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मजदूरों के हित में कई कानून

मित्रों, मई दिवस दुनिया भर में मजदूर दिवस के रूप मे मनाया जाता है. अपने देश में भी उस दिन मजदूर दिवस मनाया जाता है और मजदूरों के हितों से जुड़े विषयों पर हर स्तर पर बहस होती है. इस बहस के नतीजे भी आते रहे हैं. मालिक और मजदूर तथा काम लेना वाला और […]

मित्रों,

मई दिवस दुनिया भर में मजदूर दिवस के रूप मे मनाया जाता है. अपने देश में भी उस दिन मजदूर दिवस मनाया जाता है और मजदूरों के हितों से जुड़े विषयों पर हर स्तर पर बहस होती है. इस बहस के नतीजे भी आते रहे हैं. मालिक और मजदूर तथा काम लेना वाला और काम करने वाला यह दो वर्ग इस बहस का मुद्दा होता है. अगर उद्योगपतियों को छोड़ दें, तो हर मध्यवर्गीय समाज का हर आदमी दोनों की भूमिका में है. वह खुद कहीं श्रम करता है और फिर उसी आय से किसी का श्रम लेता है यानी किसी से मजदूरी कराता है. यह दुहरा जीवन मजदूर के हर सवाल से जुड़ा है. यह मजदूरों के प्रति हमारे दृष्टिकोण और व्यवहार के दोहरेपन की जड़ है. इसे मिटने की कोशिश सदियों से हर देश, संस्कृति और सभ्यता के इतिहास से जुड़ा रहा है. ऐसा नहीं है कि मजदूरों को लेकर बहस और आंदोलन का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं आया. इसके अच्छे नतीजे भी आये हैं. इसे लेकर समाज की सोच को बदलने की बड़ी पहल हुई है. संविधान और कानून में मजदूरों को जगह मिली है. मजदूरों को लेकर कई कानून बने हैं. कई योजनाएं चल रही हैं. इनका लाभ मजदूरों को दिलाने के लिए संस्थागत सरकारी और गैर सामुदायिक प्रयास हो रहे हैं. यह बात दीगर है कि इन कानूनों और योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ मजदूर वर्ग को नहीं मिल पाया है. इसकी बड़ी वजह इस वर्ग की जानकारी और प्रतिरोध का अभाव भी है. हम मजदूर दिवस को ध्यान में रख कर इस बार इसी विषय पर बात कर रहे हैं.

आरके नीरद
मजदूर दिवस मनाने की सबसे पुरानी परंपरा अमेरिका की है. भारत में मजदूर दिवस पहली बार 15 जून, 1923 को मनाया गया था. अमेरिका में मजदूर आंदोलन यूरोप व अमेरिका में औद्योगिक विकास के साथ शुरू हुआ. आज इसी प्रभाव में यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैला हुआ है. 1770 के दशक में अमेरिका की आजादी की लड़ाई और 1860 के गृहयुद्ध से भी मजदूर आंदोलन का जुड़ाव रहा. दुनिया में मजदूरों का पहला संगठन इंग्लैंड में बना. बात 18वीं सदी के मध्य काल की है. मजदूर एवं ट्रेंड यूनियन संगठन 19वीं सदी के अंत तक बहुत मजबूत हो गये थे, क्योंकि यूरोप के दूसरे देशों में भी इस प्रकार के संगठन अिस्तत्व में आने शुरू हो गये थे. अमेरिका में भी मजदूर संगठन बन रहे थे. वहां मजदूरों के शुरूआती संगठन 18वीं सदी के अंत में और 19वीं सदी के शुरू में बनने शुरू हुए.

प्रवासी मजदूरों का मांगें ब्योरा
झारखंड और बिहार से हर दिन बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन होता है. ये मजदूर पश्चिम बंगाल, असम, गुजरात, दिल्ली, आदि राज्यों तथा दूसरे स्थानों पर काम करने जाते हैं. ऐसे मजदूरों का सरकार के पास कोई लेखाजोखा नहीं होता, जबकि अंतरराज्यीय प्रवासी कामगारों के हितों को सुनिश्चित करने के लिए कानून है. कोई भी प्रतिष्ठान पांच या उससे अधिक प्रवासी मजदूर को काम देता है, तो वह अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा-दशाओं का विनियमन) अधिनियम, 1979 के दायरे में आता है. उसे ऐसे मजदूरों के लिए पासबुक जारी करना है तथा उसे दी जाने वाली सभी सुविधाओं को उसमें अंकित करना है. केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित भी करना है. इसके लिए श्रम विभाग के अधिकारी जिम्मेवार बनाये गये हैं. इस कानून को अगर सही-सही लागू कर दिया जाये, तो मजदूरों की कई समस्याओं का आसानी से हल हो सकता है. आप सूचनाधिकार के तहत इस पर पहल कर सकते हैं. आप संबंधित राज्य के श्रम विभाग से वैसे प्रतिष्ठानों, उनमें काम करने वाले अपने राज्य के प्रवासी मजदूरों, उसके पासबुक तथा उन्हें दी जा रही सुविधाओं की जानकारी मांग सकते है.

असंगठित मजूदरों को शोषण से बचाएं
असंगठित क्षेत्र के मजदूर शोषण के सबसे ज्यादा शिकार हैं. इनमें वैसे मजदूर हैं, जिन्हें ठेकेदार ने मकान, सड़क या पुल निर्माण में लगा रखा है. जो मजदूर आपके शहर के दुकानों में काम करते हैं, वे भी शोषण के शिकार हैं, जबकि इन सब के हितों की रक्षा के लिए कानून है, लेकिन श्रम विभाग के अधिकारी उन कानूनों को लागू करने में ईमानदार पहल नहीं करते हैं. आप उन मजदूरों से जुड़ी सूचनाएं मांग सकते हैं. यह सूचना आपके इलाके के श्रम अधिकारी के कार्यालय से प्राप्त होगी. आप श्रम अधिकारी से श्रमिक संबंधी वादों के निबटारे के बारे में भी सूचना मांगें, ताकि मजदूरों के हक को लेकर उनमें सजगता आये.

विशिष्ट उद्योगों से संबंधित कानून
भारत में श्रिमकों से संबंधित 30 से अधिक प्रमुख कानून हैं. ये कानून उद्योगों में श्रिमकों की भर्ती, उनकी सुरक्षा, कल्याण, उनके काम करने के वातावरण, मालिकों का उनके साथ व्यवहार, क्षतिपूर्ति आदि को सुनिश्चित करते हैं. कारखाना और खदान ही नहीं दुकान, भवन निर्माण, बागान आदि में काम करने वाले मजदूरों के हितों के लिए भी कानून हैं.

फैक्टरी अधिनियम 1948
यह अधिनियम कहता है कि ‘ऐसा परिसर जिसमें (1) दस या उससे अधिक कामगार काम करते हों या पिछले बारह महीनों में किसी भी दिन काम कर रहे थे और जिसके किसी भी हिस्से में निर्माण की प्रक्रि या विद्युत-चालित हो अथवा सामान्यत: इस प्रकार की जाती हो, (2) जिसमें भले ही निर्माण प्रक्रि या में बिजली का इस्तेमाल नहीं होता हो, लेकिन उसमें बीस या उससे अधिक कामगार काम करते हों, कारखाना है, लेकिन इसमें खदान अथवा केंद्र सरकार के सशस्त्र बलों से संबंधित इकाई, रेलवे का संचालन करनेवाला शेड, होटल, रेस्तरां अथवा खाने-पीने की जगह शामिल नहीं है. इस कानून को केंद्र सरकार फैक्टरी सलाहकार सेवा एवं श्रम संस्थान महानिदेशालय (डीजीएफएएसएलआइ) तथा तथा राज्य सरकारें फैकटरी निरीक्षकों के माध्यम से लागू कराती है.

बागान श्रमिक अधिनियम, 1951
इसमें बागान-मजदूरों के कल्याण का प्रावधान है और यह बागानों में काम की दशाओं को तय करता है. इस कानून में बागान शब्द का अर्थ है कोई भी बागान. इसमें कार्यालय, अस्पताल, डिस्पेंसरी, स्कूल और वे सभी परिसर शामिल हैं, जहां इस प्रकार के बागान हैं. भले ही उनका कुछ भी हो. इस अधिनियम का संचालन श्रम मंत्रलय अपने औद्योगिक संबंध प्रभाग के माध्यम से करता है. यह केंद्रीय औद्योगिक संबंध प्रणाली (सीआइआरएम) से निकट संबंध बनाकर काम करता है.

खदान अधिनियम, 1952
इसमें कोयला, धातु व लौह तथा तेल की खदानों में काम करने वाले कामगारों के स्वास्थ्य, सुरक्षा व कल्याण से संबंधित उपायों के प्रावधान किये गये हैं. इस अधिनियम के अनुसार खदान शब्द से आशय है ‘ऐसी खुदाई जिसमें खिनजों की खोज या निकासी के उद्देश्य से कोई काम किया गया हो या किया जा रहा हो. इसमें हर तरह की बोरिंग, बोर छिद्र, तेल-कुएं तथा शॉफ्ट, खुली खदानें, कन्वेयर अथवा हवाई रोपवे, प्लेंस, मशीनरी कारखाने, रेलवे, ट्रामवे, स्लाइिडंग, कार्यशालाएं, पावर स्टेशन आदि शामिल हैं. खनन के काम से जुड़े हुए और खनन-क्षेत्र में स्थित या उसके आस-पास के सभी परिसर भी इसके दायरे में आते हैं. इस कानून को श्रम एवं रोजगार मंत्रलय खदान सुरक्षा महानिदेशालय (डीजीएमएस) के माध्यम से लागू करता है. डीजीएमएस खदानों का निरीक्षण, उनकी जांच, खदानों में विभिन्न पदों पर नियुक्ति के लिए दक्षता परीक्षाओं तथा कामगारों की सुरक्षा के विभिन्न आयामों पर सेमिनार व संगोष्ठियां आयोजित करता है.

ठेका श्रम अधिनियम, 1970
यह कानून उन मजदूरों के रोजगार, कल्याण और सुरक्षा से संबंधित है, जो ठेकेदार के लिए काम करते हैं. ठेका श्रम का मतलब है किसी ठेकेदार द्वारा कामगारों को उपयोगकर्ता उद्यम के लिए रखा जाना. ये कामगार सामान्यत: कृषि, बागवानी, निर्माण उद्योग, बंदरगाहों और गोदियों, तेल-क्षेत्रों, फैक्टरियों, रेलवे, जहाजरानी, एयरलाइंस, सड़क परिवहन आदि में लगाये जाते हैं. इस कानून को केंद्र और राज्य सरकार दोनों अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में संचालित करती हैं. रेलवे, बैंक, खदानें आदि केंद्र सरकार के क्षेत्रिधकार में आते हैं. वहीं राज्य में स्थापित इकाइयां राज्य सरकार के क्षेत्रिधकार में. केन्द्र के मामले में केंद्रीय औद्योगिक संबंध प्रणाली (सीआइआरएम) को तथा राज्य में श्रम विभाग के अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी गयी है कि वे इस कानून और इसके नियमों को लागू करें.

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