करदाता मोदी सरकार के पहले बजट से बड़ी राहत की उम्मीद कर रहे हैं. वित्तमंत्री को अपनी 10 सलाह देने के साथ टैक्स सलाहकार सुभाष लखोटिया कहते हैं कि आम करदाता से आयकर को छोड़कर कोई दूसरा कर नहीं लिया जाना चाहिए.
पढ़ें सुभाष लखोटिया की सरकार को सलाह
आयकर छोड़ सभी कर हटाएं
आम करदाता को आयकर के अलावा दो तरह के एजुकेशन सेस देने पड़ते हैं. कुछ मामलों में सरचार्ज भी देने होते हैं. सरकार का मक़सद आयकरदाताओं का जीवन आसान करना होना चाहिए. इसके लिए कई तरह के कर समाप्त करने की ज़रूरत है.
अगर सरकार स्टॉक मार्केट सुधारना चाहती है तो उसे सिक्योरिटीज़ ट्रांज़ेक्शन टैक्स खत्म करना चाहिए.
सिक्योरिटीज़ ट्रांज़ेक्शन टैक्स ख़त्म करने से होने वाली राजस्व हानि को नियमों को सरल बनाकर पूरा किया जा सकता है. अगर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स और मैट भी हटा दिया जाता है तो कारोबार और उद्योग में बड़ा उछाल आ सकता है.
क्लबिंग के प्रावधान खत्म हों
आयकर क़ानून के तहत अगर पति अपनी पत्नी को उपहार देता है तो उपहार में दी गई चीज़ से आय उनकी आय में जुड़ जाएगी. यह क़ानून 1961 से है जब आयकर अधिनियम बना था. होना यह चाहिए कि आय का कुछ निश्चित प्रतिशत प्रतिवर्ष न्यूनतम राशि के रूप में पति अपनी पत्नी को दे सके.
यह अजीब नहीं कि अगर कोई शख्स पांच लाख रुपए का उपहार अपनी पत्नी को देता है और पत्नी उसे फ़िक्स्ड डिपॉज़िट करके उस पर सालाना 50 हज़ार रुपए ब्याज पाती हैं, तो बैंक ब्याज की आय पति की आय में जोड़ देगा.
अगर पति-पत्नी के बीच तलाक हो और पति को अपनी आय का आधा पत्नी को देना पड़े तो मौजूदा क़ानून के तहत आय क्लब करके आयकर नहीं लिया जाएगा. नाबालिग़ बच्चे की आय को भी क्लबिंग से छूट मिलनी चाहिए क्योंकि फिलहाल एक संतान की ऐसी आय से छूट सिर्फ़ 1500 रुपए प्रतिवर्ष ही है.
वेतनभोगी कर्मचारियों को सुविधाएं
वेतनभोगी कर्मचारियों को ज़्यादा समस्याएं झेलनी पड़ती हैं. उनके लिए ट्रांसपोर्ट अलाउंस पर आयकर में अधिकतम छूट सिर्फ़ 800 रुपए प्रतिमाह है. इसे बढ़ाया जाना चाहिए. इसी तरह मेडिकल ख़र्चों में फिलहाल 15 हज़ार रुपए सालाना तक ही आयकर छूट है. जबकि पिछले एक दशक में मेडिकल उपचार की क़ीमतें तेज़ी से बढ़ी हैं. इसी तरह बच्चों की शिक्षा का अलाउंस में वेतनभोगियों को सिर्फ़ 100 रुपए प्रतिमाह तक छूट है. लीव ट्रेवल कंसेशन सिर्फ़ चार साल में दो बार ही लिया जा सकता है. इसे हर साल एक बार बढ़ाया जाए.
कई वेतनभोगियों को अपने मकान मालिक को किराए के भुगतान के एवज़ में किराए की रसीद या उनका परमानेंट अकाउंट नंबर नहीं मिलता. वित्त मंत्री को इसका समाधान ढूंढना चाहिए. अहम यह है कि निजी कर्मचारियों और सरकारी वेतनभोगियों और मंत्रियों सभी के लिए एक जैसे क़ानूनों पर विचार किया जाए.
हाउसिंग लोन पर ब्याज दर कटौती में इज़ाफ़ा
पिछले कई साल से हाउसिंग लोन पर ब्याज में डेढ़ लाख रुपए तक की ही कटौती की इजाज़त है. आवासीय प्रॉपर्टीज़ की क़ीमतें पिछले दशक में तेज़ी से बढ़ी हैं. इसलिए सरकार को हाउसिंग लोन में ब्याज कटौती में वृद्धि को कम से कम डेढ़ लाख रुपए ढाई लाख रुपए तक बढ़ाना चाहिए.
निवेश के लिए कटौती में वृद्धि
आम करदाता के लिए सेक्शन 80सी के तहत कटौती की सीमा सिर्फ़ एक लाख रुपए तक रखी गई है. बचत और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को इसकी सीमा बढ़ाने पर विचार करना चाहिए. इसे एक लाख से पांच लाख रुपए तक ले जाया जा सकता है. पांच से 10 लाख रुपए आय वालों के लिए 80सी में अधिकतम कटौती दो लाख रुपए तक की जानी चाहिए.
10 लाख रुपए से ज़्यादा आय वालों के लिए कटौती सीमा तीन लाख रुपए तक रखी जानी चाहिए. ज़्यादा आय वाले लोग ज़्यादा बचत भी पसंद करेंगे.
किराया अदायगी में कटौती पर बढ़ोत्तरी
फिलहाल अगर किसी के पास रहने को घर नहीं है और उन्हें हाउस रेंट अलाउंस नहीं मिलता, तो उन्हें किराया खुद अपनी जेब से चुकाना पड़ता है. जबकि आयकर के सेक्शन 80जीजी के तहत आय के चौथाई या अधिकतम 2000 रुपए प्रतिमाह तक ही किराया देने पर आयकर में छूट मिलती है. महँगाई देखते हुए छूट बढ़ाई जानी चाहिए. अच्छा उपाय यह है कि सरकार इसकी ऊपरी सीमा हटा दे और इसे करदाता की आय का चौथाई फ़ीसदी तक ही रहने दे.
संपत्ति कर समाप्त करें
भारत में बहुत कम करदाता संपत्ति कर चुकाते हैं. अब इसे ख़त्म करने का समय आ गया है क्योंकि इसका राजस्व पर कोई बहुत फ़र्क नहीं पड़ता. संपत्ति कर खत्म करने से काले धन के लेनदेन पर रोक लगेगी और सरकार इसे नियंत्रित कर पाएगी.
विरासत कर नहीं
कुछ अर्थशास्त्रियों ने वित्तमंत्री को विरासत कर लगाने की सलाह दी है. वित्त मंत्रालय को इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं करना चाहिए. जब भारत में एस्टेट ड्यूटी अदा करने का चलन था तो कर चोरी बड़े पैमाने पर होती थी. जब 1985 में एस्टेट ड्यूटी खत्म की गई तो काले धन के लेनदेन में भी कमी आने लगी.
कैपिटल गेंस के प्रावधानों में संगति
शेयर से होने वाले शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर पहले सिर्फ़ 10 प्रतिशत तक कर था. सरकार को इस पर 15 प्रतिशत नहीं 10 प्रतिशत तक ही कर रखना चाहिए. इसके अलावा स्टॉक मार्केट से होने वाली अलग-अलग तरह की आय जैसे इंट्रा डे ट्रांज़ेक्शंस और फ़्यूचर एंड ऑप्शंस के बारे में सोच साफ़ होनी चाहिए. बड़ी तादाद में वेतनभोगी कर्मचारी शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर आयकर दे रहे हैं.
कई बार करों की जटिलता के कारण आम करदाता स्टॉक बाज़ार की आय घोषित नहीं करते. अगर स्टॉक मार्केट से होने वाले सभी तरह के लेनदेन को लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म में विभाजित करके कर लिया जाए, तो करदाताओं की ज़िंदगी आसान हो जाएगी और वे बड़ी तादाद में स्टॉक मार्केट से आय पर कर अदा करेंगे.
आयकर रिटर्न फ़ॉर्म भी आसान बनाया जाना चाहिए. साथ ही रियल एस्टेट के लेनदेन और स्टॉक मार्केट के लेनदेन के लिए लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस की समय सीमा एक ही रखी जानी चाहिए.
हाउसिंग सेक्टर को सुविधाएं
हाउसिंग सेक्टर में खासकर कैपिटल गेंस के प्रावधान में बदलाव की ज़रूरत है ताकि रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश के लिए विशेष न्यायसंगत कर प्रावधान हो सके और आवासीय प्रॉपर्टीज़ में असीमित निवेश को कैपिटल गेंस से बचाया जा सके.
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