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छत्तीसगढ़ में नहीं थम रहा ”पत्थलगड़ी” अभियान

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में पत्थर गाड़ कर अपने अधिकार की मांग करने वाला ‘पत्थलगड़ी’ अभियान थमता हुआ नज़र नहीं आ रहा है. राज्य के उत्तरी हिस्से में ‘पत्थलगड़ी’ अभियान को फिर से शुरु करने वाले कुछ नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद सरकार यह मान बैठी थी कि मामला खत्म हो गया है. लेकिन अब […]

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में पत्थर गाड़ कर अपने अधिकार की मांग करने वाला ‘पत्थलगड़ी’ अभियान थमता हुआ नज़र नहीं आ रहा है.

राज्य के उत्तरी हिस्से में ‘पत्थलगड़ी’ अभियान को फिर से शुरु करने वाले कुछ नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद सरकार यह मान बैठी थी कि मामला खत्म हो गया है.

लेकिन अब सर्व आदिवासी समाज द्वारा पूरे छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में ‘पत्थलगड़ी’ करने और गिरफ़्तार नेताओं की रिहाई के लिये जेल भरो अभियान चलाये जाने की घोषणा की गई है. समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम के अनुसार, "हम इस लड़ाई को अंत तक लड़ेंगे."

चुनावी साल में आदिवासियों ने ‘पत्थलगड़ी’ मामले में सरकार के ख़िलाफ़ अपना अभियान ऐसे समय में शुरु किया है, जब राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह अपनी सरकार के 15 सालों उपलब्धियों को बताने के लिये विकास यात्रा पर निकले हुए हैं.

ऐसे में आदिवासियों के इस आंदोलन पर तमाम राजनीतिक दलों की नज़रें टिकी हुई हैं. एक तरफ़ जहां कांग्रेस पार्टी ने अपनी लंबी-चौड़ी टीम बना कर ‘पत्थलगड़ी’ अभियान पर अपनी ज़मीनी रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सौंपी है, वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में सरकार पर निशाना साधा है.

‘पत्थलगड़ी’ का विरोध नहीं’

लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह बार-बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि ‘पत्थलगड़ी’ अभियान के पीछे धर्मांतरण की साजिश रची जा रही है.

मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, "पत्थलगड़ी का कोई विरोध नहीं है. विरोध करता हूं उन ताक़तों का, जो पत्थलगड़ी के नाम से विभाजन रेखा खींचना चाहती हैं. ये चुनाव की दृष्टि से षड़यंत्र है और एक प्रकार से ताक़त है, जो धर्मांतरण को बढ़ावा देना चाहती है."

लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस इस पूरे मसले को सीधे-सीधे राज्य के विकास से जोड़ रही है. कांग्रेस पार्टी ने ‘खोजो विकास’ नाम से एक अभियान भी गांव-गांव में शुरु किया है. पार्टी का कहना है कि आदिवासी इलाकों के हालात बेहद ख़राब हैं, इसलिए आदिवासियों को संविधान में दिये गये अपने अधिकारों के लिये ‘पत्थलगड़ी’ जैसे अभियान को चलाना पड़ रहा है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और विधायक भूपेश बघेल कहते हैं, "सरकार को बताना चाहिए कि अगर उसने विकास किया है तो आदिवासियों को क्यों सरकार के ख़िलाफ़ अभियान चलाने की ज़रुरत पड़ी? आदिवासियों का ‘पत्थलगड़ी’ अभियान पूरी तरह से संवैधानिक है."

क्या है ‘पत्थलगड़ी’?

असल में देश के कई आदिवासी बहुल इलाकों में ‘पत्थलगड़ी’ की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा रही है. इस परंपरा में गांव की कब्रगाह से लेकर गांव की सीमा तक पत्थर गाड़ कर उसके सहारे संदेश देने की कोशिश होती थी.

जब पंचायतों को अधिकार मिले और ख़ासकर आदिवासी बहुल इलाकों को संविधान की पांचवी अनुसूची में रखते हुये पंचायत एक्सटेंशन इन शिड्यूल एरिया कानून में ग्राम सभा को सर्वोपरि अधिकार दिये गये, उससे पहले से बस्तर जैसे इलाकों में ‘मावा नाटे मावा राज’ यानी हमारा गांव, हमारा राज जैसे अभियान भी चले. बाद के दिनों में कई इलाकों में पत्थर गाड़ कर ग्राम सभा को मिले अधिकार उन पत्थरों पर अंकित कर दिए गए.

आदिवासी मामलों के जानकार अभय ख़ाख़ा बताते हैं कि पिछले साल-दो साल से झारखंड के इलाकों में आदिवासियों ने इसी तरह से ‘पत्थलगड़ी’ का अभियान शुरु कर ग्राम सभा के निर्णय के पालन को अनिवार्य कर दिया. कई इलाकों में सरकारी अधिकारियों को भी प्रवेश से रोका गया, खनन कंपनियों पर रोक लगाई गई.

अभय ख़ाख़ा का दावा है कि ‘पत्थलगड़ी’ आंदोलन स्वत:स्फूर्त और अहिंसात्मक आंदोलन रहा है.

अभय कहते हैं, "छत्तीसगढ़ के जशपुर इलाके में यह अभियान झारखंड से आया है और तेज़ी से ओडिशा और मध्यप्रदेश में भी फैल रहा है. मूल रूप से भूमि अधिकार और वन अधिकार क़ानून को लेकर शुरु हुआ यह आंदोलन इस बात का परिचायक है कि आदिवासी इलाकों में सरकारी व्यवस्था चरमरा गई है."

जशपुर के इलाके में अप्रैल के महीने में जब पत्थर गाड़ कर उनमें ग्राम सभा के अधिकार लिख दिए गए तो जैसे बवाल मच गया. आदिवासियों ने पत्थर गाड़ कर घोषणा कर दी कि अब पांचवीं अनुसूची वाले इन इलाकों में ग्राम सभा ही सारे नियम-कानून तय करेगी.

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यहां तक कि पुराने ज़माने की कोटवार जैसी व्यवस्था की ही तरह गांव में प्रवेश से पहले भी अनुमति लेना भी अनिवार्य कर दिया गया. इस आंदोलन की कमान सेवानिवृत आईएएस अधिकारी हेरमोन किंडो और ओएनजीसी से सेवानिवृत्त आदिवासी नेता जोसेफ तिग्गा ने संभाली.

संवैधानिक अधिकारों में बढ़ती कटौती

जशपुर बरसों से भाजपा के जूदेव परिवार का इलाका रहा है. केंद्र में मंत्री रहे दिलीप सिंह जूदेव धर्मांतरण करने वालों की घर वापसी के लिये देश भर में जाने जाते थे. उनके निधन के बाद यह काम उनके परिजनों ने शुरु किया.

जब ‘पत्थलगड़ी’ की शुरुआत हुई तो सबसे पहले दिलीप सिंह जूदेव के बेटे और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष प्रबल प्रताप सिंह जूदेव सामने आये. अपने पिता के ‘ऑपरेशन घर वापसी’ अभियान को प्रबल ने संभाल रखा है और वे धर्मांतरित आदिवासियों के पैर धो कर उन्हें वापस हिंदू धर्म में लाने का काम कर रहे हैं.

प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कहते हैं-"पत्थलगड़ी के नाम पर आदिवासी भाइयों को बरगलाने की कोशिश चल रही थी. संविधान की ग़लत तरीक़े से व्याख्या करते हुये समाज को तोड़ने वाले लोग ही इस आंदोलन के पीछे हैं, जिनका मक़सद आदिवासियों का धर्मांतरण करना है. हमने तय किया है कि समाज को तोड़ने वाले किसी भी आंदोलन को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे."

ज़ाहिर है, इस ‘पत्थलगड़ी’ को एक चुनौती की तरह देखा गया और केन्द्रीय राज्य मंत्री विष्णुदेव साय, सांसद रणविजय सिंह जूदेव और दूसरे भाजपा नेताओं के नेतृत्व में कथित सद्भावना यात्रा निकाली गई और इसके बाद भीड़ ने आदिवासियों द्वारा लगाये गये पत्थरों को तोड़ दिया.

विवाद बढ़ा तो आदिवासियों ने सरकारी अधिकारियों को घंटों बंधक बना कर रखा. अधिकारियों ने कार्रवाई का हवाला दिया और फिर आदिवासियों से बच कर निकले. लेकिन इसके बाद ‘पत्थलगड़ी’ का नेतृत्व करने वाले आदिवासी नेताओं को जेल भेज दिया गया.

आदिवासियों के लिये क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाले बी के मनीष इस बात से चिंतित हैं कि संविधान पर लिखी गई उनकी ही किताब का हवाला देकर जशपुर के इलाके में ‘पत्थलगड़ी’ की गई. मनीष का दावा है कि ‘पत्थलगड़ी’ अभियान में संविधान की मनमानी व्याख्या की जा रही है और ग़ैरकानूनी तरीके से ‘पत्थलगड़ी’ की जा रही है.

लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ऐसा नहीं मानते. बस्तर के बड़े आदिवासी नेताओं में शुमार अरविंद नेताम का कहना है कि कानून ने ‘पंचायत एक्सटेंशन इन शिड्यूल एरिया’ में ग्राम सभा को सर्वोपरि अधिकार दिये हैं.

नेताम कहते हैं, "संवैधानिक अधिकारों में कटौती होती जा रही है, उन्हें कमज़ोर किया जा रहा है. यह उसका ही उबाल है."

दूसरी ओर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला मानते हैं कि ग्राम सभाओं को किनारे कर के कॉरपोरेट को लाभ पहुंचाया जा रहा है, यही कारण है कि आदिवासी नाराज़ हैं.

आलोक का अनुमान है कि ‘पत्थलगड़ी’ के बहाने भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी साल में वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश के तहत इसे विकास के मुद्दे से जोड़ने के बजाय ईसाई आदिवासी बनाम गैर ईसाई आदिवासी और हिंदू के तौर पर प्रचारित करने की कोशिश की. यूं भी जिस इलाके से इस विवाद की शुरुआत हुई, छत्तीसगढ़ के उस उत्तरी इलाके में विधानसभा की 13 में से 6 सीटों पर ईसाई वोटों का अपना महत्व है.

लेकिन राज्य की भाजपा सरकार ‘पत्थलगड़ी’ को किसी भी स्थिति में विकास या चुनाव से जोड़े जाने के ख़िलाफ़ है. अभी जबकि सर्व आदिवासी समाज ने राज्य भर में ‘पत्थलगड़ी’ अभियान चलाने की घोषणा की है तो राज्य सरकार के मंत्री भी विरोध में उतर आये हैं.

छत्तीसगढ़ सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों की कमान संभालने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं, "दिलीप सिंह जूदेव के चले जाने के बाद ये पत्थलगड़ी का आज का जो स्वरूप है, ये देश विरोधी है और इसको नक्सलवाद प्रोत्साहित कर रहा है, इसको राष्ट्रविरोधी तत्व प्रोत्साहित कर रहे हैं, इसको धर्मांतरण करने वाले लोग प्रोत्साहित कर रहे हैं."

मतलब साफ़ है. सामाजिक संगठन और विपक्षी दल भले ‘पत्थलगड़ी’ को विकास से जोड़ रहे हों लेकिन भारतीय जनता पार्टी इस चुनावी साल में इसे धर्मांतरण का मुद्दा बता कर खुद भी इस मुद्दे को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती. लगभग 32 फ़ीसदी आदिवासी आबादी वाले छत्तीसगढ़ में पत्थलगड़ी के बहाने कहां-कहां चुनावी निशाने साधे जायेंगे, इसके लिये तो फिलहाल चुनाव तक प्रतीक्षा करनी होगी.

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