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बाढ़ के बाद डिमांड में हैं ”छोटू नागराज”

दिन हो या रात, उनके मोबाइल फ़ोन की घंटी कभी भी बजने लगती है. कॉल किसी भी वक़्त आए, वह उठाने में देर नहीं करते. वैसे तो पिछले सात सालों से यह सिलसिला चल रहा है मगर पिछले दो हफ़्तों से इन जनाब का फ़ोन इतना व्यस्त है कि बार-बार चार्ज करना पड़ रहा है. […]

दिन हो या रात, उनके मोबाइल फ़ोन की घंटी कभी भी बजने लगती है. कॉल किसी भी वक़्त आए, वह उठाने में देर नहीं करते.

वैसे तो पिछले सात सालों से यह सिलसिला चल रहा है मगर पिछले दो हफ़्तों से इन जनाब का फ़ोन इतना व्यस्त है कि बार-बार चार्ज करना पड़ रहा है. हम बात कर रहे हैं ‘छोटू नागराज’ की, जिनका नंबर पूर्वी उत्तर प्रदेश के दर्जनों गांवों के लोगों के मोबाइल या डायरी में दर्ज है.

बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके में बाढ़ की विभीषिका चरम पर है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में 455 से ज़्यादा गांव बाढ़ से प्रभावित है और करीब साढ़े छह सौ मकान में पानी में डूबे हुए हैं.

पहले ही खाने और पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बड़ी मुसीबत वे ख़तरनाक और ज़हरीले सांप हैं जो बाढ़ के पानी में बहते हुए उनके घरों तक आ पहुंचते हैं. जहां ज़िंदगी पहले ही ख़तरे में है, वहां पर ख़तरा और बढ़ जाता है.

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छोटू नागराज का जलवा

बिजली न होने की वजह से रात में सर्पदंश का ख़तरा और बढ़ जाता है. ऐसे में लोगों को ‘छोटू नागराज’ याद आते हैं. जैसे ही छोटू नागराज के मोबाइल फ़ोन की घंटी बजती है, अपनी बाइक उठाकर वह उस इलाके की तरफ़ चल पड़ते हैं जहां सांप होने की ख़बर है.

छोटू के आने की ख़बर से ही वहां भीड़ जमा हो चुकी होती है. उनके पहुंचते ही लोग तालियां बजाने लगते हैं. किसी माहिर खिलाड़ी की तरह छोटू घर के उस कोने की तरफ़ जाते हैं, जहां से उन्हें सांप की मौजूदगी की ‘गंध’ आ रही होती है.

बमुश्किल 10 मिनट में वह अपने हाथ में ख़तरनाक सांप को लेकर निकलते हैं. फिर तालियों का वह दौर शुरू होता है जिसे देखकर फ़िल्मी सितारे और कलाकार तक रश्क खाने लगें.

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मौलवी साहब ने दिया था ‘मंत्र’

कुछ लोग अपने अपने यहां बिठाना चाहते हैं, खिलाना चाहते हैं, बातें करना चाहते हैं तो कुछ लोग पकड़े गए सांप के साथ सेल्फ़ी भी लेना चाहते हैं. मगर छोटू को कहीं और पहुंचने की जल्दी होती है.

गोरखपुर के दक्षिणांचल स्थित बेलीपार गांव के नागराज छोटू का का असली नाम आफ़ताब है. वह और उनके जुड़वां भाई महताब 7 साल पहले पढ़ाई के दौरान अपने गुरु मौलवी साहब के बेहद ख़ास हो गए थे.

आफ़ताब बताते हैं कि एक शाम जब वह मौलवी साहब के पांव दबा रहे थे तो उन्होंने दुआ देते हुए कहा कि आने वाला वक़्त तुम्हें लोकप्रियता देगा और लोग तुम्हें दिल से दुआएं देंगे.

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नया रास्ता

उन्होंने बताया, ‘मौलवी साहब ने हम दोनों भाइयों को अरबी में एक मंत्र दिया और कहा कि यह तुम्हें ख़तरनाक सांपों को पकड़ने और उसके ज़हर से बेसअर होने की ताकत देगा.’

आफ़ताब दावा करते हैं कि कुछ ही दिन बाद एक अजीब बात हुई. सांप ने उन्हें काटा मगर उनपर ख़ास असर नहीं हुआ. तब दोनों भाइयों को मौलवी साहब की बात याद आ गई.

यहां से उन्हें ज़िंदगी में एक नया रास्ता भी दिखाई देने लगा.

धीरे-धीरे दोनों भाई सांपों को पकड़ने लगे. उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई और आसपास के 30-35 गांवों में उन्हें सांप पकड़ने के लिए बुलाया जाने लगा.

‘नागराज’ नाम का क़िस्सा

आफ़ताब बताते हैं कि उन दिनों नागराज के कॉमिक्स बड़े लोकप्रिय थे.

ऐसे में गांव के ही डॉक्टर सदरुद्दीन ने उन्हें नागराज कहना शुरू कर दिया. फिर यह नाम गांव में फैला, फिर कस्बे तक और धीरे-धीरे फैलता हुआ शहर से पड़ोसी ज़िलों तक जा पहुंचा.

कुछ वक़्त पहले महताब उर्फ़ बड़ू नागराज ड्राइवर की नौकरी करने दुबई चले गए तो अब छोटू अकेले ही इस काम को कर रहे हैं.

छोटू नागराज बताते हैं कि दूर-दराज़ के लोगों तक पहुंचने के लिए उन्होंने अपने खर्चे से कुछ पोस्टर छपवाकर जगह-जगह लगवा दिए हैं ताकि उनके बारे में पता चल जाए.

पैसे नहीं लेते

छोटू अपनी सेवाओं के बदले कभी किसी से कुछ नहीं मांगते. वह बताते हैं कि मौलवी साहब ने ताकीद की थी कि जिस दिन इससे सेवा के बजाय कमाई करने लगोगे, यह ताकत दूर होती जाएगी. छोटू कहते हैं कि मैं इस बात को नहीं भूला हूं.

पिछले सात सालों ने उनका फ़ोन चौबीसों घंटे बजता रहता है. फ़ोन पर जानकारी मिलते ही वह अपनी मोटरसाइकल पर निकल पड़ते हैं, फिर मौसम चाहे कैसा भी हो.

इन सात सालों में छोटू नागराज कई अजगर और अन्य ज़हरीले सांप पकड़ चुके हैं. ज़हरीले सांपों को वह वन विभाग के हवाले कर देते हैं और कम जहरीले सांपों को ख़ुद जंगल छोड़ आते हैं.

छोटू बताते हैं कि बाढ़ आने के बाद पिछले 15 दिनों में ही उन्होंने 161 सांप पकड़े हैं.

अभी पिछले महीने ही आफ़ताब उर्फ़ छोटे नागराज का निकाह हुआ है. क्या उनकी नई नवेली बेगम उन्हें ऐसे ख़तरनाक काम पर जाने से नहीं रोकतीं?

इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, ‘मेरे घरवाले और मेरी बेगम ज़रीना, सभी जानते हैं कि मैं इस काम को ख़ुदा कि ख़िदमत की तरह मानता हूं. इसलिए कोई मुझे नहीं रोकता. मैं सोचता हूं कि कोई परेशान आदमी मेरी मदद का इंतज़ार कर रहा है. अगर मैं उसके काम आ सकूं तो उसकी दुआएं मेरे काम आएंगी.’

क्या बड़ू की तरह छोटू का दिल दुबई जाने का नहीं करता? यह पूछने पर वह कहते हैं, ‘बिल्कुल नहीं जी. काम तो कोई बुरा नही होता मगर मेरी जिंदगी का मक़सद लोगों के दिलों में जगह बनाना है, उनकी दुआएं हासिल करना है. मैं इसी में खुश हूं.’

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