दुनिया पर मंडराया ‘इबोला’ का खतरा
इबोला! ये उस खतरे का नाम है, जो समूची दुनिया पर मंडरा रहा है. अमेरिका, यूरोप से लेकर भारत तक सभी देश इस खतरे से निबटने के लिए चौकन्न हो गये हैं. इबोला दरअसल उस वायरस का नाम है जो चार पश्चिमी अफ्रीकी मुल्कों को अपनी चपेट में ले चुका है.
माना जाता है कि इबोला का लाइलाज इंफेक्शन होने के बाद 90 फीसदी मामलों में मौत तय है. इसीलिए हर देश इस कोशिश में जुटा है कि उसके यहां तक न पहुंचे खतरनाक इबोला का संक्र मण.
अमेरिका के जार्जिया प्रांत के अटलांटा शहर के बाहरी इलाके में स्थित डॉबिंस एयर रिजर्व बेस पर इस शनिवार को सुबह करीब 11 बज कर 50 मिनट पर एक विशेष विमान ने लैंड किया. दरवाजा खुला, विमान से उस शख्स को उतारा गया, जिसे लेकर समूचे अमेरिका में खौफ है. सीएनएन समेत तमाम टीवी चैनल इस लम्हे का सीधा प्रसारण कर रहे थे.
आपका उस शख्स से परिचय करा दें, जिसे लेकर समूचा अमेरिका डरा हुआ है. ये हैं डॉक्टर केंट ब्रंटली. अफ्रीकी देश लाइबेरिया में मेडिकल मिशनरी. अमेरिका में उन्हें लेकर खौफ इसलिए है क्योंकि लाइबेरिया में वो खतरनाक इबोला वायरस के संक्र मण का शिकार हो गये हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 27 जुलाई तक ही 1323 लोग इबोला का शिकार हो चुके थे. इसके संक्र मण से 729 लोगों की मौत हो चुकी है.
इबोला वायरस के संक्र मण का कोई इलाज नहीं है. इबोला से बचने का कोई टीका या वैक्सीन भी नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इबोला वायरस को बेकाबू करार दे दिया है. इसका संक्र मण संक्र मित खून व शख्स को छूने से फैलता है. इसके शुरु आती लक्षण में अचानक बुखार, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द और गला खराब होना है. इबोला का पता सबसे पहले इसी साल मार्च में अफ्रीकी देश गिनी के जेरोकोर में चला था. तब से अब तक चार अफ्रीकी देशों को इबोला अपनी चपेट में ले चुका है. ये चार देश हैं-गिनी, सिएरा लियोन, लाइबेरिया और नाइजीरिया.
पूर्वी अफ्रीकी देश कांगों युगांडा और सुडान में भी इबोला का संक्र मण पहुंचने लगा है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इबोला का खतरा धीरे-धीरे फैलता जा रहा है.
40 साल पुराना
इबोला वायरस का संक्र मण शवों से बड़ी तेजी से फैलता है. 40 साल पहले साल 1976 में अफ्रीका में पहली बार इबोला संक्र मण का पता चला था. सूडान के मिजारा और कांगो का इबोलागिनी में एक साथ इबोला संक्र मण फैला था. कांगो की ही इबोला नदी के नाम पर इस वायरस का नाम इबोला पड़ गया. तब से अब तक अफ्रीका में 15 बार इबोला संक्र मण फैल चुका है.
हर बार कुछ तय सावधानियां और तौर-तरीके अपना कर इबोला को महमारी बनने से रोकने में सफलता पायी जा चुकी है. साल 2012 में भी युगांडा में अस्पताल के आसपास असुरक्षित आवाजाही रोक कर और दूसरी सावधानियों के जरिये इबोला संक्र मण को रोका गया था.
बचाव ही उपचार
इबोला संक्र मण का कोई तय इलाज नहीं है, लेकिन मरीज को बिल्कुल अलग जगह पर रख कर उसका इलाज किया जाता है, ताकि संक्र मण बाकी जगह न फैले. मरीज में पानी की कमी नहीं होने दी जाती. उसके शरीर में ऑक्सीजन स्तर और ब्लड प्रेशर को सामान्य रखने की कोशिश की जाती है.
इबोला का पता लगाने के लिए कई तरह के टेस्ट कराये जा सकते हैं, जिनमें एलिसा (एंटीबॉडी-कैप्चर एंजाइम लिंक्ड इम्योनोसोरबेंट एसे), एंटीजेन डिटेक्शन टेस्ट्स, सीरम न्यूट्रलाइजेशन टेस्ट्स, आर-टीपीसीआर (रिवर्स ट्रांसिक्र प्टेज पोलीमेरेज चेन रिएक्शन), इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (सेल कल्चर के द्वारा वायरस अलग करना) है.
विश्व बैंक देगा 20 करोड़ डॉलर
इस बीच, विश्व बैंक ने कहा है कि वह गिनी, लाइबेरिया और सिएरा लियोन जैसे पश्चिमी अफ्रीकी देशों को इबोला महामारी से मुकाबले के लिए 20 करोड़ डॉलर की मदद मुहैया करायेगा. विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा कि इस वायरस के प्रसार पर वह निगरानी बनाये हुए है. वह इस बात से बहुत दुखी हैं कि स्वास्थ्य के मामले में पहले से ही कमजोर इन तीनों देशों को यह बीमारी और कमजोर कर रही है. जिम योंग किम स्वयं संक्रमित बीमारियों के विशेषज्ञ हैं.
किम ने कहा, ‘मैं इस बात से बेहद चिंतित हूं कि यदि हम इबोला महामारी को रोक नहीं पाये, तो कई और लोगों के जीवन को खतरा उत्पन्न होगा.’
हवाई यात्रियों पर नजर
उधर, अमेरिकी हवाई अड्डों पर सरकारी एजेंट फ्लू जैसे लक्षण वाले अफ्रीकी यात्रियों पर नजर रख रहे हैं, जो कि इबोला महामारी से जुड़े हो सकते हैं. इस सप्ताह वाशिंगटन में होने वाले एक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए 50 से भी अधिक देशों के प्रतिनिधि यहां पहुंच रहे हैं. सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार यदि किसी यात्री के इबोला के विषाणु से प्रभावित होने के बारे में पता चलता है तो उस पर निगरानी रखी जायेगी और उसका चिकित्सकीय जांच की जायेगी.