भारत ने कहा है कि फ़लस्तीन के संबंध में उसकी नीतियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है लेकिन उसने गज़ा में जारी संघर्ष पर इसराइल या फ़लस्तीन दोनों में से किसी का भी पक्ष लेने से इंकार कर दिया.
नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस मामले में विपक्ष की उस मांग को मानने से भी इंकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि इस मामले पर संसद एक प्रस्ताव पारित करे कि भारत इसराइल से सभी हथियारों की ख़रीद बंद करेगा और फ़लस्तीन का मामले संयुक्त राष्ट्र में उठाएगा.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्य सभा में कहा, "फ़लस्तीन को लेकर भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं है. हम फ़लस्तीन का समर्थन करते हैं लेकिन साथ ही इसराइल से भी दोस्ताना संबंध रखना चाहते हैं."
उन्होंने कहा कि भारत की नीति इस मामले में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व, गुजराल और गौड़ा सभी सरकारों के समय एक सी रही है.
‘भारतीय संसद बंटा हुआ न दिखे ..’
स्वराज ने कहा कि इस मामले पर संसद बंटा हुआ नहीं दिखना चाहिए और एक साझा संदेश जाना चाहिए कि हिंसा कहीं भी हो रही हो वो निंदनीय है.
भारतीय विदेश मंत्री का कहना था कि इसराइल और फ़लस्तीन को मिस्र के शांति प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना चाहिए.
पिछले हफ़्ते विपक्ष सरकार से मध्य पूर्व में जारी संघर्ष पर बहस करवाने की मांग कर रहा था लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी.
बाद में राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने बहस की इजाज़त दे दी थी. लेकिन सोमवार को बहस में उप सभापति पीजे कुरियन ने साफ़ कर दिया था कि जिन नियमों के तहत बहस हुई है उसमें प्रस्ताव लाए जाने का कोई प्रावधान नहीं है.
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