तकनीक के इस दौर में शहर के साथ अब गांव भी अछूते नहीं हैं. राज्य के गांव और ग्रामीण अब नयी-नयी तकनीक के सहारे अपनी प्रगति के राह को खुद बना रहे हैं. राज्य सरकार भी समय की इस जरूरत को महसूस कर रही है. वर्तमान में कई नये कार्य किये जा रहे हैं. कई योजनओं पर काम हो भी रहे हैं. ये योजनाएं किस तरह से बदलाव लाने में सक्षम है? इसे जानने के लिए सुजीत कुमार ने बेल्ट्रॉन के एमडी अतुल सिन्हा से बात की.
बिहार के गांवों में किस-किस तरह की तकनीकी सुविधाएं और सेवाएं पहुंची हैं?
गांवों के कामकाज के स्वरूप को बदलने में इ-डिस्ट्रिक्ट योजना का काफी रोल रहा है. राज्य के कुल 38 जिलों में से चार में यह पायलट योजना थी. इन जिलों में नालंदा, औरंगाबाद, मधुबनी और गया आदि शामिल थे. इस योजना से ग्रामीणों और गांवों को काफी लाभ हुआ. इसके जरिये अधिकार योजना लागू हुआ था. इससे काफी लाभ हुआ. ई-डिस्ट्रिक्ट योजना में वसुधा केंद्र के जरिये काफी मदद मिली. ग्राम पंचायतों में कई तरह के कार्य होते हैं, जो आम जीवन से सीधा सरोकार रखते हैं. मान लीजिए, किसी ग्रामीण को अपने कार्य के लिए संबंधित अधिकारी के पास जाना है. इसके लिए वह सभी कागजातों को लेकर जायेगा, लेकिन वसुधा केंद्र के द्वारा जो प्रमाण पत्र जारी होंगे. वह इन सभी कार्य को पूरा करने में सक्षम होंगे. इन सारे कार्यो में किसी भी प्रकार का सादा कागज का उपयोग नहीं होता था. इस योजना में एक खास बात यह भी थी कि इसमें डिजिटल हस्ताक्षर युक्त प्रमाण पत्र जारी होते हैं. इससे ग्राम पंचायतों में ही लाभुक कई योजनाओं का लाभ ले सकते हैं. कई तरह के प्रमाण पत्र को लाने की कोई जरूरत नहीं होती है. संबंधित अधिकारी के पास वह डिजिटल हस्ताक्षर युक्त प्रमाण पत्र लेकर जायेंगे. उससे काम हो जायेगा. इससे कई तरह के लाभ हैं. प्रमाण पत्रों के कई तरह के बोझ से मुक्ति मिल जायेगी. राज्य में पिछले दो साल में करीब 60 लाख डिजिटल हस्ताक्षर युक्त प्रमाण पत्र इन चार जिलों में जारी हुए हैं. यह देश के किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा है. यह एक रिकॉर्ड है. मूलत: यह भारत सरकार की योजना है. राज्य के अन्य 34 जिलों में भी इसकी शुरुआत करने का प्रारूप तैयार हो चुका है. इसके लिए करीब 89 करोड़ की राशि निर्गत भी हो चुकी है. डिजिटल हस्ताक्षर युक्त इन प्रमाण पत्रों से सबसे बड़ी सहायता उन लोगों को भी होगी जो किसी भी सरकारी नौकरी के दावेदार हैं.
इससे पहले प्रमाण पत्रों के जांच की प्रक्रिया बहुत लंबी होती थी. इसमें काफी समय लगता था. इन सारी परेशानियों को हल करने के लिए हमने विशेष पहल की जिसका काफी लाभ देखने को मिल रहा है. जितने भी प्रमाण पत्र जारी होते हैं, उन्हें सीधे कंप्यूटर के जरिये देखा जा सकेगा. इन डिजिटल प्रमाण पत्र के नीचे दिये गये लिंक पर सर्च करके एक ही क्लिक में सारी जानकारी ले सकते हैं. देश के करीब 640 जिलों में इस योजना को किया जाना है. इसकी सारी प्रक्रिया चल रही है. राज्य के चार जिलों में इसके सुखद परिणाम को देख कर अन्य जिलों में शुरू होगा.
नयी तकनीक ने ग्रामीण युवाओं के जीवन में कितना बदलाव लाया है?
पहले शहर हो या गांव, सभी इलाके के बेरोजगारों को अपना रिकॉर्ड दर्ज करवाने के लिए नियोजनालय जाना होता था. लंबी लाइन लगानी होती थी. ऑफिस में कौन आया, कौन नहीं? इस बात की भी जानकारी नहीं होती थी. रोजगार की जरूरत सभी को है. लिहाजा सारे बेरोजगार दूर-दूर से लाइन में लगते थे. इन सभी कार्यो में समय और पैसा दोनों लगता था, लेकिन आज समय के साथ बदलाव आया है. अब सब कुछ ऑनलाइन है. युवा वर्ग भी तकनीक के जरिये इन सभी सुविधाओं का लाभ ले रहा है. आज सारी प्रक्रिया इंटरनेट के जरिये कंप्यूटर पर मौजूद है. बस एक क्लिक में सारी जानकारी आपके सामने होती है. कंप्यूटर ने तो आम जीवन को काफी सुविधाजनक बना दिया है. आय कर, वाणिज्य कर जैसे जरूरी कार्य भी इसके जरिये बहुत कम समय में आराम से भरे जा रहे हैं. इससे संबंधित व्यक्ति को पैसे और समय की बचत होती है. नियोजनालय वाले मामले को अगर देखें तो तकनीक की सहायता मिलने से यह भी लाभ है कि युवा अपने बहुमूल्य समय को किसी दूसरे कार्यो में लगा सकते हैं. हमारी कोशिश यही है कि लोगों की परेशानी को कैसे कम किया जा सके? इसके लिए हम लगातार प्रयासरत हैं. कई तरह की योजनाओं पर कार्य हो रहे हैं. हमें उम्मीद है कि इन सारे प्रयासों का व्यापक और लाभप्रद असर देखने को मिलेगा. इससे सभी लाभांवित होंगे. युवा वर्ग अगर व्यापार कर रहा है, उसे व्यापार संबंधी कोई भी जानकारी लेनी होती है तो बस वह एक बार कंप्यूटर पर बैठता है और सारी जानकारी ले लेता है.
कृषि के क्षेत्र में किस तरह की नई तकनीक आयी है और उसका खेती पर क्या प्रभाव है?
इसके बारे में मैं विस्तृत जानकारी नहीं दे सकता हूं. फिलहाल ग्राम पंचायतों को तकनीकी रुप से सुदृढ़ करने की हमारी पहल हो रही है. समय के हिसाब से जो भी जरूरी होगा. अवश्य पूरा किया जायेगा.
तकनीक से ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार के कितने अवसर हैं?
इसमें वसुधा केंद्र का नाम प्रमुख है. यह व्यवस्था पूरी तरह तो रोजगारपरक नहीं है, लेकिन इससे काफी सहयोग मिला है. इसे सहयोगी जरूर कह सकते हैं. जिस-जिस ई-डिस्ट्रिक्ट जिले में इसकी शुरुआत हुई है, वहां लोगों को काफी लाभ हुआ है. शुरू में यह बात भी देखने को मिली, जब इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती थी तो लोग पूछते थे कि यह क्यों शुरू हुआ है? इसका कार्य क्या है? लेकिन जब वसुधा केंद्र से लोगों को लाभ मिला, तो वही यह पूछते हैं कि हमारे यहां कब शुरू होगा? यह सारी बातें इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि वसुधा केंद्रों से पंचायतों, ग्रामीणों को काफी लाभ मिला है. इनमें वैसे जिलों के लोग हैं, जिनके यहां इसकी सुविधा नहीं है.
इससे पासपोर्ट बनाने में काफी सहयोग मिल रहा है. ग्रामीण युवा रोजगार के लिए अगर दूसरे देशों में जाना चाहते हैं तो पासपोर्ट बनाने में वसुधा केंद्र काफी सहायक है. इसके अलावा पहले मतदाता पहचान पत्र ब्लैक और व्हाइट में आते थे. पूरे देश में इसी प्रारूप पर मतदाता पहचान पत्र बनाने का कार्य हुआ. अब इसमें बदलाव आ रहा है. सरकार ने इसे बनाने की प्रक्रिया में कुछ बदलाव किया है. रंगों को लेकर. अब नये नियम के अनुसार इसे रंगीन बनना है. बिहार में भी इसी नियम के मुताबिक कार्य हो रहे हैं. कई जगहों पर कार्य शुरू भी हो गया है, लिहाजा इससे भी रोजगार के बढ़िया साधन के रुप में देखा जा सकता है. राज्य में करीब 6.15 करोड़ लोगों का रंगीन मतदाता पहचान पत्र बनना है. कार्ड बनेंगे तो रोजगार के अवसर तो पैदा ही होंगे. ग्रामीण क्षेत्रों में जाति, आय, आवासीय, चरित्र पत्रों को बनावने को लेकर काफी तकलीफ होती है. वसुधा केंद्र से इन सभी प्रमाण पत्रों को बनावने में काफी सहुलियत मिलती है. इससे लोगों की परेशानी तो खत्म होती ही है, रोजगार के भी व्यापक अवसर उत्पन्न होते हैं. इसका एक लाभ यह भी है कि कम समय में जरूरी काम तो हो ही जाते हैं, लोगों को बिचौलये से भी मुक्ति मिल जाती है. सरकार द्वारा इसे शुरू करने का मुख्य उद्देश्य यही है कि सही मायनों में लोगों को लोक सेवा का अधिकार प्राप्त हो.
देश और दुनिया के मुकाबले बिहार, झारखंड के गांवों को और किस तरह की तकनीक मिलने वाली है?
डिजिटल शिक्षा को लेकर कई तरह की अवधारणा है. देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में यह धारणा है कि अशिक्षित लोग डिजिटली रुप से मजबूत नहीं हो सकते हैं. लेकिन अब इस धारणा में बदलाव आ रहा है. लोग इस बात को बदल रहे हैं, अपने इच्छाशक्ति से. हमने बिहार में एक नयी योजना को लेकर कुछ कार्य किया है. बिहार के उन क्षेत्रों को छूने की कोशिश की, जो अभी भी विकास की मुख्य धारा से तालमेल नहीं बना पाये हैं. ऐसे जगहों पर डिजिटल क्रांति के जरिये हमने अलग पहल की.
इसी साल फरवरी माह में हमने एक प्रदर्शन की थी. पांच ऐसी महिलाओं का चयन किया गया जो अशिक्षित थी. इन सभी को टेबलेट दिया गया. जिसमें पहले से ही शिक्षा, स्वास्थ्य, पशुपालन के साथ ही और भी कई तरह के एप्लीकेशन पहले से ही इंस्टॉल थे, जो ग्रामीण जीवन से सीधा सरोकार रखते हैं. सभी महिलाओं को एक बार बताया गया कि इसे कैसे उपयोग में लाना है? अप्रत्याशित रुप से करीब 45 मिनट में उन सभी महिलाओं ने टेबलेट का प्रयोग करना सीख लिया. उनसे जब कहा गया कि वह बताये कि अगर रात में किसी को बुखार हो गया तो किस तरीके से वह टेबलेट की सहायता ले सकती हैं? तो उन्होंने एप्लीकेशन के जरिये बुखार के उपचार करने के तरीके को निकाल लिया. इन विषयों से संबंधित जितने भी एप्लीकेशन हैं, उनमें किस कार्य को कैसे किया जायेगा? इसकी दो-दो मिनट की फिल्म बना कर डाली गयी है.
जिससे साक्षरता की रोशनी से दूर रहने वाले लोग चित्रों, फिल्मों के जरिये जानकारी ले सके. खाली समय में महिलाएं टेबलेट के जरिये बच्चों को शिक्षा भी दे सकती हैं. इसमें बच्चों के प्रारंभिक पढ़ाई की भी जानकारी है. इस पूरी योजना पर करीब आठ से दस हजार करोड़ का खर्च होने का अनुमान है. इस योजना में हमारा ध्यान बिजली को लेकर भी है. हम उन क्षेत्रों में भी विशेष पहल कर रहे हैं, जहां बिजली की कमी है. क्योंकि टेबलेट को उपयोग में लाने के लिए बिजली की जरूरत होगी. इसलिए यह टेबलेट सौर ऊर्जा चलित होंगे. साथ ही इसके उपयोग के लिए एकाउंट को रिचार्ज कराने की जरूरत होगी तो इसके लिए भी हमने विशेष व्यवस्था करने की पहल की है. हम जैसे मोबाइल फोन में आपातकालीन कॉल की जाती है, उसी प्रकार की व्यवस्था होगी. इसके बाद की तकनीकी जिम्मेदारी हमारी विशेषज्ञ टीम संभालेगी. इसके अलावा राज्य के सभी पंचायतों को तकनीकी रुप से मजबूत करने के लिए वाई-फाई से जोड़ने की योजना है. इन सभी पर कार्य हो रहे हैं.
अतुल सिन्हा
प्रबंध निदेशक बेल्ट्रान बिहार