।। दक्षा वैदकर।।
सुनील गावस्कर और वीरेंद्र सहवाग पिछले दिनों कॉमेडी नाइट्स विद कपिल में आये. सुनील गावस्कर यानी सन्नी ने सिद्धूजी के बहुत किस्से सुनाये और बताया कि सिद्धू पहले बिलकुल भी नहीं बोलते थे. किसी भी बात का जवाब उनके पास नहीं होता. हंसते हुए सन्नी कहते हैं, पता नहीं इसने कौन-से तोते की मिर्ची खा ली कि अब इतना बोलने लगा है. इतना अच्छा वक्ता हो गया है. कपिल ने जब यही सवाल सिद्धूजी से पूछा कि आप में इतना बदलाव कैसे आया? तो उन्होंने जवाब दिया ‘पहले मैं बोलने से बहुत घबराता था. मुङो डर लगता था कि अच्छा खेलने के बाद कोई पत्रकार मेरे पास आ कर कुछ पूछ लेगा तो मैं कैसे बोलूंगा. लेकिन फिर मैंने ध्यान करना शुरू किया. इसने मेरी पहचान खुद से करवायी और जब इनसान यह जान जाता है कि वह कौन है, तो उसका आत्मविश्वास अपने आप बढ़ जाता है. अब मैं जो बोलता हूं, डंके की चोट पर बोलता हूं और पूरे विश्वास के साथ बोलता हूं.
दोस्तों अगर आप भी पहले वाले सिद्धूजी की तरह बोलने से डरते हैं, आपकी फील्ड ऐसी है कि आपको भाषण देना पड़ता है, तो इस डर को जीतने के दो अचूक तरीके हैं. पहला, अपनी सामग्री को जानें. दिमाग में तय करें कि आपको किस विषय पर बोलना है और उसमें कौन-कौन-सी जानकारी आपको होनी चाहिए. ध्यान रहे, किसी चीज को रट्टा न मारें. याद की हुई चीजें अकसर भीड़ देख कर इनसान भूल जाता है. जो भी चीज आपको बोलनी है, उसे समझ लें.
भाषण की प्रैक्टिस तब तक करें, जब तक आप नींद में भी इसे सही बोलने लायक न बन जायें. बेहतरीन तरीका यह है कि आप कुछ ‘पेटेंट भाषण’ तैयार कर लें. ताकि विभिन्न जगहों पर आप थोड़ा बहुत हेर-फेर कर के उसे बोल सकें. कुछ पंच वाली शायरियां, कविताएं भी भाषण में शामिल करें, ताकि जोश बरकरार रहे. दूसरी बात, आत्मविश्वास के साथ बोलें. अगर वह भीतर न भी हो, तो भी बाहर से यही जाहिर करें. इसका नाटक करें. कंधे पीछे की ओर कर लें और तन कर खड़े हो जाएं.
बात पते की..
जब भी आप किसी के सामने बोलें, तो यह बिलकुल जाहिर न होने दें कि आपका आत्मविश्वास कमजोर है. इसका नाटक करने का अभ्यास करें.
मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि भावनाएं व्यवहार का अनुसरण करती हैं. अगर आप आत्मविश्वास भरा व्यवहार करेंगे, तो भावनाएं खुद आने लगेगी.
मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि भावनाएं व्यवहार का अनुसरण करती हैं. अगर आप आत्मविश्वास भरा व्यवहार करेंगे, तो भावनाएं खुद आने लगेगी.