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तेंदुए की इस तस्वीर को 5 साल बाद मिला अवॉर्ड

<p>19 जुलाई 2012 की सुबह करीब 8 बजे आनंद बोरा को फोन आया कि महाराष्ट्र में एक आदिवासी गांव में बने कुएं में एक तेंदुआ गिर गया है. </p><p>बोरा को अक्सर इस तरह की फोन कॉल आती रहती हैं. वे एक अध्यापक हैं, लेकिन उन्हें वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का भी शौक है.</p><p>फोन सुनने के बाद बोरा […]

<p>19 जुलाई 2012 की सुबह करीब 8 बजे आनंद बोरा को फोन आया कि महाराष्ट्र में एक आदिवासी गांव में बने कुएं में एक तेंदुआ गिर गया है. </p><p>बोरा को अक्सर इस तरह की फोन कॉल आती रहती हैं. वे एक अध्यापक हैं, लेकिन उन्हें वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का भी शौक है.</p><p>फोन सुनने के बाद बोरा तुरंत बुबली नाम के इस गांव की तरफ निकल पड़े. उन्होंने साढे तीन घंटे से भी ज़्यादा वक्त तक वहां तेंदुए को बचाए जाने की कोशिशों को तस्वीरों में कैद किया.</p><p>इन्हीं में से एक तस्वीर में कुएं में फंसा तेंदुआ बचावकर्मियों की तरफ देख रहा था. इस तस्वीर को ‘प्रॉमिनेंट वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी’ अवॉर्ड के लिए चुना गया है. </p><p>बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बोरा बताते हैं, ”तेंदुए ने जब ऊपर देखा तो ऐसा लगा कि जैसे वह जान गया है कि हम उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं.”</p><h3>गांव वालों की मदद से बचावकार्य </h3><p>वन अधिकारियों के पहुंचने पर गांव वालों ने उन्हें बताया कि यह तेंदुआ पिछले 25 घंटों से कुएं में फंसा हुआ है.</p><p>उस समय वहां बारिश हो रही थी इसलिए गांववालों ने बारिश के पानी को भी कुएं की तरफ मोड़ दिया, उन्हें लगा कि कुएं में पानी का स्तर बढ़ने से तेंदुआ तैरते हुए ऊपर आने लगेगा.</p><p>बचाव काम का संचालन कर रहे वरिष्ठ वन अधिकारी सुरेश वाडेकर ने बीबीसी से कहा, &quot;हमने गांववालों को कहा कि कुएं में पानी छोड़ने से जानवर डूब भी सकता है.&quot;</p><p>वाडेकर ने देखा कि तेंदुए की सांसें फूल रही थीं, इसलिए उन्होंने कुछ देर के लिए बचाव काम रोक दिया. </p><p>गांववालों की मदद से अधिकारियों ने एक लकड़ी का तख्ता पानी में उतारा. तेंदुआ जब लकड़ी के तख्ते पर चढ़ गया तो कुछ लोगों ने उसे पकड़े रखा. दूसरे लोग कहीं से चारपाई ढूंढकर लाए और धीरे से कुएं में उतारी. जैसे ही चारपाई नीचे गई, तेंदुआ लकड़ी के तख्ते से कूदकर चारपाई पर बैठ गया. </p><p>बोरा ने बताया &quot;जब वो चारपाई को ऊपर खींच रहे थे तो तेंदुआ एक टक वहां जमा लोगों को देख रहा था. जैसे ही चारपाई ऊपर आई, तेंदुआ कुएं की दीवार से कूदकर जंगल की ओर भाग गया. कुछ ही पलों में वो गायब हो गया.&quot; </p><p>लोमड़ी और तेंदुए जैसे जानवर अपने शिकार या पानी की तलाश में भटककर गन्ने के खेतों में आ जाते हैं और कई बार कुएं में गिर जाते हैं. </p><p>बोरा बताते हैं कि उन्होंने अब तक 100 से ज्यादा बचाव अभियानों की तस्वीरें ली हैं. इसमें यूरेशियन ईगल आउल का बचावकार्य भी शामिल है.</p><p>बोरा ऐसे ही एक उल्लू के बचावकार्य को याद करते हुए बताते हैं, ”एक उल्लू ने कौए के साथ लड़ते हुए अपना एक पंख गंवा दिया था, कई महीनों तक इलाज के बाद उसे जंगल में वापस भेज दिया गया.” </p><h3>तेंदुए को नहीं किया बेहोश</h3><p>बोरा बताते हैं कि बुबली में बचाव अभियान का तरीका कुछ हटकर है. यहां गांववाले बचाव काम के समय तेंदुए को बेहोश करने की मांग नहीं करते. </p><p>वो एक दूसरी घटना को याद करते हुए बताते हैं कि कैसे एक गांव में वनकर्मियों को धमकाया गया कि वो तेंदुए को बेहोश करें और अपने साथ ले जाएं. </p><p>बोरा बताते हैं, &quot;इस बार ऐसा कोई दबाव नहीं था.&quot; बचाव अभियान के दौरान कई गांव वाले वहां मौजूद थे. </p><p>वन अधिकारी वाडेकर को डर था कि भीड़ को देखकर तेंदुआ हिंसक ना हो जाए, इसलिए लोगों को शांति के साथ कुएं से दूर खड़े रहने को कहा गया. </p><p>वाडेकर 20 साल में 137 तेंदुओं का बचाव कर चुके हैं. वो बताते हैं कि 100 से ज्यादा अभियानों में तेंदुए को बेहोश करना पड़ा. वो मानते हैं कि बुबली एक आदिवासी गांव है, इसलिए यहां लोग जानवरों की मौजूदगी को स्वीकार करते हैं. </p><h3>जानवरों और इंसानों में बढ़ा संघर्ष </h3><p>लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता. नवंबर 2016 में जब एक तेंदुए ने एक लड़की को मार दिया तो इंसानों की भीड़ ने उस तेंदुए को जलाकर मार डाला.</p><p>बेंगलुरू के एक स्कूल में एक तेंदुए ने छह लोगों को जख्मी कर दिया था जिसके बाद उसे बेहोश करके छोड़ दिया गया. </p><p>वाडेकर बताते हैं कि इस साल नासिक में तेंदुओं ने दो बच्चों को मार दिया. लेकिन गांव वालों ने कभी जानवर को नहीं पकड़ा.</p><p>वाडेकर जागरूकता की जरूरत बताते हैं. वो कहते हैं, &quot;तेंदुए जान-बूझकर इंसानों को शिकार नहीं बनाते.&quot;</p><p>तेज़ी से कटते जंगलों की वजह से हाथी, शेर और तेंदुए रिहायशी इलाकों की तरह आ जाते हैं. यही वजह है कि बीते कुछ समय में जानवरों और इंसानों में संघर्ष बढ़ा है. </p><p>भारत में तेंदुआ एक संरक्षित जीव है और उनके अंगों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रतिबंधित है. </p><p>वन्यजीव विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में तेंदुए की संख्या के बारे में कोई सही आंकड़ा मौजूद नहीं है. लेकिन हाल ही में की गई वन्यजीव जनगणना में 12 से 14 हजार तेंदुओं के होने का अनुमान लगाया गया. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.</strong><strong>)</strong></p>

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