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।।अनुज कुमार सिन्हा।। गुरुवार (4 सितंबर) को देवघर में डीएसपी अनिमेष नथानी ने प्रेस कांफ्रेंस में अनेक पत्रकारों की मौजूदगी में प्रभात खबर के एक पत्रकार आशीष को तमाचा मार दिया. डीएसपी इसलिए नाराज थे, क्योंकि तारा प्रकरण में उनका नाम छप रहा था. हर अखबार में खबर छप रही है. पुलिस ने डीएसपी से […]

।।अनुज कुमार सिन्हा।।

गुरुवार (4 सितंबर) को देवघर में डीएसपी अनिमेष नथानी ने प्रेस कांफ्रेंस में अनेक पत्रकारों की मौजूदगी में प्रभात खबर के एक पत्रकार आशीष को तमाचा मार दिया. डीएसपी इसलिए नाराज थे, क्योंकि तारा प्रकरण में उनका नाम छप रहा था. हर अखबार में खबर छप रही है. पुलिस ने डीएसपी से रांची में पूछताछ की थी. फिर इस खबर से देवघर के पत्रकार का कोई लेना-देना भी नहीं था. खबर रांची की थी, लेकिन डीएसपी आपा खो बैठे और उस पत्रकार को पीट दिया. उस डीएसपी के खिलाफ जब प्रभात खबर ने देवघर थाना में एफआइआर दर्ज करना चाहा तो थाना प्रभारी ने पहले एफआइआर लेने से इनकार कर दिया. दूसरे डीएसपी ने सिर्फ पत्र लिया. मामला डीजीपी राजीव कुमार के पास गया. डीजीपी के आदेश के बाद डीएसपी के खिलाफ थाना ने मामला दर्ज किया. अगर डीजीपी का आदेश नहीं जाता, तो पत्रकार को पीटनेवाले डीएसपी के खिलाफ थाना में मामला दर्ज नहीं किया जाता (अदालत में शिकायत करना एक विकल्प था).

माना जाता है कि मीडिया चौथा स्तंभ है. जनता की आवाज है. सच है. हमारा काम है खबर देना. तारा प्रकरण में भी प्रभात खबर पूछताछ की खबर छाप रहा था. वह भी पुलिस सूत्रों से. इसमें अगर कहीं डीएसपी को आपत्ति थी, तो वे अखबार के पास अपना पक्ष भेज सकते थे. पर उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस बुलायी (इसका उन्हें अधिकार नहीं है) और हाथ चला दिया. लोग अखबार-टीवी चैनल/पत्रकार को शक्तिशाली मानते हैं. जब एक अखबार के पत्रकार (साथ में सीनियर सहयोगी भी) थाना जाते हैं और एफआइआर दर्ज कराने से इनकार कर दिया जाता है, तो आम जनता के साथ कैसा व्यवहार होता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. पुलिस की छवि ऐसे ही अधिकारियों के कारण खराब होती है. ईमानदार और कर्मठ पुलिस अधिकारी अपनी जान पर खेल कर अपने विभाग की जो अच्छी छवि बनाते हैं, ऐसे अफसर उसे पल भर में मिट्टी में मिला देते हैं. अब इस मामले को खुद डीजीपी देख रहे हैं, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि दूध का दूध और पानी का पानी होगा. डीएसपी के खिलाफ गैर-जमानती धाराएं लगायी गयी हैं.

यह मामला सिर्फ एक अखबार या एक पत्रकार का नहीं है. आवाज को दबाने का प्रयास है. अगर ऐसे मामलों में पुलिस के वरिष्ठ अफसर या सत्ता में बैठे राजनीतिज्ञ कार्रवाई न करें, तो इसका असर लोकतंत्र पर पड़ेगा. खुशी की बात यह है कि झारखंड के कई शीर्ष राजनेता (विभिन्न दलों के) इस मामले में मुखर हुए हैं. विधानसभा अध्यक्ष खुद गंभीर हैं. अभी तो सिर्फ मामला दर्ज हुआ है, लेकिन इतना से काम नहीं चलनेवाला. पत्रकार समाज-राजनीतिक दल को और सक्रिय होना होगा. सरकार के लिए भी यह चुनौती है. सरकार को कार्रवाई के बल पर यह साबित करना होगा कि कोई पुलिस अधिकारी कितना ही ताकतवर क्यों न हो, कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता. अगर लेता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी.

यह मामला मुख्यमंत्री के इलाके के पास का है. राज्य में बेहतर माहौल बनाना सरकार का काम है ताकि आम जनता बेखौफ रह सके. आज दुर्घटना में सड़क पर घायल पड़ा व्यक्ति तड़पता रहता है, जल्द कोई सहयोग करने नहीं आता. कोई जोखिम लेकर अस्पताल नहीं ले जाता, क्योंकि उसे पता है कि पुलिस उसे ही फंसा देगी. इतना सवाल करेगी कि फिर वह भला काम करना भूल जायेगा. थाना में एफआइआर नहीं लेकर थाना प्रभारी उसी भय-आतंक के माहौल को मजबूत कर रहे हैं. ऐसे ही रवैये से पुलिस जनता से कटती जा रही है. उसे सूचना नहीं मिलती. अकेले पड़ती जा रही है. राज्य के लिए यह बेहतर नहीं है. अब देखना है कि डीजीपी के हस्तक्षेप से यह मामला अंजाम तक पहुंच पाता है या बीच में ही दम तोड़ देता है.

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