राजस्थान में इसी साल मार्च में अग्निशमन सेवाओं के लिए पहली बार 155 महिलाओं की भर्ती की गई है.
आग की लपटें बुझाना आसान काम नहीं है. यह शारीरिक क्षमता, फुर्ती और साहस का इम्तिहान है.
राजनीति विज्ञान में एमए और बीएड पास सीता खटीक पहले मेडिकल इंश्योरेंस का काम करती थीं. उनकी तनख्वाह भी अच्छी-ख़ासी थी लेकिन उन्हें शुरू से ही कुछ साहसिक करने की तमन्ना थी.
उन्हें जयपुर के बनीपार्क स्थित अग्नि शमन कार्यालय में नियुक्ति मिली है. वह कहती हैं, "दिल में हिम्मत हो, तो जोखिम को भी पार किया जा सकता है."
घर और प्रोफ़ेशन
शादी के वक्त सीता के पति होम गार्ड्स और सिविल डिफेन्स में काम करते थे. सीता को अपने पति का काम बहुत रोमांचित करता था.
इसमें करियर बनाने के लिए उन्होंने नागपुर जाकर 48 दिन की सिविल डिफेन्स की ट्रेनिंग ली. तब उनका बेटा महज 20 दिन का था. घर वाले नाराज़ हुए लेकिन पति ने उनका साथ दिया. वह भी छुट्टी लेकर साथ रहे और बच्चे का ध्यान रखा.
लेकिन सिविल डिफेन्स सेवा में वेकेंसी ही नहीं निकली पर जब राज्य सरकार ने 2011 में अग्नि शमन सेवा में महिलाओं से आवेदन मांगे तो सीता ने देर नहीं की. इसी बीच उन्होंने फायर फाइटिंग का भी छह माह का कोर्स किया.
मार्च से अब तक जयपुर में लगी पांच प्रमुख आग की घटनाओं में सीता एवं अन्य महिला फायर फाइटर्स ने बड़ी मुस्तैदी से हिस्सा लिया है.
वह बताती हैं कि एक केमिकल फैक्ट्री में लगी आग में कुछ सेकण्ड की भी देर हो जाती तो हम सब आग की चपेट में आ जाते.
प्रेरणा
जयपुर में सीता सहित छह महिलाओं को नियुक्ति मिली है. उन्हीं के साथ काम कर रहीं सुनीता कहती हैं कि सीता से सबको प्रेरणा मिलती है, क्योंकि वह बिलकुल डरती नहीं हैं.
निर्मला भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखती हैं.
आठ घंटे की शिफ्ट में खुद को फिट रखने के लिए नियमित व्यायाम जरूरी है.
हॉज़ रील को निकालना, समेटना और लैडर ड्रिल आदि के अलावा हॉज़ रील से पानी छोड़ते वक्त काफी कुशलता की ज़रूरत होती है. महिला फायर फाइटर्स यह सभी काम होशियारी से कर रही हैं.
मुख्य अग्नि शमन अधिकारी ईश्वर लाल जाट कहते हैं कि महिला फायर फाइटर्स बहुत ही अच्छा काम कर रही हैं. उम्मीद से कहीं बेहतर.
इन महिला फ़ायर फ़ाइटर्स को गर्व है कि किसी का जान-माल बचाने में ये योगदान दे पा रही हैं.
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