नयी दिल्लीः सोलहवीं लोकसभा के गठन के लिए मतदान संपन्न हो गया है, पूरा देश अब यह जानना चाहता है कि आखिर किस पार्टी की सरकार देश में बनेगी और कौन होगा उस सरकार का कमांडर. इस बात का जवाब तो हमें 16 मई को मतगणना के बाद ही मिलेगा. लेकिन कल मतदान के बाद आये अधिकांश् एग्जिट पोल का कहना है कि देश में बदलाव का दौर है और कांग्रेसनीत सरकार के दिन पूरे हो गये हैं.
आजादी के बाद पहली बार इतना भारी मतदान हुआ. अंतिम चरण के मतदान के बाद विभिन्न एजेंसियों द्वारा करवाये गये एग्जिट पोल के मुताबिक भाजपानीत एनडीए सरकार बनाने की दौड़ में सबसे आगे है. वहीं, सत्तारूढ़ कांग्रेसनीत गंठबंधन यूपीए दूसरे नंबर पर है. इंडिया टुडे, सीएनएन-आइबीएन, इंडिया टीवी, एबीपी न्यूज और न्यूज 24 ने एनडीए को बहुमत से आगे बताया तो जी न्यूज ने 272 सीटें दी. सिर्फ टाइम्स नाऊ ने राजग गंठबंधन को बहुमत से थोड़ी दूर 249 सीटें दी हैं. इन सबके के बीच स्थिर सरकार की उम्मीद में घरेलू शेयर बाजारों में तेजी का दौर जारी रहा. बीएसइ का सेंसेक्स 23,551 अंक के नये रिकार्ड की ऊंचाई पर बंद हुआ.
नयी दिल्ली: लोकसभा चुनाव के लिए मतदान संपन्न होने के बाद सोमवार को सामने आये चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के सरकार बनने का अनुमान लगाया गया है. चुनाव बाद सर्वेक्षणों यानी एग्जिट पोल में एनडीए को लोकसभा की 543 सीटों में से 249-290 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है. टेलीविजन चैनलों व एजेंसियों के सर्वेक्षणों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ संप्रग को 101 से 148 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है, जबकि क्षेत्रीय और वाम दलों को 146 से 156 सीटें मिलने का अनुमान है. न्यूज-24 चैनल और टुडेज चाणक्या के सर्वेक्षण में एनडीए के लिए 340 सीटें, यूपीए को 70 और अन्य को 133 सीटें मिलने का अनुमान है. सीएनएन-आइबीएन-सीएसडीएस के सर्वेक्षण में एनडीए को 270 से 282 और यूपीए को 92 से 102 सीटें मिलने की संभावना जतायी गयी है. भाजपा को अकेले 230 से 242 और कांग्रेस को महज 72 से 82 सीटें मिलने का अनुमान है.
कितने भरोसेमंद होते हैंएग्जिट पोल
इससे अलग, बड़ा सवाल यह है कि एग्जिट पोल कितने भरोसेमंद होते हैं. इस बारे में जानकारों का कहना है कि जब चुनाव बहुत कांटे का हो, तो मतगणना तक धीरज रखना ही बेहतर होता है.
मुकाबला करीबी होने पर एग्जिट पोल के नतीजे गलत साबित हो सकते हैं. और, अगर नतीजे मोटे तौर पर सही भी हों, तब भी सीटों के मामले में आकलन गलत हो सकते हैं. ऐसा नहीं है कि लोग यह बात जानते नहीं हैं, पर राजनीतिक गपबाजी के लिए कुछ तो बहाना चाहिए, आखिर यह हमारा राष्ट्रीय शगल है! चुनाव भारतीयों के लिए बतकही का भी महोत्सव है. इस दौरान हर बात पर चर्चा होती है- नेताओं के भाषण पर, टीवी की बहसों पर, राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर ज्योतिषियों की राय पर. और हां, चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों और एग्जिट पोल पर भी.
एग्जिट पोल कितने सटीक होते हैं, इसके लिए कुछ मिसालें लेते हैं. मार्च 2012 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल प्रसारित हुए. ज्यादातर एग्जिट पोल में सपा को सबसे बड़ी पार्टी बताया गया और कहा गया कि सभी पार्टियां बहुमत से दूर नजर आ रही हैं. इस आधार पर विेषकों ने तरह-तरह के गंठबंधनों और यहां तक कि राष्ट्रपति शासन लगने की भी चर्चा शुरू कर दी थी. लेकिन, जब असली नतीजे आये तो सपा अच्छे बहुमत (403 में 224 सीट) से सरकार में आयी. इसी तरह 2007 के उप्र विधानसभा चुनाव में सभी एग्जिट पोल बसपा को सबसे बड़ी पार्टी बता रहे थे, पर उसे बहुमत से बहुत दूर बता रहे थे.
लेकिन, जब चुनाव परिणाम आये तो सभी चौंक गये, क्योंकि कोई भी यह अनुमान नहीं लगा पाया था कि बसपा को बहुमत मिलेगा. वह 206 सीटें लेकर आयी.
अगर पिछले साल हुए चार राज्यों में चुनावों की बात करें, तो एग्जिट पोल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सही थाह लगाने में सफल रहे. इन राज्यों में अनुमान के मुताबिक भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया. हालांकि सभी के सर्वेक्षणों में सीटों की संख्या में काफी अंतर रहा.
पर वे दिल्ली में ‘आप’ के बारे में अनुमान लगाने में पूरी तरह चूक गये. विभिन्न एग्जिट पोल ने ‘आप’ को 6, 11, 15 और 31 सीटें दीं. अब ऐसे अनुमान पर तो सर ही धुना जा सकता है. 2009 के आम चुनावों की बात करें, कोई भी एग्जिट पोल कांग्रेस के नेतृत्ववाले गंठबंधन, यूपीए को 200 सीटें देने को भी तैयार नहीं था. लेकिन जब नतीजे आये, तो कांग्रेस अकेले 206 सीटें लेकर आयी. इससे पूर्व, 2004 के आम चुनाव में भाजपा के नेतृत्ववाले एनडीए को एग्जिट पोल 240 से 250 सीटें दे रहे थे, लेकिन एनडीए सिर्फ 187 सीटें ला सका और उसे विपक्ष में बैठना पड़ा.
क्यों अक्सर गलत निकलते हैं
जानकारों के मुताबिक, भारतीय समाज और राजनीति की बहुलता के संदर्भ में एग्जिट और ओपेनियन पोल हमारे लिए अनुपयुक्त हैं. भले ही यह एक विज्ञान है, लेकिन भारत में इसकी अमेरिका-यूरोप से अलग प्रक्रि या अपनानी पड़ेगी. करोड़ों की जनसंख्या में से हजार लोगों के रु झान को लेकर सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. भारत में चुनावों को कई स्थानीय पहलू भी प्रभावित करते हैं. यहां मतदान के एक दिन पहले तक हुई कोई घटना या तथ्य मतदाता को प्रभावित कर सकता है. जाति-धर्म और राजनीति की ऐसी विविधता भी किसी अन्य देश में नहीं है.
दो-ढाई फीसदी गलती पड़ती है भारी
जानकारों का कहना है कि एग्जिट पोल सीटों के मामले में भले गड़बड़ हों, लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में ज्यादा गलत नहीं होते. बस दो से ढाई प्रतिशत तक गलती का ही अंदेशा होता है. लेकिन भारत जैसे देश में दो-ढाई प्रतिशत वोटों से तो समीकरण उलट जाता है. इसके अलावा, भारत जैसे विविधतापूर्ण और विशाल देश में इतने मतदाताओं को चुनना टेढ़ी खीर है, जो पूरी विविधता का प्रतिनिधित्व कर सकें. मसलन, पिछले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में लगभग 1000 लोगों से पूछ कर नतीजे निकाले गये. जाहिर है, यह संख्या पूरे वोटरों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती. ऐसे में, गलती की आशंका छह प्रतिशत तक हो सकती है, जिससे नतीजे बिल्कुल उलट सकते हैं.
नतीजे बेहतर करने की कोशिश
पश्चिमी देशों में एग्जिट पोल के नतीजे बेहतर करने के लिए कई संस्थाओं से एग्जिट पोल करवा कर उनके आंकड़ों को मिला कर फिर नतीजे निकालने की कोशिश की गयी. इससे एग्जिट पोल के नतीजे काफी बेहतर निकले. भारत में भी, धीरे-धीरे अपनी गलतियों से सीख कर सर्वेक्षणकर्ता बेहतर तरीके अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हमारे देश में चुनावी मुद्दे बदलते रहते हैं, जिससे कोई तरीका हर बार कारगर नहीं हो पाता. वहीं अमेरिका या ब्रिटेन में, राजनीति एक स्थिर स्वरूप ले चुकी है जिससे सर्वेक्षण करनेवालों को आसानी होती है. तो अब यह आप पर है कि आप 12 मई के एग्जिट पोल पर यकीन करें या असली नतीजों के लिए 16 मई का इंतजार करें.
वोट डाल कर निकले मतदाताओं के बीच सर्वेक्षण
एग्जिट पोल एक सर्वेक्षण है, जो वोट देकर निकल रहे मतदाताओं के बीच किया जाता है. वहीं ओपिनियन पोल या चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण मतदान से पहले कराये जाते हैं. एग्जिट पोल ज्यादा सटीक माने जाते हैं. यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों के वक्त जरूरी नहीं कि मतदाता की राय पुख्ता हो गयी हो, जबकि एग्जिट पोल में वोट देकर निकल रहे मतदाता से पूछा जाता है कि उसने किसको वोट दिया.
इसकी शुरुआत 1967 में नीदरलैंड से हुई. बाद में कई देशों में एग्जिट पोल होने लगा. पर जब यह शिकायत आने लगी कि चुनाव पूरे होने के पहले एग्जिट पोल सार्वजनिक हो जाने से मतदाता प्रभावित होते हैं, तो उसके बाद ज्यादातर देशों ने चुनाव पूरे होने तक एग्जिट पोल के प्रसारण पर रोक लगा दी. भारत में एग्जिट पोल बहुत बाद में, पहली बार सन 2004 के आम चुनाव में चर्चा का विषय बना.