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मॉनसून की छइं-छप-छइं

‘मॉनसून’ ने अपनी सुहावनी दस्तक दे दी है. इसके आते ही सभी के होठों पर मुस्कान छा जाती है. बच्चे-बूढ़े सभी को मॉनसून की बारिश का इंतजार रहता है. बच्चों के लिए बारिश का मतलब है मस्ती. बारिश में भींगना, घर की छाजन से गिरते पानी से अठखेलियां करना, बहते पानी में चलना, दोस्तों से […]

‘मॉनसून’ ने अपनी सुहावनी दस्तक दे दी है. इसके आते ही सभी के होठों पर मुस्कान छा जाती है. बच्चे-बूढ़े सभी को मॉनसून की बारिश का इंतजार रहता है. बच्चों के लिए बारिश का मतलब है मस्ती. बारिश में भींगना, घर की छाजन से गिरते पानी से अठखेलियां करना, बहते पानी में चलना, दोस्तों से छाता शेयर करना, कीचड़ में खेलना, पानी में चलना, ऐसी मस्ती को बच्चे खूब एंजॉय करते हैं. इसलिए बारिश का मौसम बच्चों को बहुत भाता है.

कैसे आता है मॉनसून
अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से मॉनसून बना है. हालांकि, हमारे देश में मॉनसून का मतलब हवा की जानकारी देना होता है. केरल में मॉनसून को ‘काला वर्षा’ भी कहा जाता है. ‘मॉनसून’ मौसमी पवनों को कहते हैं, जो ठंड में महाद्वीपों से महासागरों की ओर चलती है, तो गरमी में महासागरों से महाद्वीपों की ओर. भारत में मॉनसून का मतलब बारिश होता है, लेकिन यहां मॉनसून हिंद महासागर व अरब सागर की ओर से हिमालय की ओर आनेवाली हवाओं पर निर्भर है.

जब ये हवाएं भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर पश्चिमी घाट से टकराती है, तो भारत और आसपास के देशों में भारी वर्षा होती है. ये हवाएं दक्षिण एशिया में जून से सितंबर तक सिक्र य रहती हैं.

बारिश की वजह
समुद्र, झील, तालाब और नदियों का पानी सूरज की गरमी से वाष्प बन कर ऊपर उठता है. इस वाष्प से बादल बनते हैं. ये बादल जब ठंडी हवा से टकराते हैं, तो इनमें रहने वाले वाष्प के कण पानी की बूंद बन जाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे कमरे की हवा में रहने वाली वाष्प फ्रिज से निकाले गये ठंडे के कैन से टकरा कर पानी की बूंद बन जाती है. बूंदों वाले बादल भारी होकर धरती के पास आ जाते हैं. बूंदें धरती की आकर्षण शक्ति से खिंच कर वर्षा के रूप में बरस जाती हैं. इस प्रकार धरती से बादल और बादल से धरती तक यात्रा करता हुआ पानी सदा गतिमान रहता है.

मॉनसून मतलब पानी ही पानी
मॉनसून गरमी से छुटकारा तो दिलाता ही है, बच्चों के लिए मॉनसून मस्ती भी लेकर आता है. इस मौसम में सभी स्कूल खूल चुके होते हैं. खेल पीरियड में अगर बारिश हो जाये, तो फिर मजा डबल हो जाता है, खास कर वॉलीबॉल, फुटबॉल, हॉकी, बास्केटबॉल जैसे खेलों में. अगर बारिश लगातार हो रही हो, तो बच्चों को कोशिश करनी चाहिए की मस्ती ज्यादा न करें. अधिकतर बच्चे बारिश में भीगने का बहाना ढ़ूंढते रहते हैं. खेल-कूद, पानी में छप-छप करना, दोस्तों को भिंगोना, उन्हें छींटे मारना, अपनी नाव बना कर तैराना, किसकी नाव दूर तक जायेगी, ऐसे खेल बच्चों के लिए बड़े मजेदार होते हैं.

एल-नीनो के हाथ में है बरसात की बागडोर
मॉनसून का समय तो पूर्वानुमान द्वारा जाना जा सकता है, लेकिन मॉनसून कब अच्छा आयेगा और कब नहीं ये हम नहीं जान सकते. इसका सबसे अच्छा जरिया है एल नीनो. एल नीनो की गतिविधियों को ध्यान में रख कर वैज्ञानिक ये पता लगा सकते हैं. सच कहें तो गहरे समुद्र में घटने वाली एक हलचल यानी एल नीनों ही किसी मॉनसून का भविष्य तय करती है. एल-नीनो कहीं प्रकृति का उपहार बन कर आती है, तो कहीं यह विनाश.

बॉलीवुड में बरसात का फंडा
कौंधती बिजली, गरजते बादल और बरसती बूंदें, यही तो पहचान है मॉनसून की. बॉलीवुड और मॉनसून की फुहारों का रिश्ता बहुत ही पुराना रहा है. बारिश में ऐसी कई फिल्में फिल्मायी जाती हैं, जो लोगों को काफी पसंद आती है. सबसे पहले 1949 में सावन शीर्षक से पहली फिल्म बनी. फिल्मों में हीरो-हिरोइन के अलावा बच्चे कलाकार भी बारिश में काफी झूमते नजर आते हैं.

दिल तो पागल है का, घोड़े जैसी चाल- चक धूम-धूम में एक साथ कई बच्चों को थिरकते हुए देखा गया है. कोई मिल गया फिल्म का गीत, इधर चला-मैं उधर चला को भी हम लोगों ने काफी पसंद किया है. ऐसा नहीं है कि बरसात सिर्फ गानों में ही दिखी, बरसात ने फिल्मों में पात्र की तरह भी कमाल दिखाती रही है. कभी कहानी में ट्विस्ट लाना हो या क्लाइमेक्स को रोमांचक बनाना हो, बरसात हमेशा हिट साबित हुई. ऑस्कर के लिए नामित भारतीय फिल्म लगान की कहानी में बदलाव बरसात की वजह से ही आया. पूरा गांव गाना घनन घनन ..भी गा बैठा, लेकिन बरसात ने धोखा दे किया, गरीब लोग खेती नहीं कर पाये और लगान देने में असमर्थ लोगों के दुख ने भुवन यानी आमिर खान को अंगरेजी साम्राज्य से लोहा लेने के लिए प्रेरित किया.

फिल्म का क्लाइमेक्स तो देखिये, मैच जीतने की खुशी में नाचते गांव वालों पर झमाझम बूंदे गिरने लगी, लगा जैसे अपना उद्देश्य पूरा होते ही बरसात भी गांव वालों की खुशी में शरीक होने आ गयी.

बारिश का स्वर्ग चेरापूंजी
चेरापूंजी को पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड भी कहा जाता है. लोग इसे बारिश का स्वर्ग भी कहते हैं. सैलानी यहां सिर्फ बारिश का मजा लेने आते हैं. बारिश के मौसम में तो इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. चेरापूंजी मेघालय की राजधानी शिलांग से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

बारिश की राजधानी के रूप में चेरापूंजी समुद्र से लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हाल ही में इसका नाम चेरापूंजी से बदलकर सोहरा रख दिया गया है. यहां औसत वर्षा 10,000 मिलीमीटर का रिकॉर्ड है. ऊंचाई से गिरते पानी के फव्वारे, कुहासे के समान मेघों को देखने का अपना अलग ही अनुभव है. यहां खासी जनजाति के लोग मॉनसून का स्वागत पारंपरिक अंदाज में करते हैं. मेघों को लुभाने के लिए लोक गीत और लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है. यह स्थान दुनियाभर में सर्वाधिक बारिश के लिए प्रसिद्ध है.

प्रसिद्ध गुफाएं
यहां नोहकालीकाई झरने के साथ-साथ कई गुफाएं भी हैं. यहां पत्थरों ने गुफा के अंदर कई आकार लिए हैं. कहीं हाथी, घोड़ा, हिरण तो कहीं किसी फूल-पक्षी की आकृति. कहीं सर्प बना दिखता है तो कहीं शिवलिंग.

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