मित्रों,
पिछले अंक में हमने बात कि कैसे आप भी अपना अखबार निकाल सकते हैं और उसके जरिये गांव-पंचायत में बदलाव ला सकते हैं. इस अंक में हम बात कर रहे हैं सामुदायिक रेडियो की. आप जानते हैं कि जब गांवों में अखबार नहीं पहुंचा था, तब रेडियो ही लोगों के मनोरंजन, ज्ञान और सूचना का बड़ा माध्यम था. आज भी वहां रेडियो के कार्यक्रम और समाचार सुने जाते हैं, लेकिन उसमें उनके गांव की सीधी भागीदारी नहीं होती. क्या गांव-पंचायत में लोगों को अपना रेडियो स्टेशन हो सकता है? जवाब होगा हां. इस तरह के रेडियो स्टेशन आप किसी भी गांव या कसबे में स्थापित कर सकते हैं और वहां की जरूरत, रुचि और प्रकृति के अनुसार कार्यक्रम बना कर प्रसारित कर सकते हैं. इसके लिए केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रलय ने पॉलिसी बनायी है. उसके मुताबिक देश के कई गांवों और क्षेत्रों में सामुदायिक रेडियो चल रहे हैं. हम उन सबके बारे भी यहां आपको बता रहे हैं. आप चाहें, तो सरकार के नियम और शर्तो के मुताबिक अपना सामुदायिक रेडियो स्टेशन शुरू कर सकते हैं.
आरके नीरद
क्या है सामुदायिक रेडियो
सामुदायिक रेडियो भारत सरकार की एक ऐसी सोच का हिस्सा है, जिसमें समुदाय खुद का रेडियो स्टेशन स्थापित कर अपने आसपास एक सीमा के अंदर रेडियो पर कार्यक्रम प्रसारित कर सके. शुरू में यह आइआइटी और आइआइएम जैसे उच्च संस्थानों के लिए तय किया गया था और उन्हें ही उन्हें ही कम्युनिटी रेडियो स्थापित करने की इजाजत दी गयी थी. यह प्रयोग सफल रहा और सरकार ने इसका दायरा बढ़ाने का फैसला किया. इसके तहत सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाली वैसी स्वयं सेवी संस्थाओं को भी सामुदायिक रेडियो का लाइसेंस दिया गया, जो सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत हैं और गैर लाभकारी यानी नॉन-प्रोफिटेबल हैं. पंजीकृत एनजीओ के अलावा पंजीकृत ट्रस्ट, कृषि विज्ञान क्षेत्र, कृषि विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थानों को भी सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने की अनुमति दी जा रही है. किसी व्यक्ति को या किसी को रेडियो स्टेशन खोल कर व्यवसाय करने के लिए इसका लाइसेंस नहीं मिलता है.
आप किस तरह शुरू सकते हैं सामुदायिक रेडियो
अगर आप अपने गांव या पंचायत में सामुदायिक रेडियो स्टेशन खोलना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको एनजीओ या ट्रस्ट या फिर शिक्षण संस्थान स्थापित करना उसका पंजीयन कररना होगा. रजिस्ट्र्ड एनजीओ और ट्रस्ट को कम-से-कम तीन साल पुराना होना चाहिए. ऐसे में आप तीन साल या उससे पहले पंजीकृत एनजीओ या ट्रस्ट से संपर्क कर इसकी योजना बना सकते हैं. उसके बाद लाइसेंस के लिए निर्धारित प्रक्रिया के तहत और निर्धारित फॉर्म में आवेदन करना होगा. एक बात हमेशा ध्यान में रखना होगा कि यह लाइसेंस आपको व्यक्तिगत लाभ कमाने के लिए नहीं मिलेगा. आप समुदाय के हित में नो लॉस-नो प्रोफिट की शर्त पर सामुदायिक रेडिया स्टेशन चला सकते हैं.
कैसे करेंगे आवेदन
आवेदन के लिए हर साल सूचना एवं प्रसारण मंत्रलय समाचार-पत्रों तथा अन्य माध्यमों में विज्ञापन देता है. आप ऑनलाइन भी आवेदन कर सकते हैं. आवेदन के साथ प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में 2500 रुपये का शुल्क भी देना होता है. आपके आवेदन पर मंत्रलय की एक उच्च समिति विचार करती है और फिर आपको लाइसेंस जारी किया जाता है. विश्विद्यालयों और सरकारी शिक्षण संस्थानों को मंत्रलय सीधे ही एक फ्रीक्वेंसी आवंटित करता है और रेडियो स्टेशन स्थापित करने की अनुमति दे दी जाती है.
अन्य संस्थानों को फ्रीक्वेंसी आवंटित करने की प्रक्रिया
अन्य आवेदकों और निजी शिक्षण संस्थानों को भी फ्रीक्वेंसी आवंटित होती है, लेकिन इसकी प्रक्रिया गृह मंत्रलय, रक्षा मंत्रलय और मानव संसाधन विकास मंत्रलय से स्वीकृति मिलने के बाद संचार एवं सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रलय के डब्लूपीसी विंग द्वारा पूरी की जाती है. वहां से फ्रीक्वेंसी आवंटित होने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रलय आपको लैटर ऑफ इंटेंट जारी करता है. लाइसेंस अनुमति मंजूरी करार पर हस्ताक्षर के समय 25 हजार रुपये की बैंक गारेटी देनी होगी.
प्रसारण कितने बड़े दायरे के लिए
सामुदायिक रेडियो कम दायरे में प्रसार सुने जाने के लायक होता है. इसके लिए दो तरह के ट्रांसमीटर होते हैं. सामान्य तौर पर पांच से 10 किलोमीटर तक इसके प्रसारण की अनुमति होती है. यह दूरी एयरियल डिस्टेंस यानी आसमानी दूरी होती है. इसके लिए 100 वॉट का ट्रांसमीटर लगाया जाता है. विशेष परिथितियों में 250 वॉट का ट्रांसमीटर लगाने की अनुमति दी जाती है.
कितनी बड़ी जगह चाहिए
सामुदायिक रेडियो स्टेशन के लिए बहुत बड़ी जगह की जरूरत नहीं होती है. 100 वर्ग फुट के कमरे में भी आप रेडियो स्टेशन बना सकते हैं और वहां से इसका प्रसारण कर सकते हैं. चूंकि यह चौबीस घंटे कार्यक्रम प्रसारण वाला रेडियो नहीं है. इसलिए इसे बहुत अधिक पावर बैक की भी जरूरत नहीं पड़ती है. इसमें खास है इसका एंटिना, जिससे इसके प्रसारण को सुना जाता है. यह एंटिना जमीन से कम-कम-कम 15 मीटर और अधिक-से-अधिक 30 मीटर ऊंचा होना चाहिए. इसकी ऊंचाई इस बात पर भी निर्भर करता है कि जिस क्षेत्र में आप सामुदायिक रेडियो लगा रहे हैं, वहां की प्राकृतिक बनावट क्या है?
कहां लगायेंगे एंटिना
एंटिना आपको वहीं लगाना है, जहां आपका रेडियो स्टेशन है और जहां रेडियो स्टेशन लगाने की आपको अनुमति मिली है. इसके स्थल का चयन इस तरह किया जाता है कि जिस समुदाय या वर्ग के लिए आप कार्यक्रम का प्रसारण करना चाहते हैं, वह इसके दायरे में आता हो. अगर विश्वविद्यालय, कृषि महाविद्यालय या कोई शैक्षणिक संस्थान सामुदायिक रेडियो स्टेशन लगाता है, तो वह अपने ही परिसर में इसका ट्रांसमीटर और एंटिना लगायेगा.
कितनी आती है लागत
आम तौर पर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने में करीब दो से पांच लाख रुपये लगते हैं. वैसे 27 लाख तक के मॉडल उपलब्ध हैं. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह की मशीन खरीदते हैं, कितनी देर कार्यक्रम प्रसारित करते हैं और कैसा स्टूडियो बनाते हैं. बाजार में अच्छे उपकरणों की कमी नहीं है. उनकी कीमत भी ज्यादा है. संपर्क करने पर पुराने उपकरण भी कम दाम पर मिल जाते हैं. वहां लागत स्वाभाविक रूप से कम पड़ती है.
2001 में लाइसेंस पॉलिसी
भारत में सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए लाइसेंस देने की पॉलिसी दिसंबर 2002 में बनायी गयी. तब उच्च शिक्षण संस्थानों को ही लाइसेंस देने की सीमा तय की गयी थी.
2006 में बदलाव
2006 में कम्युनिटी रेडियो स्टेशन खोलने के दिशानिर्देशों में बदलाव किया गया और पंजीकृत एनजीओ, ट्रस्ट व अन्य शैक्षणिक संस्थाओं को भी इसका लाइसेंस देने की व्यवस्था की गयी.
देश में 170 कम्युनिटी रेडियो स्टेशन
अभी देश में 170 कम्युनिटी रेडियो स्टेशन काम कर रहे हैं और 250 नये स्टेशन लाइसेंस लेने की प्रकिया में हैं. नरेंद्र मोदी सरकार के पहले बजट में कम्युनिटी रेडियो को बढ़ावा देने के लिए 100 करोड़ रु पये का प्रावधान किया गया है. दुनियाभर में यह माना जाता है कि कम्युनिटी रेडियो लोकल लोगों की जरूरत को आवाज देता है. वह ऐसे मुद्दे उठाता है, जो उनकी जिंदगी को प्रभावित करते हैं, फिर भी अक्सर मेन स्ट्रीम मीडिया में नजरअंदाज किये जाते हैं.
कम्युनिटी रेडियो से लाभ पर हो रहा अध्ययन
सूचना एवं प्रसारण मंत्रलय देश में चल रहे कम्युनिटी रेडियो स्टेशनों की स्थिति तथा उनके प्रभावों का ठोस अध्ययन करने की तैयारी में है. यह इसलिए भी किया जा रहा है, ताकि भविष्य में इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके तथा समाज की मांग के अनुरूप सामुदायिक रेडिया का स्वरूप गढ़ा जा सके. दरअसल भारत में सामुदायिक रेडियो का सफल हाल का है. महज 12 सालों के सफर में यह समाज के लिए कितना उपयोगी हो सका, यह इसके भविष्य की रूपरेखा तय करने के लिए जरूरी है. अध्ययन के लिए मंत्रलय ने एक एजेंसी नियुक्त करने का फैसला किया है, जो सर्वे कर यह भी पता लगायेगी कि कम्युनिटी रेडियो के प्रसारण को कितने लोग सुनते हैं तथा इसकी पहुंच कितनी बड़ी आबादी तक है.
किस तरह के कार्यक्रम का प्रसारण अधिकार
सामुदायिक रेडियो किस तरह के कार्यक्रम प्रसारित करेगा, इसे लेकर कोई बंधा-बंधाया नियम नहीं है. उससे केवल यह उम्मीद की जाती है कि वह केवल वैसे ही कार्यक्रम बनाए और उनका प्रसारण करे, तो समुदाय के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण, स्वरोजगार, ग्रामीण एवं सामुदायिक विकास पर आधारित हो. 50 प्रतिशत कार्यक्रम समुदाय की भागीदारी से तैयार करनी है. अभी इसे अपना समाचार प्रसारित करने की अनुमति नहीं है, लेकिन जल्द ही यह अनुमति भी मिल जायेगी. यह मनोरंजन के कार्यक्रम भी प्रसारित कर सकता है.