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इंडियन स्वाद : आम के आम गुठलियों के दाम!

फलों का राजा और भारत का राष्ट्रीय फल महज एक फल नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल दर्जनों व्यंजनों में भी किया जाता है. भारत के हर हिस्से में आमों के अनेक प्रकार पाये जाते हैं और इसकी किस्म-किस्म की रेसिपीज तैयार की जाती हैं. यहां मजेदार बात यह है कि अनगिन व्यंजनों में आम अपने […]

फलों का राजा और भारत का राष्ट्रीय फल महज एक फल नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल दर्जनों व्यंजनों में भी किया जाता है. भारत के हर हिस्से में आमों के अनेक प्रकार पाये जाते हैं और इसकी किस्म-किस्म की रेसिपीज तैयार की जाती हैं. यहां मजेदार बात यह है कि अनगिन व्यंजनों में आम अपने खटास-मिठास अवतार में अदृश्य रहकर भी अपना जादू जगाता है. तो इस बार आम के आम और गुठलियों के दाम की खासियत के बारे में बता रहे हैं भारतीय व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…

मौसम के पहले आम-सफेदा ठेलों पर लदे नजर आने लगे हैं. अभी न तो इनमें मिठास है और न ही कुदरती स्वाद पर सोच-सोचकर मुंह में पानी आने लगता है कि जल्दी ही फलों का बादशाह कैसी-कैसी सौगात हमारे लिए पेश करनेवाला है. आम भारत की संतान है और भले ही अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में भी आम की स्थानीय प्रजातियां देखने को मिलती हैं, पर यह बात हिंदुस्तानी आमों के बारे में ही सार्थक लगती है कि- आम के आम गुठलियों के दाम!
हम में से हरेक का अपना कोई-न-कोई मनपसंद आम है. किसी को मलीहाबादी दशहरा सर्वश्रेष्ठ लगता है, तो किसी को बनारस का लंगड़ा. तटवर्ती महाराष्ट्र में हापुज यानी अल्फांसो का साम्राज्य है, तो कर्नाटक एवं तेलंगाना में मदनपल्ली और निजाम पसंद पर इनके चाहनेवाले जान छिड़कते हैं. वहीं रसौल और चौसा के चाहनेवाले भी कम नहीं हैं.
मजेदार बात यह है कि आम का इस्तेमाल अन्य दर्जनों व्यंजनों में भी होता है. सिर्फ मीठे ही नहीं, कच्चे आम का भी बखूबी इस्तेमाल होता है. ‘आम का मुजाफर’ ईजाद किया गया था लखनऊ के शौकीन नवाबों के लिए, जो मुरब्बे की तरह मीठा नहीं होता था, बल्कि इसमें नमक का मजा भी महसूस किया जा सकता था और हल्की खटास भी. कुशल कारीगरों के अभाव में अब यह लुप्त प्राय हो गया है. पारसी खान-पान में ‘मैंगो फूल’ मशहूर है, तो वहीं आम का पुट मिलते ही पुणे का श्रीखंड आम्रखंड बन जाता है.
अवध में अरहर की ‘कैरी वाली दाल’ का जायका कच्चे आम की फांक बढ़ाती है, तो ‘कलिया अंबर’ में गोश्त की कमी किसी मांसाहार के शौकीन को महसूस नहीं होती. केरल में ‘मीन मानस’ का दबदबा कम नहीं.
कच्चे आम के जाने कितने क्षेत्रीय प्रकार हैं और आम के अभाव में अनेक खट्टी-मीठी चटनियां निर्जीव हो जायेंगी. खटास पैदा करने के लिए दक्षिण भारत में जो भूमिका इमली की है, वही उत्तर भारत में अमचूर की है. जाने कितने व्यंजनों में आम अपने इस अवतार में अदृश्य रहकर भी अपना जादू जगाता है.
आम को स्वादिष्ट तथा पौष्टिक तो माना ही जाता है, इसे मौसम के अनुकूल-व्याधियों से रक्षा करनेवाला भी समझा जाता है. लू की चपेट से बचने के लिए ‘आम का पन्ना’ बेहतरीन साधन माना जाता है, कुछ वैसे ही जैसे शिथिल पड़ रही जठराग्नि की लपटों को भड़का कर भूख जगाने के लिए ‘आम पापड़’ का कतरा दवा का काम करता है. कभी देहाती-कस्बाती समझा जानेवाला आम पापड़ आज ‘मैंगो कैंडी’ का रूप धारण कर निर्यात होने लगा है. यों आम का स्क्वॉश (शरबत) भी बिकता है और जैम भी, लेकिन पता नहीं क्यों यह कभी अधिक लोकप्रिय नहीं हो सके. हां ताजे आमरस के साथ पूरी खाने का मजा ही कुछ और है!
आम धारणा है कि आम की तासीर गर्म होती है, सो बचपन में यह हिदायत दी जाती थी कि खाने के पहले आमों को हौद या बाल्टी के पानी में डुबाकर ठंडा कर लिया जाना जरूरी है. आज फ्रिज ही यह काम साध देता है.
रही बात गुठलियों की तो वैज्ञानिक शोध ने यह बात प्रमाणित की है कि गुठलियां पीसकर जो आटा हासिल होता है, वह सिर्फ पेट ही नहीं भरता, वास्तव में पौष्टिक भी होता है. अत: वह कहावत बेमानी नहीं जो गुठलियां को दाम की बात करती है. आम खाते वक्त गुठलियां को न भूलें!
रोचक तथ्य
‘आम का मुजाफर’ ईजाद किया गया था लखनऊ के शौकीन नवाबों के लिए, जो मुरब्बे की तरह मीठा नहीं होता था, बल्कि इसमें नमक का मजा भी महसूस किया जा सकता था और हल्की खटास भी.
पारसी खान-पान में ‘मैंगो फूल’ मशहूर है, तो वहीं आम का पुट मिलते ही पुणे का श्रीखंड आम्रखंड बन जाता है.
अवध में अरहर की ‘कैरी वाली दाल’ का जायका कच्चे आम की फांक बढ़ाती है, तो ‘कलिया अंबर’ में गोश्त की कमी किसी मांसाहार के शौकीन को महसूस नहीं होती.
आम की गुठलियां पीसकर जो आटा हासिल होता है, वह सिर्फ पेट ही नहीं भरता, वास्तव में पौष्टिक भी होता है.
आम भारत की संतान है और भले ही अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में भी आम की स्थानीय प्रजातियां देखने को मिलती हैं, पर यह बात हिंदुस्तानी आमों के बारे में ही सार्थक लगती है कि- आम के आम गुठलियों के दाम!
पुष्पेश पंत

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