दस वर्षों तक खुद से दूर रखने के बाद अमरीका अब मोदी के साथ नजदीकी बढ़ाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है.
सितंबर में नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा की मुलाक़ात से पहले भारत आ रहे अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने मोदी सरकार की नीतियों का समर्थन करने का ऐलान किया है.
उन्होंने कहा है कि मोदी की ‘भगवा क्रांति’ में अमरीका उनके साथ है.
उनका बयान मोदी के प्रति अमरीकी की बदलती नीति का ही संकेत माना जा रहा है.
पढ़िए पूरी रिपोर्ट
अपनी भारत यात्रा से ठीक एक दिन पहले अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने मोदी सरकार के विकास के एजेंडा में भरपूर साथ देने का ऐलान किया है.
शिथिल पड़े हुए द्विपक्षीय रिश्तों में नई गति लाने की बात करते हुए जॉन केरी ने कहा है ये मौका दोनों देशों के भविष्य को एक राह पर लाने का है.
जॉन केरी का ये भाषण वॉशिंगटन में हुआ, बात भारत और अमरीका के रिश्तों की हुई, लेकिन ये एक तरह से सीधा संदेश था नरेंद्र मोदी के लिए.
जॉन केरी ने दोनों देशों के रिश्तों को एक ऐसे मुक़ाम तक ले जाने की बात की जहां दोनों ही सही मायने में एक दूसरे के साझेदार बन सकें.
उनका कहना था कि मोदी सरकार ने देश के युवाओं में जो उम्मीदें जगाई हैं, अमरीका उसे पूरा करने में उनका पूरी तरह से साथ देने को तैयार है.
उनका कहना था, "मोदी सरकार की -‘सबका साथ सबका विकास’- की नीति में हम साथ देना चाहते हैं. हमारा मानना है कि ये बेहद अच्छी नीति है. अमरीका का निजी क्षेत्र भारत की आर्थिक तरक्की को गति देने के लिए पूरी तरह तैयार है."
रुकावटें और भी हैं
केरी का कहना था, "उन्होंने भगवा क्रांति की बात की है, क्योंकि भगवा रंग ऊर्जा का रंग है. और उन्होंने कहा है कि वो ये क्रांति अपारंपरिक ऊर्जा श्रोतों से लाएंगे. वो बिल्कुल सही हैं. अमरीका इस मामले पर पूरी तरह से भारत के साथ चलने को तैयार है."
लेकिन इस रिश्ते की दूसरी सच्चाई ये भी है कि दोनों ही देश कई मामलों में आमने सामने नज़र आते हैं.
विश्व व्यापार संगठन के नियमों की बहस हो, ‘इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राईट्स’ की बात हो, सब्सिडी की बात हो इन सब पर दोनों के बीच तीखी बहस चल रही है.
जॉन केरी का कहना था कि इन मामलों पर अगर भारत लचक दिखाए, विदेशी निवेश के लिए अनुकूल ज़मीन तैयार करे तो अमरीकी कंपनियां वहां निवेश के लिए दौड़ी चली जाएंगी.
बदलाव की उम्मीद
दस वर्षों तक मोदी को अमरीका से दूर रखने के बाद, अमरीका पूरी ताक़त से उस कूटनीतिक दौड़ में जुट गया है, जिसमें कई लोगों का मानना है कि उसे अभी लंबा रास्ता तय करना है.
अमरीका भारत को एशिया में चीन के ख़िलाफ़ एक ताक़तवर साझेदार की तरह देखना चाहता है. वहीं अमरीकी उद्योग जगत भारत को एक बड़े बाज़ार की तरह देख रहा है, लेकिन वहां उसे कई रुकावटें नज़र आ रही हैं.
मोदी ने भी अभी तक खुलकर अपनी अमरीकी नीति स्पष्ट नहीं की है और माना जा रहा है कि सितंबर में ओबामा के साथ होने वाली उनकी मुलाक़ात काफ़ी हद तक इस रिश्ते की दिशा तय करेगी.
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