पत्रकारिता, उपन्यास लेखन, फिल्म लेखन व गीतकार के बाद अब नीलेश मिश्र का अगला पड़ाव टीवी है. नीलेश खुद को कहानीकार ही मानते हैं. रेडियो की दुनिया में भी वे बादशाह हैं. टेलीविजन की दुनिया में वह पहला कदम बढ़ा रहे हैं. लाइफ ओके चैनल पर जल्द ही उनके नये शो ‘भटक ले न बांवरे’ का प्रसारण होगा. इस नये शो के बारे में उन्होंने अनुप्रिया अनंत से बातचीत की.
शो का कांसेप्ट
शो का कांसेप्ट रेडियो से ही आया है. यह स्टोरी टेलर के रूप में फिक्शन शो होगा. कांसेप्ट वाइज यह रेडियो जैसा होगा. इसमें सूत्रधार होंगे. निर्णायक होंगे. हम शो के माध्यम से कविताओं-कहानियों को लाने की कोशिश में हैं. ओरिजनल गाने भी होंगे, जो हमारी टीम लिख रही है. पहले हम इस शो के लिए स्टार टीवी से बात कर रहे थे. डिस्कशन चल ही रहा था कि उन्होंने कहा उन्हें नया कांसेप्ट चाहिए. बस, उन्हें हमने यह आइडिया दे दिया और उन्हें पसंद आ गया. इस तरह शो का संयोग बन गया. यह एक खूबसूरत लव स्टोरी है, जो लखनऊ शहर पर आधारित है. इसे एक नये अंदाज में हमने तैयार किया है, जो दर्शकों के लिए बेहद रोचक होगा.
टीवी से कतराता था
मैं हकीकत बता रहा हूं कि मैं पहले टीवी से बेहद कतराता था. यही एक माध्यम था, जिसमें मैंने हाथ नहीं आजमाया था. लोग कहते थे कि आजादी छीन जाती है. काफी दखल होती है. लेकिन मैं लकी हूं कि मुङो आजादी मिली है. अपने ढंग से इस शो को संवारने का पूरा मौका मिला है. जब इस शो के लिए काम करना शुरू किया तो लगा कि टीवी के लिए राइटिंग का अपना ग्रामर है. पता नहीं इसमें फिट बैठ पाऊंगा या नहीं! लेकिन मेरे लिए एक्साइटिंग रहा. वक्त पर काम पूरा हो गया है. इस शो को हमारी मंडली ने मिल कर लिखा है. मंडली के कुछ सदस्य मुंबई के हैं, तो कुछ बाहर से. हमारी मंडली टीम ‘यादों का इडियटस बॉक्स’ के माध्यम से ही बनी, जिसमें आयुष तिवारी, सम्राट चक्रवर्ती, मोहम्मद अदीम, ऋत्विक हैं. धनबाद से सम्राट हैं, आयुष रांची के हैं.
लखनऊ शहर है खास
इस शो के माध्यम से आप लखनऊ को एक नये नजर से देखेंगे. अच्छा लग रहा था. जहां बचपन बीता है, वहीं फिर से सूत्रधार के रूप में कैमरे के सामने जाना, फिर परफॉर्म करना. नोस्टोलोजिक रही पूरी जर्नी. उसी गोमती नगर को कैमरे की नजर से दिखाना अलग अनुभव रहा, जिसे हमेशा देखते रहा हूं. लखनऊ जीवंत शहर लगता है. हम वहीं बड़े हुए हैं. सो, इस शहर को उतने ही करीब से देख पाते हैं. इस शो के माध्यम से लखनऊ के कई चेहरे सामने आये हैं. एक लखनऊ है, जो नवाबों का शहर है. जहां पर लखनऊ प्रेमियों का जमावड़ा होता है तो दूसरा लखनऊ के छोर पर हैं गांव, जो धीरे-धीरे शहर बनते जा रहे हैं. एक शहर होकर भी एक-सा नहीं है. कुछ बदल रहा है तो कुछ बदलना नहीं चाहता. एक स्टोरी टेलर के लिए इस तरह के दिलचस्प शहर का होना उसकी कहानी को सार्थक बनाता है. पूरी तरह से डिस्कवर करने का मौका था इस बार. इस शो के माध्यम से वह सारे दृश्य टीवी पर नजर आयेंगे, जो कि अब से पहले टीवी पर कभी नहीं आये थे. लखनऊ को टीवी पर इतनी खूबसूरती से किसी ने नहीं देखा होगा. वहां के खूबसूरत पार्क जिस तरह वे टीवी पर नजर आयेंगे, उतने सुंदर पहले कभी नहीं लगे होंगे. मुङो शहर की हरियाली देखना बहुत भाता है. मॉन्यूमेंट्स को कैमरे की नजर से देखना अद्भुत रहा. इसके लिए सिनेमाटोग्राफर ऋषि बधाई के पात्र हैं, साथ ही शो के को-प्रोड्यूसर सनसाइन, जिन्होंने ‘न बोले तुम न मैंने कुछ कहा’ और ‘मिले जब हम तुम’ जैसे शो का निर्माण किया है. उन्होंने इस कंटेंट को करीब से समझा और उतनी ही खूबसूरती से इसे परदे पर उतारा.