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सुगंध से आकर्षित हो रहीं हैं बड़ी कंपनियां

पंचायतनामा डेस्क कर्म करने से तकदीर जरूर बदलती है. यह सत्य है. इसका उदाहरण अगर देखना हो तो बोधगया चले आइए. अपने कर्म के दम पर यहां की महिलाओं ने उन कंपनियों को अपने दरवाजे तक बुला लिया है, जो अभी तक इस मेहनत से अंजान थी. दरअसल अभी तक बिचौलिये के चंगुल में फंसा […]

पंचायतनामा डेस्क

कर्म करने से तकदीर जरूर बदलती है. यह सत्य है. इसका उदाहरण अगर देखना हो तो बोधगया चले आइए. अपने कर्म के दम पर यहां की महिलाओं ने उन कंपनियों को अपने दरवाजे तक बुला लिया है, जो अभी तक इस मेहनत से अंजान थी. दरअसल अभी तक बिचौलिये के चंगुल में फंसा इनका कारोबार, जब अपने स्वतंत्र रुप में सामने आया है, तो संभावनाओं और उम्मीदों के दरवाजे खुद इनके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं.

धूमिल पहचान को मिली जान

दरअसल गया जिले के बोधगया, डोभी और पड़ोस के राजगीर के आस- पास के क्षेत्रों में अगरबत्ती बनाने का काम वर्षो से होता रहा है. यह काम इन क्षेत्रों में परंपरागत रुप से होता रहा है. इस काम को मुख्यत: अल्पसंख्यक और समाज के उस वर्ग से जुड़ी महिलाएं करती रही हैं, जो अंतिम कतार से ताल्लुक रखती हैं. पहले से भी इस कार्य को यह करती रही हैं, लेकिन तब यह कार्य इतने वृहद रुप में नहीं होता था. यह कार्य असंगठित था. महिलाओं के हित के लिए कार्य करने वाली संस्था ने इसे देखा तो इस पूरी संरचना को दुरुस्त करने को सोचा. इसके लिए इन महिलाओं को संगठित करने की प्रक्रिया शुरू की गयी.

तैयार किया गया ढ़ांचा

महिलाओं को संगठित कर के एक ऐसा ढांचा बनाने की पहल की गयी, जिससे सभी महिलाएं जुड़ कर अपने मेहनत को सार्थक कर सके. इसके लिए समूह बनाने की शुरुआत की गयी. महिलाओं को यह बताया गया कि समूह बनाने से क्या-क्या लाभ मिल सकता है? शुरू में कुछ परेशानी हुई लेकिन जब इन महिलाओं ने यह समझा कि समूह से साथ जुड़ कर ज्यादा लाभ मिल सकता है तो इन्होंने जुड़ने की स्वीकृति भर दी.

मेहनत को मिला सम्मान

आर्थिक रुप से कमजोर इन महिलाओं के लिए संस्था ने सबसे पहले पैसों की मदद की. अपने स्तर पर पहल करते हुए इन्हें एक राशि प्रदान की गयी, जिससे यह एक ऐसा ढांचा बना सके और अगरबत्ती बनाने में जरूरी कच्चे माल को खरीदा जा सके. अगरबत्ती बनाने में लगने वाले कच्चे माल जैसे चारकोल पाउडर, जिगिट, नुरवा पाउडर और बांस की तिल्ली का प्रयोग होता है. इनके लिए सबसे अच्छी बात यह है कि ये सारे सामान स्थानीय बाजारों में सुगमता से मिल जाते हैं. संस्था ने इन सभी को इस बात के लिए समझाया कि दिन में अपने घर के कार्य को पूरा कर के केवल तीन-चार घंटे कार्य कर के ही घर के हालात को बदला जा सकता है.

कंधे पर उठाया भार

समूह के काम को करने और उसे सुचारु रुप से संचालित करने के लिए इन महिलाओं ने खुद सारा भार उठा रखा है. सभी महिलाओं को गुणवत्ता युक्त अगरबत्ती का उत्पादन करने से लेकर उसके भंडारण करने का भी जिम्मा इनके ही हाथों में होता है.

कंपनियों ने दिया मेहनत को सम्मान

कर्नाटक राज्य के मंगलौर शहर के बाद सूबे के गया की पहचान अब एक दूसरे रुप में भी हो रही है. वैसे तो पूरी दुनिया में गया शहर की पहचान महात्मा बुद्ध के ज्ञानस्थली के रुप में रही है, लेकिन इन कर्मठ महिलाओं ने अपने मेहनत के दम पर इस शहर को नयी पहचान दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. मंगलौर की पहचान पूरे इंडिया में जहां अगरबत्ती के सबसे बड़े हब में रुप में है, वहीं गया दूसरे हब के रुप में तेजी से उभर रहा है. यह पहचान इन महिलाओं के बदौलत ही बनी है. इन्होंने अपने मेहनत के दम पर अपने साथ-साथ पूरे इलाके में आर्थिक रुप से सबल होने के संदेश को हर घर में पहुंचाने का कार्य किया है.

कंपनियों ने मांगी अगरबत्तियां

गत 2013 में इन महिलाओं की मेहनत की सुगंध आइटीसी जैसी कंपनी के पास पहुंची. यह कंपनी पहले मंगलौर से अगरबत्ती लेती रही है. संस्था के पहल पर कंपनी ने अगरबत्ती खरीदने की इच्छा जतायी. इसके लिए एक एकररानामे हुआ. इनकी गुणवत्ता को देखते हुए एक महीने में 50 टन अगरबत्ती आपूर्ति करने का आर्डर मिला. यह आर्डर इन महिलाओं के लिए किसी आश्र्चय से कम नहीं था, लेकिन तमाम मेहनत के बाद भी 50 टन के आर्डर को पूरा नहीं किया जा सका है. अभी ये महिलाएं माह में 15 से 20 टन अगरबत्ती ही आपूर्ति कर पा रही हैं. अभी तक इन महिलाओं ने अपने मेहनत के दम पर कंपनी से करीब सवा दस लाख रुपये की अगरबत्ती की आपूर्ति किया है. जिसका भुगतान भी कर दिया गया है.

बढ़ रहा है कारवां

कंपनी से मिले इतने बड़े आर्डर ने इनके लिए संजीवनी का काम किया है. अपनी मेहनत को इतना सम्मान मिलता देख बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़ रही हैं. संस्था के अधिकारी बताते हैं, पहले जहां समझा कर महिलाओं को समूह बनाने की बात कही गयी थी, वहीं अब खुद महिलाएं इससे जुड़ रही हैं. अगरबत्ती बनाने वाली इन महिलाओं की समूह की संख्या पहले जहां 12 थी, वहीं अब यह बढ़ कर 50 के करीब हो गयी है. संस्था के सूत्र बताते हैं कि इस वर्ष अगस्त तक 17 और अक्तूबर, नवंबर तक 30 और वित्त वर्ष खत्म होते- होते कुल 104 समूह बनाने का लक्ष्य रखा गया है. ध्येय केवल एक ही है कि ज्यादा से ज्यादा आधी आबादी अपने पैरों पर खड़ी हो सके. एक समूह में कम से कम चालीस महिलाएं रहती हैं.

क्वालिटी का रखती हैं ध्यान

अगरबत्ती बनाने के क्रम में ये महिलाएं एक दूसरे का ख्याल रखते हुए अगरबत्तियों के गुणवत्ता पर खास ध्यान रखती हैं. इसमें अगरबत्ती की लंबाई, मिश्रण का स्तर, लचीलापन और उच्च सामानों का ख्याल रखा जाता है.

पाठकगण ज्यादा जानकारी के लिए निम्‍न पते पर संपर्क कर सकते हैं –

चंदा जीविका महिला अगरबत्ती उत्पादक समूह

ग्राम – झीकटिया, पंचायत – चेरकी

प्रखंड – बोधगया, जिला – गया

मोबाइल नंबर – 07542023846

तोड़ा बिचौलियों का जाल
अरसे से काम करे रही इन महिलाओं को इलाके के उन बिचौलियों ने अपने जाल में फंसा रखा था. इनकी मेहनत पर अपनी जेब भर रहे बिचौलिये मेहनत की एवज में बहुत कम पैसे का भुगतान करते थे. प्रति किलो 15 से 18 रुपये का भुगतान करके इसी अगरबत्ती को 25 रुपये प्रति किलो तक में बेच कर मुनाफा कमाया जाता था. ये बिचौलिये इन अगरबत्तियों में कोई ना कोई कमी निकाल कर जान बूझ कर कम भुगतान करते थे. जानकारी के अभाव में ये कुछ कह नहीं पाती थी. संस्था ने जब पहल की तब बिना किसी रूकावट के शुरू से ही इन महिलाओं को 25 रुपये प्रति किलो का भुगतान देना शुरू कर दिया गया. अपने मेहनत को इतना सम्मान मिलता देख महिलाओं ने और भी मेहनत करना शुरू कर दिया. एक महिला प्रतिदिन मात्र तीन से चार घंटे की मेहनत कर के पचास से साठ रुपये अजिर्त करने में सक्षम हो गयी है.

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