पहाड़ी कोरवा आदिम जनजाति के दो बुज़ुर्ग महिला-पुरुष उम्र के अंतिम पड़ाव में शादी करके सबको हैरान कर दिया है. लगातार ख़त्म हो रही पहाड़ी कोरवा जनजाति में यह पहली शादी है.
लिव इन रिलेशन में 8 दिन से रह रहे 75 वर्ष के रतिया राम और 70 वर्ष की जीवनी बड़ी ने समाज से अनुमति लेकर शादी कर ली.
हालांकि इस जनजाति में अकेले जीवन जीने वाले पुरुष अपने समाज की किसी अकेली महिला को चूड़ी पहनाकर पत्नी के रूप में रख लेते थे.
वे आधुनिक लिव इन रिलेशन में रहते थे. उन्हें शादी करने की अनुमति नहीं थी.
कोरवा जनजाति के लोग छत्तीसगढ़ के जशपुर, कोरबा, बिलासपुर, सरगुजा, सूरजपुर और रायगढ़ जिले के अलावा झारखंड के भी कुछ दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं.
इनकी प्रदेश में कुल जनसंख्या 37 हजार के आसपास है.
जंगली फल-अनाज और शिकार पर जीवन-यापन करने वाली इस जनजाति ने आधुनिक सभ्यता के सामने दो बुज़ुर्ग प्रेमियों की शादी कराकर एक मिसाल पेश की है.
इन दोनों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. हालांकि इन दोनों के कई रिश्तेदार हैं.
‘पेंशन से जी लेंगे’
दूल्हा बने रतिया राम ने बीबीसी को बताया कि "एक सामाजिक कार्यक्रम में 15 दिन पहले हम दोनों की मुलाक़ात हुई. उसी समय दोनों ने एक-दूसरे के साथ रहने का मन बना लिया.’
इसके बाद रतिया राम जीवनी बड़ी को लेकर अपने गाँव बगडोल आ गया और साथ रहने लगे. इसी दौरान सरपंच ललित नागेश को यह बात पता चली.
कोरवा समाज ने भी पंचायत की बैठक में दोनों की रज़ामंदी पर मुहर लगा दी और 16 अगस्त को दोनों की धूमधाम से शादी कर दी.
शादी में दोनों के नाती-पोते भी शामिल हुए. दोनों बुज़ुर्ग 20 सालों से अकेले जीवन बिता रहे थे.
वहीं, दुल्हन बनी जीवनी बड़ी भी स्थानीय बोली में कहती है "जब रतिया राम मुझे रखने को तैयार हैं तो मुझे क्या परेशानी. इस समय कोई पूछता नहीं है कम से कम ये तो मेरा ख्याल रखेगा. पेंशन से दोनों जी लेंगे."
इस शादी में दोनों वर-वधू के नाती-पोते, रिश्तेदार भी ख़ुशी नाच-गा रहे थे. रतिया राम के पोते दहिया राम ने कहा कि समाज का यह फ़ैसला सही है.
उन्होंने कहा, ‘मैं ख़ुद भी मेरी पत्नी के छोड़कर चले जाने के बाद एक विधवा महिला के साथ रह रहा हूं. अब समाज से अनुमति लेकर शादी करूंगा."
बगीचा क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता हलीम फिरदौसी ने भी अत्यंत पिछड़ी जनजाति में हुई इस शादी को भारत की ऐतिहासिक बताया है.
कोरवा समाज के संरक्षक और भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रबल प्रताप सिंह जूदेव इस अनोखी शादी में शामिल हुए.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि "संविधान ने पहाड़ी कोरवा जनजाति को अति विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा दिया है. इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए केंद्र और राज्य सरकार कई योजनाएं चला रही है.’
मिसाल
इस जनजाति के लोगों ने शादी के लिए उम्र की सीमा को हटाकर एक नई मिसाल पेश की है.
जूदेव ने कहा, ‘आधुनिक समाज में भी उम्र के अंतिम पड़ाव में अकेले जीवन जीने वाले काफ़ी लोग ओल्ड एज होम जा रहे हैं या घर के किसी कोने में बैठकर अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे हैं जबकि यहां तो पूरे जोश के साथ अपनी बची ज़िंदगी बिताने के लिए शादी कर रहे हैं."
इस विवाह समारोह के मुख्य आयोजक बगडोल ग्राम पंचायत के सरपंच ललित नागेश ने बीबीसी को बताया कि शादी के बाद दोनों का राशन कार्ड सुधारा जाएगा.
जीवनी बड़ी को वृद्धा पेंशन देने के अलावा इनके स्वास्थ्य का ध्यान पंचायत रखेगी.
उन्होंने कहा, ‘ये हमारे समाज की धरोहर हैं. आदिवासी समाज को इस मायने में विकसित समाज कहा जा सकता है."
कौरव के वंशज!
कोरवा जनजाति की उपजाति में ‘दिहारिया’ और ‘पहाड़ी कोरवा प्रमुख हैं. दिहारिया कोरवा खेती करते हैं. इस कारण ‘किसान कोरवा भी कहा जाता है.
पहाड़ी कोरवा को ‘बनबरिया’ भी कहा जाता है. कोरबा जनजाति की अपनी पंचायत होती है. जिसे ‘मैयारी’ कहते है.
कोरबा जनजाति का मुख्य त्योहार ‘करमा’ होता है. इन्हें कौरव के वंशज भी कहते हैं. इनकी कम जनसंख्या के कारण सरकार ने इनको परिवार नियोजन से मुक्त रखा है. इस समाज के लोगों की नसबंदी नहीं होती.
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