चीन में एक अंगरेजी के शिक्षक ने महज 15 वर्ष पूर्व अलीबाबा नाम से ऑनलाइन व्यापारिक कंपनी की शुरुआत की थी, जिसने आइपीओ बेचने के मामले में हाल ही में सफलता के नये मुकाम को हासिल किया है. कैसे हुई इस कंपनी की शुरुआत, क्या है इसकी मौजूदा स्थिति, दुनियाभर में ऑनलाइन कारोबार की क्या है मौजूदा दशा-दिशा, कैसे कामयाबी की सीढि़यां चढ़ने में सफलता पायी हैं इ-कॉमर्स से जुड़ी कंपनियों ने, भारत में ऑनलाइन कारोबार के मौजूदा हालात समेत भविष्य में किस तरह बढ़ेगा यह कारोबार, बता रहा है आज का नॉलेज…
।। नीकी नैनसी ।।
(रिसर्च स्कॉलर, जेएनयू)
सूचना प्रौद्योगिकी और उसके विकास के साथ खुद को जोड़ कर विकसित होने वाले नये व्यापार ने उपभोक्तावाद की एक नयी परिभाषा गढ़ दी है, जिसे हम आज इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स (इ-कामर्स) या ऑनलाइन ट्रेडिंग के नाम से जानते हैं. ग्लोबलाइजेशन ने जिस तरह से तकनीक के माध्यम से विश्व के बाजारों को जोड़ने का काम किया है, उस हिसाब से अर्थशास्त्रियों और बाजार से जुड़े विश्लेषकों के सामने यह पहेली भी रख दी है कि आज का उभरता उपभोक्तावाद वैश्वीकरण की देन है या फिर बढ़ते उपभोक्तावाद ने कहीं न कहीं वैश्वीकरण को जन्म दिया. या कहें कि वैश्वीकरण का आविष्कार ही बढ़ते हुए उपभोग की पूर्ति करने के लिए किया गया है. यह सवाल कुछ इस तरह से लगता है, जैसे पहले बीज आया या पौधा.
बहरहाल, इस सवाल को अर्थशास्त्र के सिद्धांतों पर छोड़ते हुए इ-कॉमर्स के जरिये फलते-फूलते प्रतिस्पर्धात्मक बाजार की तरफ आते हैं, जहां अभी बीते हफ्ते एक बड़ी खबर चर्चा का विषय बन कर उभरी है. चीन की एक कंपनी अलीबाबा डॉट कॉम ने अमेरिका की बहुउद्देशीय खुदरा ब्रांड की कंपनी वॉलमार्ट को आनेवाले दिनों में पीछे छोड़ने का दावा किया है.
चीन की इस कंपनी का उभरता बाजार विश्व के सबसे अधिक सालाना आय की ऑनलाइन व्यापार करने वाली कंपनी के लिए चुनौती नहीं, बल्कि इस वर्चुअल या आभासी बाजार के एक नये स्वरूप और आपसी प्रतिस्पर्धा को प्रदर्शित करता है. चूंकि बाजार की दक्षता और संतुलित तरीके से कार्य करने की रणनीति प्रतिस्पर्धा के माहौल पर आधारित होती है, जिसमें वस्तुओं की कीमत पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है. इसलिए उस हिसाब से देखें तो इ-कॉमर्स का उभरता और घर-घर में प्रचलित होता बाजार अब केवल विकसित देशों के एकाधिकार तक सीमित रह गया है, बल्कि भारत, चीन, पाकिस्तान व दक्षिण एशिया के विकासशील देशों में भी इसकी साख उतनी ही शिद्दत से बढ़ रही है.
* सबसे ज्यादा इ-कारोबार अमेरिका में
अलीबाबा के न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज होने और उनके शेयरों का बाजार में आना इस बात की पुष्टि करता है कि विकासशील, खास तौर पर दक्षिण एशिया के देशों में इस तरह के बाजार की न केवल मांग है, बल्कि इसकी पूर्ति के लिए सरकार भी अपने दरवाजे खोल रही है. चीन जैसी साम्यवादी व्यवस्था वाले देश से लेकर भारत जैसे समाजवादी और मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश की सरकार भी अब मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में 100 प्रतिशत निवेश की बात कर रही है.
यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि अभी भी पूरे विश्व में इ-कॉमर्स का लगभग 80 प्रतिशत तक का व्यापार अमेरिका में ही हो रहा है. भारत में भी यह काफी तेजी के साथ विकसित हो रहा है. उदाहरण के लिए फ्लिपकार्ट, जबांग, स्नैपडील सरीखी कंपनियां बहुत हद तक अपनी वैश्विक पहचान बना चुकी हैं. इनमें से फ्लिपकार्ट का सालाना टर्नओवर सबसे ज्यादा है और इसकी लोकप्रियता भी काफी बढ़ चुकी है.
* वॉलमार्ट व अमेजन से आगे अलीबाबा
भारत से आगे बढ़ते हुए अगर पूरे एशिया की बात करें, तो इस संदर्भ में चीन की कंपनी अलीबाबा सबसे आगे निकल गयी है. इस कंपनी ने बीते हफ्ते अपने आइपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) न्यूयॉर्क के स्टॉक एक्सचेंज मे उतारे और उसके बाद इनकी मांग इतनी बढ़ी कि उन्हें निर्धारित शेयर से ज्यादा के आइपीओ जारी करने पड़े. ऑफर खुलते ही शुरुआत 68 डॉलर प्रति शेयर से हुई और दिन खत्म होते-होते कीमत 93 डॉलर प्रति शेयर पहुंच गयी. अलीबाबा की कामयाबी को अमेरिकन कंपनी वॉलमार्ट, अमेजन, और इ-बे जैसी इ-कॉमर्स के क्षेत्र से जुड़ी प्रतिष्ठित कंपनियों के लिए इस नये इ-व्यापार में एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. चीन के एक शिक्षक जैक मा द्वारा संचालित और स्थापित इस कंपनी की कीमत 200 अरब डॉलर से ज्यादा आंकी गयी है. अमेजन और इ-बे जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनियों को मिला देने के बावजूद यह रकम ज्यादा होगी.
मालूम हो कि प्रख्यात अमेरिकी अमजेन की कीमत करीब 153 अरब डॉलर है. अलीबाबा का आइपीओ विश्व के सबसे अधिक मांग के आइपीओ का खिताब पा चुका है. साथ ही भारत जैसे इ-कॉमर्स के उभरते बाजार के लिए यह एक नये प्रेरणा स्त्रोत के रूप में सामने आया है. फ्लिपकार्ट ने तो यहां तक कहा है कि प्रतिस्पर्धा और इस कारोबार के मामले में वह अमेरिकी कंपनियों की बजाय अलीबाबा से प्रेरणा लेगी और उसकी कार्यप्रणाली को अपनाने का प्रयास किया जायेगा.
* चीन और अलीबाबा डॉट कॉम
कुल आबादी और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या, दोनों ही मामलों में चीन पूरी दुनिया में पहले स्थान पर है. इस मामले में अमेरिका दूसरे और भारत तीसरे स्थान पर है. इंटरनेट सेवा के प्रसार के अधिकृत आंकड़े जारी करने वाले संगठन इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन (जेनेवा) के अनुसार, चीन में पूरे विश्व के इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का 22 फीसदी से ज्यादा लोग रहते हैं. इस देश में 60 करोड़ से ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जोकि अमेरिका की कुल जनसंख्या का लगभग दोगुना है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि किसी देश में इंटरनेट या सूचना प्रौद्योगिकी तक कितने लोगों की पहुंच है. दरअसल, इंटरनेट के माध्यम से व्यापार करने वाली कंपनियों के लिए ये आंकड़े ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. ये आंकड़े उन्हें अनुमान लगाने में सहायता करते हैं कि किस देश में कितने लोग इंटरनेट की पहुंच में हैं.
इन आंकड़ों के माध्यम से वे नीतियों का निर्धारण करती हैं. इस बाबत देखें तो चीन करीब 45 प्रतिशत के साथ अमेरिका के 83 प्रतिशत के बाद दूसरे नंबर पर है. भारत अब तक महज 12 फीसदी लोगों तक ही इंटरनेट की पहुंच हो पायी है.
बीते दो दशकों में जनसंख्या के साथ-साथ चीन में उपभोग की वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ी है. आधुनिक तकनीक के विकास के साथ इंटरनेट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. बीजिंग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले साल तक इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 85 करोड़ तक हो जायेगी. यानी इस वर्ष के मुकाबले इसमें 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जायेगी. एक अन्य आंकड़े के अनुसार, पिछले साल किसी एक दिन में चीन के एक-तिहाई से ज्यादा लोगों ने अलीबाबा वेबसाइट का इस्तेमाल किया था. बताया गया है कि इस दौरान शिपमेंट्स और ऑनलाइन खरीदारी पर करीब पांच अरब डॉलर खर्च किये गये. ऑनलाइन खरीदी गयी वस्तुओं का मूल्य अमेजन और इ-बे जैसी कंपनियों के कुल मूल्य के लगभग बराबर था.
* अलीबाबा की कहानी
चीन के सबसे बड़े और अब वॉलमार्ट को टक्कर देने की तैयारी में जुटे ऑनलाइन व्यापारिक कंपनी अलीबाबा की नींव चीन के हांगज्हू प्रांत में एक छोटे से अपार्टमेंट में 1999 में अंगरेजी के शिक्षक जैक मा ने अपने 17 दोस्तों के साथ मिलकर रखी थी. इस कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या आज 22,000 हो गयी है. जैक मा ने इसे अलीबाबा डॉट कॉम के नाम से शुरू किया था और अब यह चीन समेत अन्य कई देशों के निर्यातकों को दुनियाभर में फैली 190 कंपनियों से जोड़ती है.
चीन की सबसे बड़ी ऑनलाइन खरीदारी की वेबसाइट ह्यताओबाओ डॉट कॉमह्ण को चलाने के अलावा इसकी एक अन्य वेबसाइट चीन के उभरते हुए मध्यम वर्ग के लिए ब्रांडेड चीजें मुहैया कराती है. यह कंपनी ऑनलाइन मार्केटिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और लॉजिस्टिक सेवाएं भी मुहैया कराती है. हाल ही में इसने चीन में सबसे कामयाब फुटबॉल क्लब क्वांजो एवरग्रांड में 50 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है. फिल्म बिजनेस के अलावा इसका इरादा अब बैंकिंग क्षेत्र में भी उतरने का है. चीन की सोशल मीडिया वेबसाइट ह्यसीना वाइबोह्ण में भी इसकी हिस्सेदारी है. कुल मिलकर देखा जाये तो इसने उपभोक्ता से जुड़े सभी क्षेत्रों मे अपना वर्चस्व कायम कर लिया है.
वहीं इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी वॉलमार्ट का इतिहास इसके मुकाबले काफी पुराना है और इसकी पहुंच का दायरा भी उतना ही विस्तृत है. वर्ष 1962 में अमेरिका के अरकंसास में सैम वाल्टन द्वारा स्थापित वॉलमार्ट आज फॉर्ब्स द्वारा जारी दुनिया की 500 कंपनियों में सालाना टर्नओवर की दृष्टि से प्रथम स्थान पर है. 27 से भी ज्यादा देशों में अपने 11,000 से भी ज्यादा बिक्री केंद्र या आउटलेट्स के माध्यम से काम करने वाली इस कंपनी में सबसे ज्यादा (बीस लाख से ज्यादा) निजी कर्मचारी हैं.
मल्टीब्रांड खुदरा बाजार में भी वॉलमार्ट का दबदबा कायम है. पिछले वित्तीय वर्ष में कंपनी का टर्नओवर 473 अरब डॉलर का रहा, जबकि अलीबाबा का 248 अरब डॉलर तक पहुंच पाया. अलीबाबा ने आइपीओ के जरिये पहले दिन ही 21.8 अरब डॉलर अर्जित किये, जोकि 2008 के अमेरिकी कार्ड कंपनी वीसा के बाद से ऐसा करने वाली दूसरी बड़ी कंपनी है. 48 मिलियन शेयर और बेचने के बाद अलीबाबा के शेयर 2010 के चीन के कृषि बैंक के 22 बिलियन डॉलर के आइपीओ के रिकॉर्ड से आगे बढ़ जायेगी. अलीबाबा का पूंजी बाजार अब 219 बिलियन डॉलर का हो गया है. जैक मा खुद भी दुनिया के सबसे धनी लोगों की सूची में 34वें स्थान पर पहुंच गये हैं. इस तरह से देखा जाये तो पिछले 50 सालों से भी ज्यादा समय से चली आ रही मजबूत पकड़ वाले वॉलमार्ट जैसी कंपनी के लिए इन्होंने महज 15 वर्षों में ही चुनौती पैदा कर दी है.
* भारत में इ-कारोबार का वर्तमान और भविष्य
अलीबाबा ने जिस तरह से पश्चिमी देशों के इ-कॉमर्स के बाजार को समझते हुए उनके बीच अपना स्थान बनाया है, उससे भारतीय कंपनियां भी उत्साहित नजर आ रही हैं. भारत में ऑनलाइन खरीदारी के प्रचलन को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. 2007 में चीन में इस बाजार की जो स्थिति थी, वह इस वक्त भारतीय इ-कॉमर्स के बाजार की है. 2008 में बेंगलुरु से संचालित फ्लिपकार्ट ने पहली बार भारत में ऑनलाइन बाजार को प्रचलित बनाया. उसके बाद से दिल्ली स्थित स्नैपडील, जबांग, मंत्रा, नापतोल, होमशॉप 18 समेत अन्य कंपनियों के लिए रास्ता खुल गया.
इंडस्ट्री सर्वे के अनुमान के आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि इ-कॉमर्स द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था में मौजूदा महज एक फीसदी के योगदान से बढ़ते हुए 2020 तक यह चार फीसदी तक पहुंच सकता है. भारत में फिलहाल यह 34 प्रतिशत की संयुक्त वार्षिक दर से बढ़ रहा है. इसमें भी अगर इसके विभिन्न क्षेत्रों को देखें तो ऑनलाइन यात्रा की सुविधा मुहैया कराने वाली कंपनियां समस्त इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन का 70 प्रतिशत हिस्सा पूरा करती हैं.
टेक्नोपेक कंसल्टेंसी के मुताबिक, फुटकर वस्तुओं का पिछले साल ऑनलाइन व्यापार करीब 1.6 अरब डॉलर का रहा. वर्ष 2021 तक इसके 76 अरब डॉलर तक हो जाने की उम्मीद है.
जबकि भारत के इन आंकड़ों के मुकाबले चीन इसी साल के अंत तक इ-कॉमर्स के इस व्यापार में 180 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर जायेगा. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट में खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 100 प्रतिशत तक करने का प्रस्ताव किया गया है, जिस पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और चीन के हालात काफी कुछ एक जैसे हैं और दोनों ही विश्व की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से है. इसलिए जिस तरह से अलीबाबा की प्रगति को चीन के मध्यम वर्ग की प्रगति से जोड़कर देखा जा सकता है, उसी तरह भारत को भी सोचने की जरूरत है.
आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन बाजार है, जहां 60 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं. इनमें से आधे ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं. चीन दुनिया का सबसे बड़ा स्मार्टफोन का बाजार भी है. वहीं इसके मुकाबले भारत भले ही उतना आगे नहीं है, लेकिन वर्ष 2017 तक भारत में भी इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या मौजूदा 15 करोड़ से बढ़ कर 50 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है. दूसरी ओर भारत में मोबाइल इस्तेमाल करने वालों की संख्या 90 करोड़ के आस-पास है. देश में मोबाइल की इस संख्या को ऑनलाइन ट्रेडिंग कंपनियां इंटरनेट शॉपिंग के लिए इंटरनेट के विकल्प के रूप में देख रही हैं. वहीं छोटे और पारंपरिक कारोबारी इसके विरोध में हैं. इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले इस पर विस्तृत बहस और समझ की जरूरत है.