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चेन्नई की महिला ने बनाया गरीबों के लिए मुफ़्त खाना देने वाला फ़्रिज

‘भूख है तो क्या हुआ, रोटी नहीं तो सब्र कर’ दुष्यंत कुमार की लिखी ये पंक्तियां मौजूद हालात में भी फ़िट बैठती हैं. लेकिन सब्र की भी तो एक सीमा होती है. कोई क्यों और कितना इंतज़ार करे? इस बेदर्द इंतज़ार को ख़त्म करने की कोशिश कर रही हैं चेन्नई की ईसा फ़ातिमा जैसमिन. 34 […]

‘भूख है तो क्या हुआ, रोटी नहीं तो सब्र कर’ दुष्यंत कुमार की लिखी ये पंक्तियां मौजूद हालात में भी फ़िट बैठती हैं.

लेकिन सब्र की भी तो एक सीमा होती है. कोई क्यों और कितना इंतज़ार करे?

इस बेदर्द इंतज़ार को ख़त्म करने की कोशिश कर रही हैं चेन्नई की ईसा फ़ातिमा जैसमिन. 34 साल की ईसा पेशे से डॉक्टर हैं.

उन्होंने इस साल अगस्त महीने में एक ऐसी कोशिश शुरू की है जिससे खाने की बर्बादी कम हो रही है और ग़रीबों का पेट भी भर रहा है.

उन्होंने चेन्नई के बेसेंट नगर में एक ‘कम्युनिटी फ्रिज़’ लगवाया है.

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फ्रिज के साथ डोनेशन काउंटर भी है

इस फ्रिज़ में आम लोग और होटलों के कर्मचारी अपनी मर्जी से बचा हुआ खाना लाकर रखते हैं.

ईसा ने इस पहल को ‘अयमित्तु उन्न’ नाम दिया है. हिंदी में इसका मतलब है,’खाना खाने से पहले इसे जरूरतमंद लोगों के साथ शेयर कीजिए.”

फ्रिज़ के ही ठीक बगल में एक शेल्फ़ और डोनेशन काउंटर है जहां खिलौने, कपड़े और किताबें भी दी जा सकती हैं.

इस पहल को काफ़ी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और लोग सोशल मीडिया पर भी इस बारे में बात कर रहे हैं.

कैसे आया कम्युनिटी फ्रिज का आइडिया?

सामुदायिक फ्रिज़ का आइडिया उनके जेहन में आया कैसे? इसके जवाब में ईसा ने बीबीसी को बताया,”विदेशों में कम्युनिटी फ्रिज़ का कॉन्सेप्ट काफी वक़्त से चल रहा है. मैंने इस बारे में पढ़ा था और मुझे यह तरीका पसंद आया.”

ईसा कहती हैं,”हमारे समाज में लोग जरूरतमंदों को खाना देने में झिझकते नहीं हैं. लेकिन, यह भी सच है कि वे कई किलोमीटर चलकर बचा हुआ खाना या पुराने कपड़े दान करने नहीं जाते. लोगों की लापरवाही और सही इंतजाम न होने की वजह से न जाने कितना खाना हर रोज बर्बाद होता है.”

ईसा का मानना है कि अगर हर गली-मोहल्ले में कम्युनिटी फ्रिज़ जैसी कोई व्यवस्था हो तो लोग टहलते हुए खाना रखने से इनकार नहीं करेंगे.”

फ्रिज और उसमें रखे खाने की देखरेख कौन करता है? इसके जवाब में ईसा बताती हैं कि उन्होंने एक सिक्योरिटी गार्ड को इस काम के लिए रखा है और वे उसे हर महीने तनख्वाह भी देती हैं.

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उन्होंने बताया,”सिक्योरिटी गार्ड इसका ख्याल रखता है कहीं कोई शरारती तत्व आकर फ्रिज़ और शेल्फ़ को नुकसान न पहुंचाएं. इसके साथ ही वो खाने की क्वालिटी भी चेक करता है, जैसे खाने में क्या दिया जा रहा है, खाना ठीक से पैक किया गया है या नहीं…वगैरह, वगैरह.”

यह गार्ड लोगों को फ्रिज़ से खाना लेने के लिए प्रोत्साहित भी करता है.

फ्रिज में खाना रखने के नियम

ईसा ने बताया, ”शुरुआत में लोग खुद से आकर खाना लेने में झिझकते थे. हमारे गार्ड ने उन्हें समझाया कि ये सब उन्हीं के लिए किया जा रहा है और वे बिना किसी शर्म या झिझक के आकर खाना ले सकता है. वो लोगों से खाना और दूसरे ज़रूरी सामान दान करने की अपील भी करता है.”

क्या फ़्रिज में खाना रखने को लेकर कोई नियम हैं? इसके जवाब में ईसा कहती हैं, ”हां, बिल्कुल. हम सिर्फ शाकाहारी खाना ही लेते हैं. इसकी दो वजहें हैं- नॉनवेज खाना वेज के मुकाबले जल्दी खराब हो जाता है. दूसरा, कई बार शाकाहारी लोग वहां से खाना लेना पसंद नहीं करते जहां नॉनवेज रखा हो.”

ईसा ने बीबीसी को बताया कि खाने की क्वालिटी पर बहुत ज़ोर दिया जाता है. फ़्रिज में दूध रखने की इजाजत भी नहीं है क्योंकि ये बहुत जल्दी खराब हो जाता है.

खाने के पैकेट पर यह बताना ज़रूरी है कि उसे कब तक खाया जा सकता है. खाना रखने के बाद गार्ड लोगों से रजिस्टर पर एंट्री करने को भी कहता है.

वो कहती हैं,”खाना लेने के लिए कोई आइडी कार्ड दिखाने की ज़रूरत नहीं है और न ही गरीबी का सबूत देने की. अगर आप भूखे हैं और वहां से गुजर रहे हैं तो बेशक खाने पर आपका हक है.”

ईसा ने ‘द पब्लिक फ़ाउंडेशन’ नाम का एक फ़ेसबुक पेज भी बनाया है जिस पर वह इससे जुड़ी जानकारियां और तस्वीरें साझा करती हैं.

उन्होंने बताया,”ये सब शुरू करते हुए मैं थोड़ी डरी हुई थी लेकिन अब मैं निश्चिंत हूं. मुझे रोज लोगों के फ़ोन आते हैं जो इस काम में मेरी मदद करना चाहते हैं.”

पिछले महीने उनके पास एक महिला का फ़ोन आया जो अपने पति के जन्मदिन पर 20 टिफ़िन सांभर और चावल दान करना चाहती थी.

फिलहाल ईसा इस कोशिश को बड़ा रूप देने के बजाय इसे जारी रखने की कोशिश कर रही हैं.

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