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अररिया में साजरा परवीन की मां बाढ़ में बह गईं

बिहार के अररिया ज़िले में आई भीषण बाढ़ ने कई की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल रहे बिहार में बुधवार तक 72 लोगों की मौत हो गई है. ऐसा गांव जो बाढ़ में ‘भारत का नहीं’ रहता! ‘नदी तुम शांत हो जाओ, तुम्हें सोने का हार देंगे’ सबसे अधिक […]

बिहार के अररिया ज़िले में आई भीषण बाढ़ ने कई की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल रहे बिहार में बुधवार तक 72 लोगों की मौत हो गई है.

ऐसा गांव जो बाढ़ में ‘भारत का नहीं’ रहता!

‘नदी तुम शांत हो जाओ, तुम्हें सोने का हार देंगे’

सबसे अधिक 23 की मौत अकेले अररिया ज़िले में हुई है. इनमें से एक बलुआ गांव की फिरोज़ा हैं. उनकी बेटी साजरा परवीन बी.ए पार्ट टू की छात्रा को अंदाज़ा भी नहीं था कि जिसके सहारे उसने यहां तक पढ़ाई की उसी का हाथ मुश्किल की इस घड़ी में उससे छूट जाएगा.

‘घर का सामान बाहर रखकर अम्मी को लेने आई’

करीब 18 साल की साजरा को अफ़सोस है कि जिस मां ने उसे पाल-पोस कर इतना बड़ा किया उसी के लिए वह कुछ नहीं कर पाई.

रविवार को हुए हादसे के बारे में वह विस्तार से बताती है, "घर का सामान बाहर रखकर अम्मी को लेने आई. घर से बाहर ले जाते समय मेरा हाथ उससे हाथ छूट गया और वह पानी के तेज़ बहाव के साथ चली गई. मैं कुछ न कर सकी. दूसरे दिन बांस के पेड़ों के बीच उसका शव मिला."

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वह जैसे ही अपनी मां को खोने के दुख से थोड़ा उबरने की कोशिश करती हैं, उसे अपने भविष्य की चिंताएं सताने लगती हैं. अपने जन्म से पहले ही पिता को खो देने वाली साजरा के अनुसार पहले मां के भरोसे जी रहे थे और अब आगे किसके भरोसे रहेंगे.

कई प्रतियोगिताओं में फर्स्ट रहीं साजरा

स्कूली दिनों को याद करते हुए साजरा बताती हैं कि मुख्यमंत्री ने उसे साइकिल देकर पुरस्कृत किया था. वह यह भी बताती हैं कि सुई-धागा दौड़ में भी वह पहले स्थान पर आई थीं.

वह कहती हैं, "मैं वर्ष 2010 में अररिया के मुर्बल्ला चौक से ओवरब्रिज तक आयोजित साइकिल रेस में पहले स्थान पर आई थी. महज़ पांच मिनट में वह दूरी मैंने तय की थी. उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुझे पुरस्कृत किया था."

भविष्य को लेकर साजरा को चिंता

2012 में पूर्णिया के कला भवन में चार ज़िलों अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज के बच्चों के खेल का कार्यक्रम हुआ था. वह कहती हैं कि अररिया ज़िले को उन्होंने वहां सुई-धागा दौड़ में पहला स्थान दिलाया था वहां से भी सर्टिफिकेट मिला था, लेकिन सब पानी में गल गया है.

बलुआ गांव की साजरा की आँखों में मां के मरने का ग़म है, उसके माथे पर आने वाली मुसीबतों को लेकर चिंता की लकीरें हैं. इसके बावजूद जब वह स्कूली दिनों की अपनी उपलब्धियों को याद करती हैं तो उनका चेहरा आत्मविश्वास से भर जाता है.

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ऐसा लगता है कि बाढ़ की तबाही ने भले ही उनकी मां को छीन लिया हो और झोपड़ी पानी में बह गई हो लेकिन मुसीबतें उसके हौसले को डूबो नहीं पाई हैं.

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