प्रो विनय कुमार यादव ने बेंगलुरु में लाखों छात्रों को जोड़ दस वर्षो तक किया संघर्ष
शैलेश कुमार, पटना
जब विलियम शेक्सपीयर के घर को म्यूजियम में बदला जा सकता है, तो भारत का शेक्सपीयर कहे जानेवाले प्रेमचंद के घर को क्यों नहीं? बेंगलुरु के बिशप कॉटन गर्ल्स कॉलेज में करीब 10 साल पहले बारहवीं की हिंदी के क्लास में यह सवाल उठा.
प्रो विनय कुमार यादव, जो मूल रूप से बिहार के जमालपुर स्थित फुल्का गांव के निवासी हैं, वे उस वक्त डॉ चंद्रिका प्रसाद लिखित ‘लमही: मुंशी प्रेमचंद का गांव’ नामक पाठ छात्राओं को पढ़ा रहे थे.
यही वह समय था, जब प्रोफेसर विनय और उनकी छात्राओं ने प्रण लिया कि यूपी में वाराणसी के निकट लमही में स्थित प्रेमंचद के घर की मरम्मत करवा कर उसे संग्रहालय में तब्दील करा कर ही दम लेंगे.
प्रोफेसर ने छात्राओं के साथ मिल कर बेंगलुरु के अलग-अलग कॉलेजों का दौरा करके एक लाख से भी अधिक छात्रों का हस्ताक्षर हासिल किया. उन्हें कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति, मैसूर हिंदी प्रचार परिषद, सिद्धार्थ सांस्कृतिक समिति, आदर्श विद्या केंद्र, शेषाद्रीपुरम कॉलेज और बेंगलुरु विश्वविद्यालय आदि का भी समर्थन मिल गया.
उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के नाम एक पत्र एक लाख हस्ताक्षर की प्रति के साथ भेजा, जिसमें ‘कलम का सिपाही’ कहे जानेवाले प्रेमचंद के लमही स्थित घर की जजर्र स्थिति का जिक्र करते हुए उसकी मरम्मत करा कर उसे संग्रहालय में बदलने की अपील की गयी. साथ ही वहां एक पुस्तकालय बनाने की भी मांग की गयी, जिसमें देश-दुनिया से आनेवाले पर्यटकों के पढ़ने के लिए प्रेमचंद के साहित्य उपलब्ध हों.
शुरुआत में उनकी मुलाकात मुलायम सिंह से नहीं हो पायी, लेकिन उनके पत्र के आधार पर वर्ष 2006 में मुख्यमंत्री ने प्रोफेसर विनय को इस संबंध में आयोजित बैठक में भाग लेने के लिए लखनऊ आमंत्रित किया और उनकी मांगें जल्द पूरा करने का आश्वासन भी दिया.
हालांकि सरकार बदलने के बाद यह प्रोजेक्ट लंबे अरसे के लिए लटक गया, लेकिन प्रोफेसर ने हार नहीं मानी. दोबारा जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, तो किसी कार्यवश बेंगलुरु आये अखिलेश यादव से उन्होंने मुलाकात की और प्रोजेक्ट को पूरा करने की याद दिलायी.
जारी रहेगा प्रयास
‘‘आजादी की लड़ाई और समाज सुधार आंदोलनों में प्रेमचंद के साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही, इसलिए उनके घर का संरक्षण कर उसे संग्रहालय में तब्दील करना जरूरी था. मुझे खुशी है कि अंतत: हमारी मेहनत रंग लायी. मैं चाहता हूं कि इसे बड़े पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाये. मैं आगे भी इस दिशा में प्रयासरत रहूंगा.
प्रो विनय कुमार यादव, हिंदी विभागाध्यक्ष
बिशप कॉटन गर्ल्स कॉलेज, बेंगलुरु