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कहां गया ‘रोमियो’ पकड़ने वाला बहुचर्चित स्क्वॉड?

उत्तर प्रदेश में 19 मार्च को योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी. सरकार में अभी मंत्रियों को ठीक से विभाग भी नहीं बंटे थे कि कई ज़िलों में पुलिस अधिकारियों ने अपनी ही पहल पर ‘एंटी रोमियो स्क्वॉड’ गठित कर दिए. इस स्क्वॉड में शामिल पुलिसकर्मी स्कूलों, कॉलेजों और पार्कों […]

उत्तर प्रदेश में 19 मार्च को योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी. सरकार में अभी मंत्रियों को ठीक से विभाग भी नहीं बंटे थे कि कई ज़िलों में पुलिस अधिकारियों ने अपनी ही पहल पर ‘एंटी रोमियो स्क्वॉड’ गठित कर दिए.

इस स्क्वॉड में शामिल पुलिसकर्मी स्कूलों, कॉलेजों और पार्कों के बाहर सड़कों पर कुछ इस अंदाज़ में उतरे जैसा कि अक़सर वैलेंटाइन डे यानी 14 फ़रवरी को देखने को मिलता है. पुलिसकर्मी नौजवान लड़कों पर इस क़दर टूट पड़े मानो उनमें हर कोई शोहदा है जो लड़कियों को परेशान करता है.

कई बार साथ घूम रहे लड़कों के साथ लड़कियां भी गिरफ़्त में आईं. किन्हीं के घर पर फ़ोन किया गया, कुछ को सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी गई और कुछ को सज़ा भी मिली. लेकिन महज़ छह महीने के भीतर इस एंटी रोमियो स्क्वॉड का उत्साह इस क़दर ठंडा पड़ गया कि अभी पिछले ही हफ़्ते सहारनपुर की एक लड़की को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके स्कूल छोड़ने की वजह बतानी पड़ी.

लड़की ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस

नौवीं कक्षा की ये लड़की रोते हुए मीडिया को बताती है, "मैं बाहर सामान लेने गई थी, मुझे कुछ लड़कों ने पकड़ लिया, छेड़खानी की. बाद में मेरे पापा गए तो उनके साथ भी लड़ाई की. मैं पिछले चार दिन से स्कूल नहीं जा रही हूं."

दरअसल, एंटी रोमियो अभियान का मक़सद था लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षा देना, भयमुक्त वातावरण देना और उन्हें परेशान करने वालों को सज़ा देना. लेकिन बलिया ज़िले में एक छात्रा की मौत, लखीमपुर में सरेआम एक छात्रा के हाथ काट देने की घटना, शाहजहांपुर और सहारनपुर में छेड़छाड़ की वजह से स्कूल छोड़ देने की घटनाएं महज़ कुछेक उदाहरण हैं. ऐसी घटनाएं राज्य में आए दिन हो रही हैं.

सवाल उठता है कि इतनी जल्दी पुलिस का ये अभियान अपने खाते में सिर्फ़ बुराइयां ही क्यों दर्ज करा पाया, उपलब्धियां क्यों नहीं?

‘बाक़ायदा प्रशिक्षण दिया है’

उत्तर प्रदेश में महिलाओं से छेड़छाड़ जैसी शिकायत के लिए बनी वीमेन पॉवर लाइन यानी 1090 के इंचार्ज और पुलिस उपमहानिरीक्षक नवनीत सिकेरा कहते हैं, "ये अभियान सफल नहीं रहा, ऐसा कहना ठीक नहीं है. दरअसल, शुरू में पूरी तैयारी से इसे नहीं शुरू किया गया और दूसरा इसे लेकर हमारे पुलिसकर्मी भी अति उत्साह में आ गए और उन्होंने अपने ढंग से इस पर अमल करना शुरू कर दिया जिससे कुछ लोगों को परेशानी भी हुई.’

सिकेरा का कहना है कि वैसी घटनाएं अब नहीं हो रही हैं और पुलिसकर्मियों को बाक़ायदा प्रशिक्षित किया जा चुका है. तो ये बंद नहीं हुआ है बल्कि पुलिस अब उस तरह से इस पर अमल नहीं कर रही है जिसकी वजह से ये शुरुआत में चर्चाओं में था.

दरअसल, एंटी रोमियो के नाम पर पुलिस वाले सीधे तौर पर ‘मॉरल पुलिसिंग’ करने लगे और इसकी ज़द में कई ऐसे लोग भी आ गए जिनका छेड़छाड़ जैसी घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं था. कई मामलों में इन बातों को बाद में पुलिस अधिकारियों ने भी स्वीकार किया.

पुलिस के पास कोई योजना नहीं

वहीं, इस बारे में जब कुछ छात्र-छात्राओं से बात की गई तो मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली. कुछ छात्राओं ने जहां इसे एक अच्छी पहल बताया वहीं कुछ का कहना था कि उन्होंने तो अब तक कहीं इसे देखा नहीं.

पुलिस विभाग में तो अभी तक एंटी रोमियो स्क्वॉड को लेकर कोई योजना नहीं बनी है. एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ये ज़िले के अधिकारियों पर निर्भर है कि वे कैसे इसे लागू करते हैं, कोई एकरूपता नहीं है और न ही केंद्रीय स्तर पर कोई मॉनीटरिंग सिस्टम. उनका कहना था कि कहीं क्षेत्राधिकारी स्तर का अधिकारी लीड कर रहा है तो कहीं एडिशनल एसपी स्तर का.

पुलिस आंकड़ों की मानें तो 19 मार्च से लेकर 13 सितंबर तक इस संबंध में करीब पंद्रह लाख लोगों को चेक किया गया, दो हज़ार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई और सवा छह लाख लोगों को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया.

लेकिन वरिष्ठ पत्रकार सुनीता ऐरन कहती हैं कि छेड़छाड़ की घटनाओं पर इससे कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा है, "इसे लागू करने के पीछे मुख्य रूप से ये मक़सद था कि कथित लव जेहाद जैसे मामलों को रोका जाए. चूंकि इसके लिए बीजेपी ने काफी प्रचार प्रसार किया था. उन्होंने घोषणा पत्र में भी इसी मक़सद से इसे शामिल किया था. लेकिन लागू करने में कुछ ज़्यादा ही जल्दी दिखा दी गई और ऐसी जल्दी कि न तो पुलिस तैयार थी और न ही सरकार. तो नतीजा यही होना था. आप देख रहे हैं कि छेड़खानी, बलात्कार, हत्या जैसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं."

जल्दबाज़ी की बात स्वीकारी

सुनीता ऐरन कहती हैं कि इस अभियान में भी सरकार ने वैसी ही जल्दबाज़ी दिखाई जैसी कि अन्य योजनाओं में की है. उनके मुताबिक सरकार एक के बाद एक घोषणाएं करती जा रही है लेकिन अंजाम तक पहुंचा पाने में वो नाकाम है और इसकी वजह ये है कि उसके पास इनमें से किसी को भी लागू करने का न तो कोई रोड मैप है और न ही वो बनाना चाहती है.

जल्दबाज़ी की बात तो पुलिस अधिकारी भी स्वीकार करते हैं. नवनीत सिकेरा कहते हैं कि इन्हीं सबको देखते हुए इस स्क्वॉड में लगे सभी पुलिसकर्मियों को पिछले तीन महीने से प्रशिक्षण दिया जा रहा है. सिकेरा इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि ख़ासकर महिला पुलिसकर्मियों ने एंटी रोमियो स्क्वॉड के नाम पर जो कथित ज़्यादती की थी, प्रशिक्षण के दौरान उसकी चर्चा उन्होंने बड़े ‘शान’ से की.

नवनीत सिकेरा कहते हैं, "ऐसे पुलिसकर्मियों ने प्रशिक्षण के बाद ये स्वीकार किया कि वो जो कर रहे थे वो ठीक नहीं था. प्रशिक्षण के बाद अब नए तरीक़े से इस अभियान को चलाया जाएगा और उम्मीद है कि अब वैसी दिक़्क़तें नहीं आएंगी जैसी कि शुरू में आई थीं."

दरअसल, जब इसे ज़ोर-शोर से शुरू किया था तो कई जगह नौजवानों को पुलिस वाले सार्वजनिक तौर पर परेशान करते दिखे. कहीं थप्पड़ मारा गया तो कहीं उठक-बैठक कराई गई.

कुछेक जगहों पर तो साथ बैठे युवक-युवतियों को भी परेशान किया गया. इन्हीं सब वजहों से ये अभियान काफी चर्चा में रहा. दूसरी ओर जब ये अभियान चल रहा था तब भी कई जगहों से छेड़खानी जैसी शिकायतें आ रही थीं. इसलिए अभियान पर और ज़्यादा सवाल उठने लगे.

सिकेरा दावा करते हैं कि अब पुलिस का व्यवहार बहुत ही सकारात्मक रहेगा. वहीं जानकारों को इस अभियान की सफलता पर अभी भी बहुत उम्मीद नहीं है. लेकिन ऐसा वो भी कहते हैं कि शायद प्रशिक्षण के बाद अब पुलिस युवाओं पर रोमियो का ठप्पा लगाकर सार्वजनिक रूप से उनकी फ़जीहत न करे.

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