।। दक्षा वैदकर ।।
सलमान खान का डायलॉग ‘मैं एक बार कमिटमेंट कर देता हूं, तो फिर अपने आप की भी नहीं सुनता’ लोगों को बहुत पसंद है. इस डायलॉग को सुनते ही लोग उत्साह से भर जाते हैं, सीटी बजाते हैं, लेकिन क्या कभी हमने इस डायलॉग की गहराई में जाने की कोशिश की है? दरअसल, यह डायलॉग हमें सीख देता है कि या तो हम कमिटमेंट न करें और अगर करें, तो फिर उससे पीछे न हटें. भले ही आपका दिल बाद में वह काम करने से मना क्यों न करे.
हमारी जिंदगी में ऐसे कई पल आते हैं, जब हम अपने वादों से मुकर जाते हैं. ऐसे भी पल आते हैं, जब हमें ही लगता है कि अपने फैसलों पर दोबारा विचार करने की जरूरत है. ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि क्या हम अपने वादों से मुकर जायें या उन्हें बदल दें. क्या करने से हमारी अच्छाई पर प्रश्न चिह्न् नहीं लगेगा.दोस्तों, इसका एक ही जवाब है. ‘वादा निभायें या तोड़ें?’ यह स्थिति आने पर खुद से चंद सवाल पूछें. पूछें कि आपने जो भी वादा किया है, वह किसकी भलाई के लिए लिया गया है.
कहीं वह केवल अहं भाव को तुष्ट करने के लिए तो नहीं लिया गया है? क्या जब वह फैसला लिया गया था, उस वक्त की परिस्थिति व आज की परिस्थिति में अंतर आया है? कहीं आपका फैसला आपको या किसी और को बहुत ज्यादा तकलीफ तो नहीं पहुंचा रहा है? क्या आपने फैसला आवेश में आ कर या भावनाओं में बह कर तो नहीं लिया था?
इन सवालों का जवाब जब आप सही-सही देंगे, तो आपको खुद पता चल जायेगा कि आपको फैसला बदलना है या नहीं. आपको सलमान खान की तरह अपने कमिटमेंट पर टिके रहना है या नहीं.
दोस्तों, कई बार हम किसी खास चीज को पसंद कर लेते हैं और बाद में पता चलता है कि यह तो सिर्फ आकर्षण मात्र था, लेकिन हम अपना फैसला बदलने से डरते हैं. हमें लगता है कि दुनिया हम पर हंसेगी. रिस्क उठाना गलत है. खुद सोचें, आपका किसी दोस्त से झगड़ा हो जाता है. आपने तय किया कि कभी बात नहीं करेंगे, क्या आप बदलेंगे फैसला? इन बातों पर विचार करें.
बात पते की..
– जितनी हिम्मत किसी फैसले को पहली बार करने के लिए चाहिए होती है, उससे कहीं ज्यादा हिम्मत किये गये फैसले को बदलने के लिए चाहिए.
– कई बार लोग फैसला बदलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. पूरी जिंदगी पछतावे में गुजार देते हैं. बेहतर है कि इसे बदल लें, क्योंकि जिंदगी एक ही है.