आम चुनाव नजदीक हैं. हर तरफ जातीय समीकरण की चरचा चल रही है. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि जाति शब्द अगर नाबदान की तरह संकीर्ण है, तो समुद्र की तरह विस्तृत भी. संकीर्ण अर्थो में जाति का अर्थ है- कुल, वंश, गोत्र, वर्ण, जाति (कुरमी, कुम्हार जैसे अर्थ में), उपजाति, नस्ल, कबीला वगैरह, जबकि व्यापक अर्थो में जाति राष्ट्रीय (कौमी), क्षेत्रीय, भाषाई अस्मिता भी है. जैसे, यूरोपीय जाति, हिंदी जाति. हिंदी जाति को चिह्न्ति करते हुए डॉ रामविलास शर्मा ने एक चर्चित किताब भी लिखी है- ‘हिंदी जाति की अवधारणा’. बांग्ला भाषा में राष्ट्र के लिए जाति शब्द का ही इस्तेमाल होता है. बांग्लादेश की नेशनल पार्लियामेंट ‘जातीय संसद’ कहलाती है.
अपने सबसे व्यापक अर्थ में जाति संपूर्ण जीवजगत का विभाजन है, जैसे- मनुष्य जाति, पशु जाति. जब कबीर कहते हैं- जाति न पूछो साधु की, तो वह सभी संकीर्णताओं से मुक्ति की अपेक्षा करते हैं. यानी, साधु का ज्ञानी होना ही महत्वपूर्ण हैं, उसकी जाति, कुल, वंश, नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, भाषाई पहचान आदि बेमतलब हैं. भारतीय समाज में जाति का अमूमन प्रयोग ऐसे समूहों के लिए किया जाता है जिनकी पहचान उनके पेशों से थी और बाद में वह पहचान जन्मना हो गयी. इन समूहों के लोग रोटी-बेटी के रिश्ते से आपस में जुड़े हैं. इस अर्थ में मराठी में जाति के लिए जमात शब्द का इस्तेमाल होता है जो अरबी मूल का है.
जाति के मूल में जहां जन्म लेने की क्रिया है, वहीं जमात में एकत्रित या जमा होने की. जमात का अर्थ लोगों का समूह, गोल, गिरोह, जत्था; कक्षा, श्रेणी, वर्ग; कतार या पंक्ति भी है. समाज में व्याप्त इस जातीय व्यवस्था को जात-पांत कहा जाता है. यहां ‘जात’ जाति का और ‘पांत’ पंक्ति का बिगड़ा हुआ रूप है. जाति के आधार पर हमारा समाज अलग-अगल श्रेणियों या पंक्तियों में बंटा हुआ है. इस विभाजन को इसलाम में बेमानी बताते हुए मशहूर शायर इक़बाल ने ‘शिकवा’ में लिखा है- एक ही सफ़ में खड़े हो गये महमूद-ओ- अयाज़! / न कोई बंदा रहा, और न कोई बंदा नवाज़. यानी, नमाज पढ़ने के लिए जंग के मैदान में महमूद ग़ज़नी और उसका गुलाम अयाज़ एक ही पंक्ति (सफ़) में खड़े होते थे. लेकिन, मसजिद के बाहर इसलाम भी जातियों में बंटने से नहीं बच पाया.
जाति का रिश्ता विश्व की अनेक भाषाओं से है. मसलन, अरबी में जाति का समकक्ष शब्द है ज़ात जिसका अर्थ है कुल, वंश, जाति, बिरादरी, क़ौम; व्यक्तित्व या शख्सीयत; स्वयं या खुद. अरबी का यह ज़ात अस्तित्व का बोध कराता है. एक व्यक्ति का भी और उसके समूह का भी. इसी ज़ात से ही ज़ाती शब्द बना है, जिसका अर्थ है निजी (पर्सनल). इस चर्चा को अगले अंक में भी जारी रखेंगे.