आम तौर पर कभी ऐसा नहीं होता है. कारों की दुनिया में घूमते-टहलते इतने साल हो चुके हैं, लेकिन इतने सालों में कभी भी नहीं देखा कि कॉन्सेप्ट कार, जो वाकई कॉन्सेप्ट कार है, वह ऐसे सामने आये, हमारे हाथ लगे और उसे चलाने का मौका भी मिले.
कॉन्सेप्ट कारें अमूमन कंपनियों का विजन डॉक्यूमेंट होती हैं. कार डिजाइनरों की क्रिएटिविटी का एक कोलाज होता है, जिसमें बहुत सी कल्पनाओं और अंदाजे की भविष्यवाणियां होती हैं. यानी वो गाड़ियां जो आनेवाले दिनों की कारों और उनके फीचर्स की बात करें. अंदाजा लगायें और उनको एक कार में समेट कर लायें. यही वजह है कि ज्यादातर कार जो कॉन्सेप्ट अवतार में हमारे सामने आती हैं, वो चलने की हालत में नहीं होती हैं.
कई बार कार कंपनियां थोड़ी चालाकी दिखाती हैं और उन कारों को कॉन्सेप्ट के तौर पर ले आती हैं, जो दरअसल प्रोडक्शन में उतरने को तैयार होती हैं. हालांकि, कंपनी अपने कॉम्पटीटर को बताना नहीं चाहती हैं कि वो इस कार को जल्द लॉन्च करने वाली हैं. लेकिन यह अपवाद है. इसका जिक्र ऐसे ही कर दिया. दरअसल, यह सारी भूमिका इसलिए, क्योंकि मैं आपको बताना चाहता हूं कि पहली बार मैंने एक कॉन्सेप्ट कार चलायी. वह जो वाकई कॉन्सेप्ट कार है, रिनॉ की क्विड. यह बाजार में कब आयेगी, आयेगी भी कि नहीं, यह तो पता नहीं. लेकिन यह वो कार है, जिसे देखकर पहली नजर में ही लगेगा कि जैसे कोई फिल्मी स्पेसशिप है या बच्चों की खिलौना कार, जो अचानक किसी तरीके से बड़ी हो गयी है. अंदर से देखेंगे तो लगेगा कि किसी टाइम मशीन में चले गये हैं, जिसमें बैठ कर किसी भी युग में जा सकते हैं. रिनॉ ने इसे दिल्ली के ऑटो एक्स्पो में दर्शकों के सामने पेश किया था.
दरअसल, रिनॉ कार कंपनी की भारत में एंट्री धमाकेदार नहीं रही है. महिंद्रा के गठजोड़ और लोगन के खात्मे के बाद भी कंपनी अपनी कारों के साथ कोई बहुत बड़ा धमाका नहीं कर पायी थी. लेकिन ये सभी समीकरण बदल गये, जब कंपनी ने अपनी डस्टर एसयूवी सवा सात लाख रुपये में लॉन्च कर दी. इस एसयूवी ने भारत में रिनॉ को स्थापित कर दिया है. अभी भी कार बिक रही है और इस फ्रेंच कार कंपनी के लिए अचानक भारत की अहमियत काफी बढ़ गयी है. कंपनी की और भी कारें हैं भारत में, कई आने वाली भी हैं. कंपनी इसी सिलसिले में लंबा गेम खेलने की तैयारी में है. नहीं तो यूरोप के बाहर पहली बार अपनी कॉन्सेप्ट कार को लाना, दिल्ली ऑटो एक्स्पो में और ऊपर से भारतीय पत्रकार को इसे चलाने देने का मतलब यही है कि कंपनी इस देश में पैठ बनाना चाहती है. सभी को बताना चाहती है कि वह यहां आ चुकी है और भारत को लेकर गंभीर है. इसके लिए उसने चुनी है वह क्विड जिसे डिजाइन करने में कई भारतीय पहलू शामिल किये गये. भारतीय डिजाइनर ने इसके डिजाइन में शिरकत की, भारतीय रंग को शामिल किया.
यही सब सोचते हुए मैं क्विड में बैठा. छोटी एसयूवी नुमा गाड़ी. कैसे भी मुश्किल रास्तों पर चलने का दावा करते चौड़े, बड़े टायर. फ्यूचरिस्टिक चेहरा-मोहरा और आंखें. गाड़ी में ग्रे और पीले रंग का दिलचस्प मेल दिखा. चटख रंगरोगन. कार का दरवाजा पंख की तरह, ऊपर की ओर खुलता है और अंदर की अनोखी दुनिया में ले जाता है. सीटों की दो कतारें लेकिन दिलचस्प बात यह कि ड्राइवर सीट बीच में और दोनों तरफ एक-एक सीटें चिपकी थीं. यानी यार-दोस्त या फैमिली के एक साथ झुंड में जाने का अहसास होता है. मानो दोस्त कंधों में हाथ टिकाये चले जा रहे हैं. इसके पीछे भी सीट की एक कतार है. ड्राइवर को कार के बीचोंबीच एक स्टीयरिंग व्हील मिलता है, जो किसी रेस कार या प्लेन की छवि देता है. दो-तीन नॉब कार को स्टार्ट या बंद करने के लिए थे. गियर बदलने के लिए थे. साथ में बायीं तरफ एक छोटा स्क्रीन, जिसकी भूमिका काफी दिलचस्प थी. यह फ्लाइंग कंपैनियन यानी उड़न दोस्त का भेजा वीडियो दिखाता है.
दरअसल, इस कार की छत पर एक छोटे हेलिकॉप्टर को फिट किया गया है. तकनीकी तौर पर यह एक क्वॉडकॉप्टर है, कैमरे के साथ. इसे उड़ा दीजिए, यह आगे के ट्रैफिक से लेकर अनजान रास्तों को पढ़ कर आपको वीडियो भेज देगा. यह सबसे जबरदस्त फीचर लगा हमें कॉन्सेप्ट का, लेकिन बदकिस्मती से वह आज हमारे सामने नहीं आया था. फिर हमने इस कार को चलाया भी. इकलौती कार हो तो संभाल कर चलाना लाजिमी था. बहुत धीमी और थोड़ी दूरी की ड्राइव रही. लेकिन कॉन्सेप्ट कार होने की वजह से यह काफी था. वैसे भी कार के अंदर की आवाज, उसकी चाल और रफ्तार बता रही थी कि यह एक कॉन्सेप्ट कार है.
कार के अलग-अलग हिस्से से आनेवाली आवाजें बता रही थीं कि किसी भी कार को तैयार करने से पहले हर एक हिस्से की कुछ न कुछ कहानी होती है, शायद यही बताने की कोशिश कर रही थी कार मुङो.
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