साल 2011 में 8 और 9 अक्तूबर 21पी/जिआकोबिनी-जिनर नामक धूमकेतु से पृथ्वी पर एक टन सामग्री बतौर कचरा गिरा था. पिछले दशक में पृथ्वी पर शुरू हुई इस तरह की बौछारों ने उन दो दिनों में हद कर दी, जब प्रति घंटे 400 से ज्यादा गतिविधियां देखने में आयीं.
तकरीबन हर साढ़े छह वर्ष पर जिआकोबिनी-जिनर धूमकेतु अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य के सबसे निकटतम बिंदु के पास से गुजरता है. धूमकेतु का बर्फ परिष्कृत होने से इससे ज्यादा तादाद में धूलकण निकलते हैं. इनमें सबसे पुराने कण एकत्र होकर प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह में पृथ्वी के करीब से होकर गुजरते हैं.
धूमकेतु से आनेवाले ये कण कई बार इधर-उधर भटकते हैं, जो पृथ्वी के वायुमंडल पर तकरीबन 75,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से टकराते हैं. वैसे अन्य प्रकार के घातक कणों की तुलना में इनकी गति तुलनात्मक रूप से कम है. सीएसआइसी इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंसेज (आइसीइ) के एक हालिया शोध में कहा गया है कि जब एक धूमकेतु सूर्य के निकट पहुंचता है, तो यह अपने सतह पर पाये जानेवाले बर्फ और गैस के दबाव से सूर्य के चारों ओर कक्षाओं में चक्कर काटते हुए बड़ी संख्या में कणों का बिखराव करता है.
8 अक्तूबर से 9 अक्तूबर, 2011 की संध्या के दौरान किये गये अध्ययन में यह दर्शाया गया है कि जब यह निकटवर्ती ग्रह से होकर गुजर रहा था, तब इस धूमकेतु ने पृथ्वी पर इन कणों के सघन तंतुओं को बिखेरा था. शोध में बताया गया है कि ये कण समय-समय पर धूमकेतु से आते रहते हैं.