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झारखंड: आदिवासी महिला के बीमार बेटे ने गोद में दम तोड़ा

झारखंड के गुमला ज़िले में बच्चे का इलाज कराने पहुंची आदिवासी महिला डॉक्टरों को बिना बताए अपने बच्चे को लेकर अस्पताल से निकल गई. क़रीब 10 किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद महिला ने देखा कि उनके तीन साल के बेटे की सांसें थम गई हैं. बच्चे की मौत के बाद कई सवाल उठ रहे […]

झारखंड के गुमला ज़िले में बच्चे का इलाज कराने पहुंची आदिवासी महिला डॉक्टरों को बिना बताए अपने बच्चे को लेकर अस्पताल से निकल गई.

क़रीब 10 किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद महिला ने देखा कि उनके तीन साल के बेटे की सांसें थम गई हैं.

बच्चे की मौत के बाद कई सवाल उठ रहे हैं.

महिला का आरोप है कि सदर अस्पताल में बच्चे का ढंग से उपचार नहीं हो रहा था जबकि अस्पताल प्रशासन का दावा है कि बच्चे का नियमित उपचार किया जा रहा था.

गुमला के बरांग गांव की सरिता उराइन ने अपने तीन साल के बीमार बच्चे को ज़िला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में 13 अगस्त को भर्ती कराया था.

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अस्पताल के अधिकारियों के मुताबिक़ बच्चे को बुखार के साथ शरीर पर कुछ जख़्म भी थे और बीते पांच दिन से वे लोग अस्पताल में ही थे.

सदर अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर जेपी सांगा बताते हैं कि शुक्रवार की दोपहर वो महिला बच्चे को लेकर चुपके से अस्पताल से चली गई, जबकि इलाज चल रहा था.

महिला के साथ उनका छह साल का बड़ा बेटा भी था.

कमज़ोर था बच्चा

जिला मुख्यालय से बरांग गांव करीब पचास किलोमीटर दूर है. गुमला से दस किलोमीटर दूर टोटो के निकट बच्चे की मौत हो जाने के बाद सरिता और उनका बेटा सड़क पर ही फटे-पुराने गमछे से लिपटे शव को रखकर रोते रहे.

गुमला में बीस सूत्री समिति के सदस्य सिकंदर मांझी बताते हैं कि कुछ लोगों ने उन्हें जानकारी दी कि बरांग गांव की एक आदिवासी महिला के साथ इस तरह का हादसा हुआ है. वे तुरंत वहां पहुंचे.

सिकंदर बताते हैं कि बच्चे का शव देखकर पता चल रहा था कि वह कमजोर और कुपोषण का शिकार था.

बच्चे के हाथ में सुई और स्लाइन चढ़ाने (इंजैक्ट) के लिए जेलको भी लगा था.

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महिला ने कहा कि अस्पताल में ढंग से देख-रेख नहीं हो रही थी, इसलिए वह बच्चे को लेकर निकल आईं. उनके पास खाने और किराए के पैसे भी नहीं थे.

सिकंदर मांझी के मुताबिक़, सरिता उराइन के पति नहीं हैं, और वो अकेले अपने दो बच्चों की परवरिश कर रही थीं.

मौके पर जुटी भीड़ ने आपस में पैसे जुटाए और उन लोगों को एक ऑटो में बैठाकर महिला को गांव भेजा.

स्थानीय लोग सदर अस्पताल की व्यवस्था से भी नाराज़ हैं. उनका ज़ोर इस बात पर था कि अस्पताल में किसी ने उन्हें रोका होता तो ये नौबत नहीं आती.

नहीं पहुंचे अधिकारी

सिविल सर्जन ने महिला के आरोपों पर कहा कि बच्चे का नियमित तौर पर इलाज चल रहा था और शुक्रवार को भी डॉक्टर ने चेकअप किया था.

उन्होंने कहा, ”बच्चे को जख़्म सूखने की दवा दी जा रही थी और टीबी होने की आशंका में पैथोलॉजिकल जांच भी कराई जा रही थी. उन लोगों को अस्पताल में खाना भी दिया जा रहा था. ”

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डॉ. सांगा ने कहा, ”जिस वक़्त सरिता अपने बच्चे को लेकर अस्पताल ले निकलीं, वह नर्सों की ड्यूटी बदलने का वक़्त था. जिस वार्ड में बच्चे को भर्ती किया गया था वो नर्स रूम से कुछ दूरी पर था.”

उधर, घटना की जानकारी मिलने पर जिला प्रशासन ने घाघरा प्रखंड के अधिकारियों से महिला को सरकारी योजना का लाभ देने का निर्देश दिए हैं. साथ ही अस्पताल प्रंबधन से घटना की जानकारी मांगी है.

हालांकि पंचायत प्रतिनिधियों के मुताबिक अब तक कोई अधिकारी वहां नहीं पहुंचे.

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