यह कहानी है दुनियाभर के उन हजारों उद्यमियों में से एक की, जिन्होंने आसान नहीं बल्कि मुश्किल रास्तों को चुना और कुछ अलग करने की हिम्मत दिखायी. वे कमियों के बीच पैदा हुए. उन्हें किस्मत, मां और ईश्वर के आशीर्वाद से मैनेजमेंट के बेहतरीन संस्थान (आइआइएम, अहमदाबाद) में पढ़ाई करने का मौका मिला. गरीबी को बचपन से बड़े होने तक अपने दोस्त के रूप में साथ पाया. इससे लाखों की नौकरी ठुकराना आसान हुआ. उनका कहना है- ‘कई लाख की नौकरी मेरा और मेरी मां का पेट भर सकती थी, पर उन लोगों का नहीं जिनके साथ मैं बचपन से बड़े होने तक उठा-बैठा, पढ़ा-लिखा और खेला-कूदा था.’
नाम है ई सरत बाबू एलुमलाई. जन्म चेन्नई की एक झुग्गी बस्ती इलाके में हुआ. इन्होंने आइआइएम अहमदाबाद से अपनी पढ़ाई पूरी की. इसके बाद बिना किसी डर और हिचक के भारत के दक्षिण हिस्से में फूड किंग केटरिंग नाम से रेस्त्रं की एक चेन शुरू की. नौकरी ठुकरा कर व्यापार करने का मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों को नौकरी देना और कम से कम कीमत में बेहतरीन खाना उपलब्ध कराना था. एक लाख रुपये से शुरू किया गया यह व्यापार आज करीब आठ करोड़ की सालाना आय तक पहुंच गया है. साथ ही देश में इसकी छह चेन हैं.
पढ़ाई का दौर
सरत कहते हैं कि मुङो गर्व है कि एक स्कॉलरशिप के माध्यम से मुङो प्रबंधन के बेहतरीन संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैंनेजमेंट, अहमदाबाद में पढ़ने का मौका मिला. पढ़ाई पूरी करने के बाद लाखों के पैकेज की कई नौकरियों के ऑफर मिले, पर मन में बस एक सवाल था कि मुङो क्या करना चाहिए? इसका जवाब भी मेरे दिल ने ही दिया. मुङो लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे मैं उन लोगों की थोड़ी भी मदद कर सकूं, जिनके साथ मैं रहा, पला और बड़ा हुआ हूं. मेरा लक्ष्य था कि मैं कुछ ऐसा करूं, जिससे उन लोगों की जिंदगी में बदलाव आये. आइआइएम पहुंचने से पहले मैं भी अपनी मां के साथ इडली बेचता था, जिससे उनकी थोड़ी मदद हो सके.
कितना मुश्किल था निर्णय लेना
जिस वक्त मैंने खुद से यह सवाल किया था कि मुङो पढ़ाई पूरी करने के बाद क्या करना चाहिए, उसी वक्त महसूस कर लिया था कि नौकरी मेरे लिए तो फायदेमंद होगी, पर अगर मैं कोई व्यवसाय या व्यापार करूंगा, तो इससे कई लोगों को रोजगार मिल सकता है. कई लोगों ने यह भी कहा कि यह एक मूर्खतापूर्ण कदम है. लेकिन मुङो किसी चीज का डर नहीं था. असल में मेरे पास खोने के लिए कुछ था ही नहीं, जिससे मुङो डर लगता. मुङो पता था कि अगर मैं कैरियर को दांव पर लगानेवाला
कदम उठा भी रहा हूं, तो इसमें भगवान की ही इच्छा है.
कब रखी रेस्त्रं की नींव
2006 में भारत के दक्षिण हिस्से में फूड किंग रेस्त्रं नामक चेन की शुरुआत हुई. सरत कहते हैं कि मुङो मालूम था कि यह सफर इतना आसान नहीं है. इसमें कई दिक्कतें आयेंगी. यह भी पता था कि बेरोजगारी और भुखमरी भारत के लिए बड़ी समस्या है. मेरा मानना है कि कोई भी पहल छोटी नहीं होती. मैंने एक लाख रुपये से इस रेस्त्रं की शुरुआत की. अब इसमें 300 से ज्यादा गरीब और बेरोजगार लोग काम कर रहे हैं. अब इसकी वार्षिक आय करीब आठ करोड़ रुपये हो चुकी है. भारत में फूडिंग के क्षेत्र में काफी प्रतियोगिता है. असल में यहां के लोगों में खाने के स्वाद की समझ है. लोग उस पर अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं. साथ ही मुङो यह भी मालूम था कि अगर फूडिंग के क्षेत्र में टिकना है, तो हमें हर दिन पिछले दिन से बेहतर करना होगा. तभी लोग हम पर विश्वास करेंगे और अगले दिन दोबारा आयेंगे.
मां न होती तो..
सरत की मां ने उन्हें पढ़ाने के लिए हर वह काम किया जो सामाजिक औरतें करने से कतराती हैं. उन्होंने पढ़ाई की मूल जरूरत को समझते हुए सरत और उनके भाई-बहनों को पढ़ाने के लिए सड़कों के किनारे इडली तक बेची. वे आंगनवाणी की कर्मचारी थीं. सुबह इडली बेचती थीं. दिन में आंगनवाणी में मिड-डे मील के लिए काम करती थी. शाम को भारत सरकार के विभिन्न शैक्षणिक प्रोग्रामों के लिए काम करतीं. सरत कहते हैं कि मेरे जहन में वह समय न मिटनेवाली स्याही से लिख गया है, जिसे कभी नहीं भूलाया जा सकता. मां ने उन पैसों को बचाने के लिए हमारे बचपन में न जाने कितनी रातें सिर्फ पानी पी कर काटीं, जिससे हम अपनी पढ़ाई कर सकें, हमें भर-पेट खाना मिल सके. मेरी जिंदगी के हर फैसले की प्रेरणा मेरी मां हैं. उन्होंने शुरू से अब तक हर कदम पर मेरा साथ और आगे बढ़ने का उत्साह दिया. मां ने जीवन में असफलताओं से लड़ना सिखाया है. उनके संघर्ष को देख कर ही मेरे अंदर आगे बढ़ने की ललक पैदा हुई.
उत्साह और ऊर्जा का श्रोत है मां
सरत कहते हैं कि जब भी कभी मैं परेशान होता हूं या मुङो निराशा घेरने लगती है, मुश्किलें मुझ पर हावी होने लगती हैं, तो बस अपनी मां को याद करता हूं. सोचता हूं कि जब मेरी मां अकेली हम सब भाई-बहनों को पाल सकती हैं, हमारे लिए इतने दुख उठा सकती हैं, तो मैं जिंदगी में ऐसा कोई कदम क्यों नहीं उठा सकता, जिससे कम से कम कुछ जरूरतमंद लोगों का फायदा हो. मेरे साथ काम करनेवाले लोगों की जरूरतें और लगन मुङो हर दिन कुछ नया करने की सीख देती हैं.
क्या है संदेश
अकसर विभिन्न कॉलेजों और संस्थानों में अपने अनुभवों को विद्यार्थियों से साझा करनेवाले सरत बाबू कहते हैं कि मैं युवाओं को खुद का व्यवसाय खोलने की सलाह देता हूं. इसके पीछे सिर्फ एक ही मकसद होता है. वह यह कि, इससे भारत में नौकरियां पैदा होंगी और बेरोजगारी कम करने में मदद मिलेगी.
यह है इनकी पहचान
परिचय : एक गरीब इंसान (सरत बाबू एलुमलाई, फूड किंग केटरिंग चेन रेस्त्रां के सीइओ)
पढ़ाई का मकसद : गरीबी मिटाना
व्यवसाय का मकसद : बेरोजगारी मिटाना
काम : फूड चेन को व्यवस्थित रूप से चलाना.
खुशी : आज कई युवाओं को नौकरी दे पा रहे हैं और कम कीमत में अच्छा खाना भी.
सरत बाबू ने 2010 में ‘हंगर फ्री इंडिया’ नाम से एक फाउंडेशन की शुरुआत की. इसके पीछे उनका लक्ष्य आनेवाले 20 वर्षो में देश से भुखमरी का अंत करना है. वे देश के लोगों से अपील करते हैं कि 10 अक्तूबर को ‘हंगर फ्री डे’ के नाम से जानें और इसके लिए काम करें.
नाम है ई सरत बाबू एलुमलाई. जन्म चेन्नई की एक झुग्गी बस्ती इलाके में हुआ. इन्होंने आइआइएम अहमदाबाद से अपनी पढ़ाई पूरी की. इसके बाद बिना किसी डर और हिचक के भारत के दक्षिण हिस्से में फूड किंग केटरिंग नाम से रेस्त्रं की एक चेन शुरू की. नौकरी ठुकरा कर व्यापार करने का मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों को नौकरी देना और कम से कम कीमत में बेहतरीन खाना उपलब्ध कराना था. एक लाख रुपये से शुरू किया गया यह व्यापार आज करीब आठ करोड़ की सालाना आय तक पहुंच गया है. साथ ही देश में इसकी छह चेन हैं.
पढ़ाई का दौर
सरत कहते हैं कि मुङो गर्व है कि एक स्कॉलरशिप के माध्यम से मुङो प्रबंधन के बेहतरीन संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैंनेजमेंट, अहमदाबाद में पढ़ने का मौका मिला. पढ़ाई पूरी करने के बाद लाखों के पैकेज की कई नौकरियों के ऑफर मिले, पर मन में बस एक सवाल था कि मुङो क्या करना चाहिए? इसका जवाब भी मेरे दिल ने ही दिया. मुङो लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे मैं उन लोगों की थोड़ी भी मदद कर सकूं, जिनके साथ मैं रहा, पला और बड़ा हुआ हूं. मेरा लक्ष्य था कि मैं कुछ ऐसा करूं, जिससे उन लोगों की जिंदगी में बदलाव आये. आइआइएम पहुंचने से पहले मैं भी अपनी मां के साथ इडली बेचता था, जिससे उनकी थोड़ी मदद हो सके.
कितना मुश्किल था निर्णय लेना
जिस वक्त मैंने खुद से यह सवाल किया था कि मुङो पढ़ाई पूरी करने के बाद क्या करना चाहिए, उसी वक्त महसूस कर लिया था कि नौकरी मेरे लिए तो फायदेमंद होगी, पर अगर मैं कोई व्यवसाय या व्यापार करूंगा, तो इससे कई लोगों को रोजगार मिल सकता है. कई लोगों ने यह भी कहा कि यह एक मूर्खतापूर्ण कदम है. लेकिन मुङो किसी चीज का डर नहीं था. असल में मेरे पास खोने के लिए कुछ था ही नहीं, जिससे मुङो डर लगता. मुङो पता था कि अगर मैं कैरियर को दांव पर लगानेवाला कदम उठा भी रहा हूं, तो इसमें भगवान की ही इच्छा है.
कब रखी रेस्त्रं की नींव
2006 में भारत के दक्षिण हिस्से में फूड किंग रेस्त्रं नामक चेन की शुरुआत हुई. सरत कहते हैं कि मुङो मालूम था कि यह सफर इतना आसान नहीं है. इसमें कई दिक्कतें आयेंगी. यह भी पता था कि बेरोजगारी और भुखमरी भारत के लिए बड़ी समस्या है. मेरा मानना है कि कोई भी पहल छोटी नहीं होती. मैंने एक लाख रुपये से इस रेस्त्रं की शुरुआत की. अब इसमें 300 से ज्यादा गरीब और बेरोजगार लोग काम कर रहे हैं. अब इसकी वार्षिक आय करीब आठ करोड़ रुपये हो चुकी है. भारत में फूडिंग के क्षेत्र में काफी प्रतियोगिता है. असल में यहां के लोगों में खाने के स्वाद की समझ है. लोग उस पर अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं. साथ ही मुङो यह भी मालूम था कि अगर फूडिंग के क्षेत्र में टिकना है, तो हमें हर दिन पिछले दिन से बेहतर करना होगा. तभी लोग हम पर विश्वास करेंगे और अगले दिन दोबारा आयेंगे.
मां न होती तो..
सरत की मां ने उन्हें पढ़ाने के लिए हर वह काम किया जो सामाजिक औरतें करने से कतराती हैं. उन्होंने पढ़ाई की मूल जरूरत को समझते हुए सरत और उनके भाई-बहनों को पढ़ाने के लिए सड़कों के किनारे इडली तक बेची. वे आंगनवाणी की कर्मचारी थीं. सुबह इडली बेचती थीं. दिन में आंगनवाणी में मिड-डे मील के लिए काम करती थी. शाम को भारत सरकार के विभिन्न शैक्षणिक प्रोग्रामों के लिए काम करतीं. सरत कहते हैं कि मेरे जहन में वह समय न मिटनेवाली स्याही से लिख गया है, जिसे कभी नहीं भूलाया जा सकता. मां ने उन पैसों को बचाने के लिए हमारे बचपन में न जाने कितनी रातें सिर्फ पानी पी कर काटीं, जिससे हम अपनी पढ़ाई कर सकें, हमें भर-पेट खाना मिल सके. मेरी जिंदगी के हर फैसले की प्रेरणा मेरी मां हैं. उन्होंने शुरू से अब तक हर कदम पर मेरा साथ और आगे बढ़ने का उत्साह दिया. मां ने जीवन में असफलताओं से लड़ना सिखाया है. उनके संघर्ष को देख कर ही मेरे अंदर आगे बढ़ने की ललक पैदा हुई.
उत्साह और ऊर्जा का श्रोत है मां
सरत कहते हैं कि जब भी कभी मैं परेशान होता हूं या मुङो निराशा घेरने लगती है, मुश्किलें मुझ पर हावी होने लगती हैं, तो बस अपनी मां को याद करता हूं. सोचता हूं कि जब मेरी मां अकेली हम सब भाई-बहनों को पाल सकती हैं, हमारे लिए इतने दुख उठा सकती हैं, तो मैं जिंदगी में ऐसा कोई कदम क्यों नहीं उठा सकता, जिससे कम से कम कुछ जरूरतमंद लोगों का फायदा हो. मेरे साथ काम करनेवाले लोगों की जरूरतें और लगन मुङो हर दिन कुछ नया करने की सीख देती हैं.
क्या है संदेश
अकसर विभिन्न कॉलेजों और संस्थानों में अपने अनुभवों को विद्यार्थियों से साझा करनेवाले सरत बाबू कहते हैं कि मैं युवाओं को खुद का व्यवसाय खोलने की सलाह देता हूं. इसके पीछे सिर्फ एक ही मकसद होता है. वह यह कि, इससे भारत में नौकरियां पैदा होंगी और बेरोजगारी कम करने में मदद मिलेगी.