हाल ही में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में तीन फ़िल्में रिलीज़ हुईं. नाम थे -‘धड़कन’, ‘ससुराल’ और ‘जिगर.’ इसके अलावा जुलाई में एक और फ़िल्म रिलीज़ होने की घोषणा हो चुकी है जिसका नाम है ‘शादी कर के फंस गया यार.’
थोड़ा गौर करने पर ये बात साफ हो जाती है कि भोजपुरी सिनेमा बॉलीवुड की हिट फ़िल्मों के नाम पर आजकल अपनी रोज़ी-रोटी का जुगाड़ कर रहा है.
थोड़ा ढूंढने पर ही आपको भोजपुरी फ़िल्मों की लंबी फ़ेहरिस्त मिल जाएगी जिनके नाम बॉलीवुड की सफल फिल्मों पर हैं या हिट गीतों पर.
‘रंगीला’, ‘जमाई राजा’, ‘सरकाइलो खटिया जाड़ा लगे’, ‘नाचे नागिन गली गली’, ‘दामिनी’, ‘दिलजले’, ‘दिलवाले’, ‘शहंशाह’, ‘राम लखन’, ‘मोहब्बत’, ‘आखिरी रास्ता’, ‘रखवाला’, ‘गदर’, ‘घात’, ‘मेहंदी लगा के रखना’, ‘होगी प्यार की जीत’ – ऐसे ही कुछ भोजपुरी फिल्मों के नाम हैं जो हाल के सालों में रिलीज़ हुई हैं.
यही नहीं सुपरहिट हिंदी फिल्मों के नाम को भी थोड़ा बदल कर भोजपुरी फिल्में धड़ाधड़ रिलीज़ हो रही हैं.
क्या है मजबूरी?
मसलन 1995 की बॉलीवुड हिट ‘करण अर्जुन’ भोजपुरी में आते-आते ‘आज के करण अर्जुन’ बन गई, आमिर खान अभिनीत ‘राजा हिंदुस्तानी’ भोजपुरी में सफ़र तय कर दिनेश लाल यादव अभिनीत ‘निरहुआ हिंदुस्तानी’ बन गई और बॉलीवुड की ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ भोजपुरिया सिनेमा में दाखिल होते ही ‘गैंग आफ़ सिवान’ बन गई.
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक जय मंगल देव कहते हैं, "भोजपुरी सिनेमा के लिए ये बहुत आसान रास्ता है. ब्रांड बॉलीवुड का, बॉलीवुड के लोगों ने उसका प्रचार प्रसार किया, मेहनत की और अंततः भोजपुरी फ़िल्म बनाने वालों ने उसे अपने पक्ष में भुनाया…"
जय मंगल आगे कहते हैं, "दूसरा ये कि आप देखें भोजपुरी फिल्मों की कहानी लिखने वाले कौन लोग हैं? उनकी काबिलियत क्या है? वो सिर्फ़ फ़िल्म री-राइट कर सकते हैं तो फिर अच्छे की उम्मीद कैसे की जाए?"
बॉलीवुड की सुपरहिट फ़िल्मों के नाम और सुपरहिट गानों पर बन रही भोजपुरी फ़िल्में, भोजपुरी इंडस्ट्री की गुणवत्ता पर भी बहस के नए पक्ष सामने रखती हैं.
ओवरसीज़ मार्केट
जैसा कि भोजपुरी फिल्मों के वितरक और अभिनेता रमेश सिंह कहते हैं, "आप देखिए भोजपुरी फ़िल्म कौन लोग बना रहे हैं. वो बना रहे हैं जो भोजपुरी भाषी नहीं हैं. वो गुजराती हैं, बंबई वाले हैं या फिर किसी दूसरे प्रदेश के हैं. वो अपने बिज़नेस के हिसाब से पिक्चर बना रहे हैं. मुनाफ़ा कमाना उनका मकसद है.
रमेश सिंह का कहना है, "ऐसे में गैर भोजपुरी भाषी लोग अपनी फ़िल्मों के नाम हिन्दी फ़िल्मों से नहीं लाएंगे तो कहां से लाएंगे जबकि भोजपुरी हिंदी से कहीं भी कमज़ोर नहीं है."
हालांकि इस तर्क को भोजपुरी फ़िल्मों में बीते 14 साल से काम कर रही रानी चटर्जी ख़ारिज करती हैं. रानी ने भोजपुरी फिल्म ‘दामिनी’, ‘दिलवाले’, ‘दिलजले’ में काम किया है.
वो कहती हैं, "भोजपुरी फ़िल्में अब ओवरसीज़ मार्केट के लिए बनती हैं तो उस मार्केट को भी ध्यान में रखकर फ़िल्मों के नाम रखे जाते हैं और अभी ये ट्रेंड है कि छोटे नाम रखे जाएं तो भोजपुरी में भी छोटे नाम रखे जा रहे हैं."
रानी चटर्जी कहती हैं, "अगर आप दूसरी भाषाओं की इंडस्ट्री देखिए तो वहां पर भी तो अंग्रेज़ी या किसी दूसरी भाषा से नाम लिए जाते हैं. आखिर इतना हो-हल्ला भोजपुरी पर ही क्यों होता है."
दिलचस्प है कि बॉलीवुड फ़िल्मों के नाम पर भोजपुरी फ़िल्में बनाना इस बात की गारंटी नहीं है कि भोजपुरी फ़िल्म हिट हो जाएगी.
जैसा कि भोजपुरी फ़िल्मों के जनसंपर्क से बीते एक दशक से जुड़े रंजन सिन्हा बताते हैं, "ये ठीक है कि ये ट्रेंड चल पड़ा है, लेकिन बॉलीवुड के नाम पर अपनी फ़िल्म का नाम रख लेने से भोजपुरी फ़िल्म हिट हो जाएगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता."
इन सबके बीच हाल ही में रिलीज़ हुई भोजपुरी फ़िल्म ‘ससुराल’ के निर्देशक राजकुमार आर पांडेय महत्वपूर्ण बात कहते हैं, "जो नाम हिंदी और भोजपुरी की आम बोलचाल में हैं, उस नाम पर आप भोजपुरी फ़िल्म बनाइए तो कोई दिक्कत नहीं. लेकिन अगर आप सोचें कि कोई बॉलीवुडिया बड़े बजट की फ़िल्म का नाम लेकर आप भोजपुरी में फिल्म बना लेंगें और हिट हो जाएगी तो ये संभव नहीं है क्योंकि ऐसा होते ही आपकी फ़िल्म से उम्मीद बढ़ जाएगी."
बकौल राजकुमार पांडेय, ”सच्चाई यही है कि ना तो तकनीक के मोर्चे पर, न अभिनय के मोर्चे पर और ना ही बजट के मोर्चे पर आप बॉलीवुड के आस-पास भी हैं.”
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)