई बार गुंजा अपने पति के साथ मायके के पारिवारिक कार्यक्रमों में शामिल हुई हैं.
ऐसा होना इस बात का प्रमाण है कि गुंजा को तीन साल तक घर में बंद कर रखने के आरोप झूठे हैं.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)