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आर्थिक मोरचे पर क्या होंगी नयी सरकार की चुनौतियां

।। विवेक शुक्ला।। (वरिष्ठ पत्रकार) लोकसभा चुनाव, 2014 के लिए प्रचार आम तौर पर उन्हीं घिसे-पिटे सवालों के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जिन्हें मतदाता चुनाव-दर-चुनाव सुन-सुनकर बोर हो चुके हैं. विकास के पथ पर आगे बढ़ने से जुड़े गंभीर सवालों, जैसे विकास के मॉडल, बेरोजगारी के खिलाफ जंग जीतने की योजना, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, […]

।। विवेक शुक्ला।।

(वरिष्ठ पत्रकार)

लोकसभा चुनाव, 2014 के लिए प्रचार आम तौर पर उन्हीं घिसे-पिटे सवालों के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जिन्हें मतदाता चुनाव-दर-चुनाव सुन-सुनकर बोर हो चुके हैं. विकास के पथ पर आगे बढ़ने से जुड़े गंभीर सवालों, जैसे विकास के मॉडल, बेरोजगारी के खिलाफ जंग जीतने की योजना, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास आदि जैसे सवाल कहीं-न-कहीं पीछे छूटते दिख रहे हैं. ऐसे सवालों के जवाब प्रमुख नेताओं के भाषण में शामिल नहीं हो रहे हैं और चुनाव प्रचार में सिर्फ आरोप-प्रत्यारोपों का शोर बढ़ता दिख रहा है. दुर्भाग्य से इन आरोपों का स्तर भी बेहद लचर और निजी हो गया है. बेहतर होता कि प्रमुख राजनेता बताते कि विकास की रफ्तार कैसे बढ़ेगी, निवेश कैसे बढ़ेगा, नये उद्यमियों को लेकर उनके पास किस तरह की योजनाएं हैं और फिर इस तरह के सवालों पर राष्ट्रव्यापी बहस होती. लेकिन लगता है कि ऐसे मुद्दों को उठाने का वक्त फिलहाल किसी के पास नहीं है, न नेताओं के पास, न मतदाताओं के पास.

इस वक्त हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद देश किसी राजनीतिक अस्थिरता के दौर में नहीं पहुंचेगा. लेकिन चुनाव के बाद केंद्र में जो भी सरकार बनेगी, उसके सामने विकास दर को बढ़ाना एक प्रमुख चुनौती होगी. इसके लिए नयी सरकार को ग्रोथ का अपना एजेंडा पेश करना होगा. देश में निवेश को कैसे बढ़ाया जाये, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को किस तरह से गति मिले और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को कैसे पंख लगे आदि के बारे में नीति बनाने के साथ-साथ उस पर अमल भी करना होगा. फिलहाल देश विकास दर में कमी के साथ-साथ गरीबी और बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है. इस लिहाज से भी जरूरी है कि सभी दल चुनावी संग्राम में ही देश को बताएं कि देश की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए वे क्या सोच रहे हैं? उनका आर्थिक एजेंडा क्या है? इस मामले में नेताओं की चुप्पी के बीच हमने देश के कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों और उद्योगपतियों से जाना कि नयी सरकार की प्रमुख चुनौतियों के बारे में वे क्या सोचते हैं.

निवेश को बढ़ाने के उपाय तलाशने होंगे

एस गोपालकृष्णन, प्रेसिडेंट, सीआइआइ

लोकसभा चुनावों के बाद हम इस बारे में उम्मीद जता रहे हैं कि देश को अस्थिरता के दौर से नहीं गुजरना होगा. केंद्र में जो भी सरकार बनेगी, उसके सामने खासी चुनौतियां होंगी. हमने सरकार के सामने ग्रोथ का एजेंडा पेश किया है. देश में निवेश को कैसे बढ़ाया जाये, मैन्यूफैक्चरिंग को किस तरह से गति मिले और इंफ्रास्टक्चर क्षेत्र को कैसे पंख लग सकते हैं, हमने इन सभी चीजों के बारे में मौजूदा सरकार को विस्तार से एक दस्तावेज सौंप दिया है. हम नयी सरकार को भी उसे देना चाहेंगे. मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर फिर से आठ फीसदी की ग्रोथ रेट को हासिल करने के लिए सरकार, इंडस्ट्री और नागरिकों को मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे. देश में लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान जोर-शोर से चल रहा है और अब देश को नयी सरकार का इंतजार रहेगा. जल्द ही देश में जिस भी दल या गंठबंधन की सरकार बनेगी, हम यह मान कर चले रहे हैं कि उसे देश की आर्थिक विकास की रफ्तार को पटरी पर लाना होगा.

नये उद्यमियों को मिले मौका

गुरचरण दास, पूर्व सीइओ प्राक्टर एंड गैंबल

आज हमारा देश संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. हमें उम्मीद रखनी चाहिए कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद यूपीए सरकार के एक दशक तक चले निराशावादी शासन के बाद फिर से आशावादियों की जीत होगी. नयी सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी. तभी जाकर रोजगार के अवसर पैदा होंगे.

स्वर्णिम चतुभरुज योजना से राष्ट्रीय राजमार्ग के आसपास 10 किलोमीटर के दायरे में बड़े स्तर पर रोजगार का सृजन हुआ. नयी सरकार को नये उद्यमियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम शुरू करना होगा. अभी नये उद्यमी को दर्जनों स्वीकृतियां लेनी होती हैं अपने बिजनेस को चालू करने के लिए. ऐसी व्यवस्था के चलते बहुत से युवा उद्यमी आगे नहीं आ पाते. मेरा मानना है कि हम जब तक अपने यहां उद्यमियों को आगे बढ़ने के मौके नहीं मिलेंगे, देश का कल्याण नहीं होगा. ये ही नयी नौकरियां भी सृजित करेंगे. साथ ही, नयी सरकार को कोल इंडिया का एकाधिकार भी खत्म करना होगा.

अफ्रीकी देशों से मजबूत हों व्यापारिक संबंध

चंद्रजीत बैनर्जी, डायरेक्टर जनरल, सीआइआइ

आम चुनाव के बाद जो भी सरकार सत्ता में आयेगी, उसे अफ्रीकी देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को और गंभीरता से लेना होगा. अभी राजधानी में इंडिया-अफ्रीका प्रोजेक्ट पार्टनरशिप सम्मेलन हुआ. इसमें अफ्रीकी देशों के चोटी के बिजनेस की दुनिया के सीइओ शामिल हुए थे.

हालांकि, अभी भी भारत और अफ्रीकी देशों के बीच 32 फीसदी की दर से आपसी व्यापार बढ.रहा है, पर इसके और बेहतर होने की संभावना है. हमारा फोकस अमेरिका, चीन और अन्य विकसित देशों के साथ-साथ अफ्रीका के साथ भी होना चाहिए. इस लिहाज से चीन हम से पहले वहां पर बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. हालांकि, कुछ बड़ी भारतीय कंपनियां- जैसे टाटा, महिंद्रा, भारती एयरटेल का भी अफ्रीकी देशों में भारी निवेश है. पर अभी इस दिशा में और आगे जाने की संभावना है. अगर भारत अफ्रीकी देशों से आपसी व्यापार बढ़ाता है, तो इसका लाभ भारत को होगा. नयी सरकार की विदेशी नीति में अफ्रीका पीछे नहीं छूटना चाहिए.

ग्रोथ पर फोकस करना होगा

एन नारायणमूर्ति, प्रमख, इंफोसिस

संसद में ईमानदार और पढ़े-लिखे लोग पहुंचेंगे, तो देश को लाभ होगा. सभी दलों को महसूस होने लगा है कि उन्हें बदलना होगा. यह अच्छी बात है कि सियासी दलों में साफ-सुथरे उम्मीदवारों को आगे लाने के लिए आहट शुरू हो गयी है. असर आम आदमी पार्टी की सफलता से ही हुआ है. मैं चाहता हूं कि लोकसभा चुनावों में सभी दल गैर-राजनीतिक लोगों को भी टिकट दें. गैर-राजनीतिक लोगों से मेरा आशय उन लोगों से है, जो जीवन के किसी क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हों. इन्हें नये चेहरों को मौका देना चाहिए. आज देश को हाइ क्वॉलिटी और मजबूत नेतृत्व की जरूरत है.

फिलहाल हम कई समस्याओं से जूझ रहे हैं. गरीबी और बेरोजगारी इनमें से प्रमुख समस्याएं हैं. नयी सरकार को एजेंडा के साथ काम करना होगा. जीडीपी व बिजनेस ग्रोथ पर प्रमुखता से ध्यान देना होगा. एक अच्छा कम्यूनिकेटर ही मजबूत नेता हो सकता है. इतिहास में हम उन मजबूत नेताओं को देख सकते हैं, जो शानदार कम्यूनिकेटर भी थे. महात्मा गांधी, जॉर्ज वॉशिंगटन, अब्राहम लिंकन से विंस्टन चर्चिल तक लोगों से अच्छी तरह से कम्यूनिकेट करते थे. हमारे नेताओं को भी लोगों से संवाद करना चाहिए, क्योंकि यह उनकी प्राइमरी जॉब है. उन्हें लोगों के भरोसे को जगाने की जरूरत है.

बिजनेस का माहौल सुधारना होगा

जी पी हिंदुजा, अध्यक्ष, हिंदुजा समूह

आम चुनाव की मतगणना के बाद मई के आखिर में बननेवाली नयी सरकार को देश में कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने के उपाय करने होंगे. भारत को विदेशी निवेशकों के लिहाज से एक आकर्षक देश बनाना होगा. अभी भारत में निवेश करने से निवेशक बचते हैं. और तो और, भारत के बड़े औद्योगिक घराने देश से बाहर निवेश कर रहे हैं.

नयी सरकार को नये उद्यम शुरू करने की चाहत रखनेवाले प्रतिभावान युवाओं को खुला माहौल उपलब्ध कराना होगा, ताकि वे नयी संभावनाओं को तलाश कर उसे साकार रूप दे सकें. इस तरह के कदम उठाने से देश में हजारों-लाखों नये उद्यमी सामने आयेंगे. देश के आकार और जनसंख्या के हिसाब से यहां करोड़ों प्रतिभाएं हैं. दरअसल, हमारे यहां उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) को केवल बिजनेस से ही जोड़कर देखा जाता है. जबकि इसकी जरूरत हर क्षेत्र में है. आज हमारे पास नये विचारों के साथ प्रशिक्षित लोग हैं, जो अपनी सोच को साकार करने के प्रति कृतसंकल्प हैं. समस्याओं के बीच संभावनाओं को तलाशते लोगों को यदि मौका दिया जाये, तो वो नामुमकिन को मुमकिन करने की ताकत रखते हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सांस्कृतिक विस्तार, समाजसेवा समेत अनेक ऐसे कार्यक्षेत्र हैं, जहां युवाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. बेहतर होगा कि नयी सरकार नये विचारों से लबरेज युवा उद्यमियों को भी अपने साथ जोड़े.

सस्ते घर का सपना साकार हो

समीर जसूजा, हेड, प्रॉप इक्विटी

लोकसभा चुनाव के प्रचार में तेजी जरूर आयी है लेकिन अफसोस कि आम आदमी को सस्ते घर मुहैया कराने के सवाल पर कोई भी दल या नेता वादा नहीं कर रहा है. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी इस चुनाव के सबसे बड़े प्लेयर हैं, लेकिन ये भी इस सवाल पर अपनी राय नहीं रख रहे. बेहतर होता कि सभी दल देश की गरीब जनता को ‘अपना घर’ मुहैया कराने की दिशा में कोई कारगर नीति बनाये जाने की घोषणा करते.

कहने की जरूरत नहीं है कि ‘अफोर्डेबल हाउसिंग’ शब्द सुनने में अच्छा लगता है. लेकिन सारे विज्ञापन, चाहे वे बिल्डरों द्वारा दिये गये हों, स्थानीय विकास प्राधिकरणों के हों या फिर बैंक फाइनेंस के हों, केवल कुछ ऊपरी श्रेणी के लोगों के लिए हैं. प्रत्येक व्यक्ति को घर और शिक्षा हासिल करने मौका जरूर दिया जाना चाहिए. जिंदगी जीने की प्रक्रिया में शेष अन्य चीजें उसके कौशल, श्रम, दृढ़ता और कुछ हद तक उसकी नियति पर भी पर निर्भर करती हैं. नयी सरकार को अफोर्डेबल हाउसिंग के सपने को साकार करना होगा. इस बाबत सरकार को निजी बिल्डरों के साथ मिल कर छोटे शहरों से लेकर बड़े महानगरों तक में सस्ते घर बनाने होंगे. नयी सरकार अपने इस दायित्व से दूर नहीं भाग सकती. शहरों में बसनेवाले लोगों को सस्ते घर न मिलने के चलते जैसे-तैसे हालात में नारकीय तरीके से जीवन व्यतीत करना पड़ता है. इसलिए सरकार को इन लोगों के बारे में सोचना चाहिए.

निजी क्षेत्र में आरक्षण की जरूरत नहीं

शरद जयपुरिया, अध्यक्ष, पीएचडी चैंबर

कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी ने हाल ही में निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण का सवाल खड़ा करके कुछ अजीब तरह के हालात पैदा कर दिये थे. हालांकि, बाद में कांग्रेस के नेताओं ने कहा था कि पहले इस सवाल पर कोई एक राय बनायी जायेगी. मेरी व्यक्तिगत राय है कि नयी सरकार को निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए इंडस्ट्री पर दबाव नहीं बनाना चाहिए. सरकार निजी क्षेत्र में यदि किसी खास वर्ग के लिए आरक्षण को लागू करेगी, तो इससे प्रतिभा की अनदेखी होगी और कंपनियों को अपना काम करने कठिनाई हो सकती है. भारतीय कंपनियों को विश्व की नामीगिरामी कंपनियों से टक्कर लेनी पड़ती है. इस संदर्भ में हम देखें तो उनसे नौकरियों में आरक्षण की अपेक्षा रखना गलत होगा. निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण देने से बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी का यह हल नहीं हो सकता. हम निश्चित तौर पर इसका विरोध करते हैं. बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी का समाधान आरक्षण नहीं हो सकता. हालांकि, मेरा मानना है कि हमें कामगारों की क्षमता और कार्यकुशलता को बढ़ाने की जरूरत है. हमें यह तय करना होगा कि कार्यकुशलता में सुधार लाने के लिए उन्हें हरसंभव संसाधन मुहैया करायेंगे, लेकिन आरक्षण नहीं देंगे, क्योंकि यह कारोबार के सिद्धांतों के विपरीत होगा. भारतीय उद्योग जगत आइटीआइ में तकनीकी माहिरों की क्षमता को बढ़ाने में सरकार के साथ हिस्सेदारी कर सकता है.

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