मित्रों,
भारत में चुनाव को आदर्श बनाने के लिए अब तक जितने बड़े प्रयोग हुए हैं, उनमें चुनाव आचार संहिता सबसे बड़ी और प्रभावी व्यवस्था है. यह चुनाव के वक्त सरकार, उसके तंत्र, राजनीतिक दलों, सांसद-विधायकों, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री और उम्मीदवार तक से ऐसे आचरण की अपेक्षा करती है, जो न केवल शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने में मददगार हो, बल्कि देश के नागरिकों के लिए आदर्श भी हो. हालांकि हमारा संविधान और हमारे तमाम तरह के कानून उनसे ऐसे आचरण की अपेक्षा चुनाव के बाद भी करते हैं, लेकिन उस पर चुनाव आयोग का अंकुश नहीं होता. आयोग अंकुश उस तिथि से लगाता है, जिस तिथि को चुनाव की घोषणा होती है और यह चुनाव संपन्न होने की तिथि तक लागू रहता है. आम तौर पर लोग यही समझते हैं कि चुनाव आचार संहिता लागू हो जाने के बाद कोई मंत्री-मुख्यमंत्री उद्घाटन-शिलान्यास नहीं कर सकता और मतदाताओं को प्रभाविक करने वाली कोई घोषणा नहीं की जा सकती, लेकिन आदर्श चुनाव आचार संहिता का दायरा बहुत बड़ा है. इसमें प्रशासन और पुलिस के अधिकारी, सरकारी सेवक, राजनीतिक दल, उनके नेता-कार्यकर्ता सभी आते हैं. चुनाव प्रचार, झंडा-बैनर टांगने, जुलूस निकालने, लाउडस्पीकार बजाने, मतदान केंद्र पर इनके व्यवहार जैसे विषयों पर भी चुनाव आयोग ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दे रखा है. इसके अनुपालन पर चुनाव आयोग, उसके पर्यवेक्षक, जिला निर्वाचन पदाधिकारी की हैसियत से जिलाधिकारी/उपायुक्त, पुलिस अधिकारी और स्थानीय थानों की नजर रहती है. मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता भी इस पर नजर रखते हैं और कहीं इसका उलंघन होता है, तो उसे खबर या शिकायत के रूप में सामने लाते हैं. आयोग ऐसी खबरों, सूचनाओं और शिकायतों पर नोटिस लेता है एवं कार्रवाई करता है. आम आदमी भी निगरानी कर सकता है. अगर चुनाव प्रचार या नेताओं-कार्यकर्ताओं के व्यवहार को लेकर उन्हें असुविधा होती है या उनके अधिकार का हनन होता है, तो इसकी शिकायत कर सकते हैं. कहीं प्रशासन, कोई पार्टी या उम्मीदवार आदर्श चुनाव आचार संहिता के निर्देशों के पालन में चूक करता है, तो आम आदमी भी उसे आयोग के ध्यान में ला सकता है. अब तो सोशल मीडिया का भी आम आदमी ऐसे कार्य के लिए इस्तेमाल कर रहा है. साक्ष्य जुटाने के लिए आपके पास मोबाइल कैमरा भी है. लिहाजा हम यहां यह बता रहे हैं कि आदर्श चुनाव आचार संहिता क्या है, ताकि आप एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से इसके अनुपालन पर नजर रख सकते हैं.
आरके नीरद
चुनाव आचार संहिता लागू होते ही सरकार और प्रशासन पर चुनाव आयोग का अंकुश होता है. सभी सरकारी कर्मचारी चुनाव आयोग के कर्मचारी हो जाते हैं. उनसे आयोग अपने नियम-कानून के अनुसार काम लेता है.
राजनीतिक दलों के लिए सामान्य निर्देश
कोई दल ऐसा काम न करे, जिससे जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के बीच मतभेद बढ़ या घृणा फैले.
चुनाव में हर उम्मीदवार और पार्टी अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार और दल के खिलाफ बोलता है. वह उनकी आलोचना करता है. ऐसे करते समय वे किसी भी सीमा तक जा सकने की स्थिति में होते हैं. वे व्यक्तिगत निंदा भी करने को तैयार रहते हैं. इसे आदर्श व्यवहार नहीं कहा जा सकता. इससे चरित्र हनन होता है. इसलिए आयोग ने तय कर दिया है कि किसी उम्मीदवार या दल की आलोचना उसकी नीतियों और कार्यक्रमों तक ही सीमित होनी चाहिए. व्यक्तिगत आलोचना आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना गया है.
चुनाव प्रचार के लिए किसी धार्मिक स्थान का उपयोग किसी भी रूप में नहीं किया जा सकता है. ऐसे स्थानों पर चुनाव को लेकर कोई दल या उम्मीदवार या उसके कार्यकर्ता बैठक भी नहीं कर सकते हैं.
वोट लेने के लिए मतदाताओं को अपनी घोषणाओं, नीतियों, कार्यक्रमों, विचारधाराओं और अच्छे व्यवहार से ही प्रभावित किया जाना है. इसके लिए किसी भी तरह का रिश्वत, उपहार, भोज आदि देना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है. मतदाता को वोट डालने या नहीं डालने के लिए धमकाना या उनमें डर पैदा करना भी भ्रष्टाचार माना गया है.
चुनावी नारे लिखने, पोस्टर चिपकाने या झंडे लगाने के किसी सरकारी भवन, अहाता या भूमि का इस्तेमाल करना मना है. किसी व्यक्ति या संगठन के भवन की दीवार, अहाते या भूमि का इस कार्य के लिए उपयोग भी तभी किया जाना है, जब उसके मालिक ने इस आशय की लिखित अनुमति दी हो.
कोई दल या उम्मीदवार या उसका समर्थक अपने प्रतिद्वंदी की सभा या जुलूस में बाधा पैदा नहीं करेगा. वह उनके बैनर, पोस्टर या नारे के साथ छेड़छाड़ भी नहीं कर सकता है.
राजनीतिक दल या उम्मीदवार मतदाताओं से वोट करने की अपील करने में ऐसी कोई बात नहीं करेगा, जो धार्मिक या जातीय भावनाओं को भड़काती हो या उस पर चोट करती हो.
चुनाव आचार संहिता
चुनाव आचार संहिता के निर्देशों का पालन करना सरकार, सरकारी कर्मचारी, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, सत्तारूढ़ दल और अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों, उनके नेताओं तथा चुनाव के सभी उम्मीदवारों के लिए समान रूप से जरूरी है. इसका उल्लंघन करने पर इन सभी के खिलाफ बिना भेदभाव के कार्रवाई होती है.
लोकतंत्र की सबसे आदर्श आचार संहिता
चुनाव आचार संहिता को लोकतंत्र की सबसे आदर्श आचार संहिता का दर्जा दिया गया है. चुनाव आयोग चुनाव से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े सभी वर्गो, संगठनों, पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और व्यक्तियों से यह उम्मीद करता है कि वे निष्पक्ष, स्वच्छ, निर्भीक और शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराने में आदर्श व्यवहार करें. इसके लिए देश में लागू उन कानूनों को भी आयोग लागू कराता है, जिनकी आम दिनों में अनदेखी की जाती है. यह सरकारी तंत्र, उसके अधिकारियों-कर्मचारियों, सभी जनप्रतिनिधियों, राजनीतिक दलों और चुनाव में हिस्सा लेने वाले प्रतिनिधियों के लिए जरूरी होता है.
मंत्री-मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री पर भी अंकुश
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री पर भी आयोग का अंकुश होता है. वे न तो किसी तरह की घोषणा कर सकते हैं, न ही उद्घाटन, शिलान्यास, भूमि पूजन, लोकार्पण जैसे कार्य कर सकते हैं.
पर्यवेक्षक
आदर्श चुनाव आचार संहिता का अनुपालन हो रहा है या नहीं, यह देखने के लिए आयोग सभी स्नेतों से सूचना और शिकायत प्राप्त करता है. इसमें अखबार और मैगजीन में छवि खबर व तसवीर, टीबी चैनलों में दिखायी गयी खबर, रेडियो से प्रसारित समाचार तथा जनता, किसी दल, अधिकारी या प्रत्याशी से प्राप्त शिकायतें शामिल हैं. इन सबके अलावा आयोग प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र (विधानसभा चुनाव में विधानसभा क्षेत्र) में अपने पर्यवेक्षक नियुक्त करता है. पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट सीधा आयोग को भेजते हैं.
सत्ताधारी पार्टी
चुनाव में सत्तारूढ़ दल की ओर से मनमानी और पावर के दुरुपयोग की शिकायतें ज्यादा आती हैं. इसकी आशंका भी रहती है. आयोग ने चुनाव आचार संहिता में उनसे आदर्श व्यवहार की उम्मीद की है. उन पर अंकुश भी लगाये हैं. जैसे
कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुनाव की घोषणा होने से चुनाव संपन्न होने तक सरकारी दौरा पर के दौरान चुनाव प्रचार न करेगा.
चुनावी दौरे में वह सरकारी तंत्र या सुविधा का इस्तेमाल नहीं करेगा.
सरकारी या सरकारी खर्च से चलने वाले विमान या गाड़ी का इस्तेमाल वह ऐसे किसी कार्य में नहीं करेगा, जो उसकी पार्टी या उम्मीदवार को लाभ पहुंचाता है.
सरकार के मंत्री या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री होने के नाते उसे हेलीपैड के इस्तेमाल का एकाधिकार नहीं है. हेलीपैड या हवाई अड्डे का इस्तेमाल उसी तरह करेगा, जिस तरह अन्य दल या उसके नेता करेंगे.
उसी तरह विश्रमगृह, डाक-बंगले या सरकारी आवासों पर उनका एकाधिकार नहीं होगा तथा इन स्थानों को इस्तेमाल वह चुनाव प्रचार के लिए नहीं कस सकता है.
सरकारी धन पर विज्ञापनों देने और उसके जरिये अपनी उपलब्धि गिनाने की इजाजत उसे नहीं है.
मंत्रियों के सरकारी दौरे में तभी गार्ड लगाये जायेंगे, जब वे सर्किट हाउस में ठहरे हों.
चुनाव के दौरान कैबिनेट की कोई बैठक नहीं हो सकती है.
इस दौरान किसी भी तरह के स्थानांतरण तथा पदस्थापना की कार्रवाई के पहले चुनाव आयोग की सहमति जरूरी है.
अधिकारियों पर अंकुश
सरकारी सेवक किसी भी उम्मीदवार के निर्वाचन, मतदाता या गणना एजेंट का नहीं बन सकता है.
मंत्री यदि दौरे के समय निजी आवास पर ठहरता है, तो अधिकारी बुलाने पर भी वहां नहीं जायेंगे.
चुनाव प्रचार में अगर कोई मंत्री या मुख्यमंत्री जाता है, तो अधिकारी उसके साथ नहीं जायेंगे.
किसी राजनीतिक या चुनावी सभा वे वही सरकारी कर्मचारी या अधिकारी जा सकता है, जिसकी वहां ड्यूटी लगी हो.
राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को सभा के लिए स्थल देते समय भेदभाव नहीं करेगा.
मतदान के दिन
राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की यह जवाबदेही है कि वह अपने अधिकृत कार्यकर्ताओं को बिल्ले या पहचान पत्र दें.
मतदान केंद्र पर मतदाताओं को दी जाने वाली पर्ची सादे कागज पर हो और उसमें कोई चिह्न्, प्रतीक चिह्न्, उम्मीदवार का नाम या दल का नाम न हो.
मतदान के दिन और इसके 24 घंटे पहले किसी को शराब बांटने की इजाजत किसी को नहीं है.
मतदान केंद्रों के पास पार्टियां और उम्मीदवार कैंप लगाते हैं. उसमें उन्हें भीड़ नहीं जुटने देना है.
कैंप के लिए भी मापदंड तय है. कैंप बिल्कुल साधारण होना चाहिए.
मतदान के दिन वाहन चलाने का परमिट पहले से हासिल करना जरूरी है.
लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का समय
चुनाव की घोषणा हो जाने से वोटों की गिनती और नतीजे आने तक सभा और वाहनों में लगने वाले लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश तय है. इसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में सुबह छह बजे से रात 11 बजे तक और शहरी क्षेत्र में सुबह छह बजे से रात 10 बजे तक इनके इस्तेमाल की इजाजत है.
राजनीतिक सभा
चुनावी सभा करने का अधिकार सभी दल और प्रत्याशी को है, लेकिन इसके लिए स्थान व समय की पूर्व सूचना पुलिस अधिकारियों को देना जरूरी है. सरकारी जमीन, मैदान या भवन में सभा करने की लिखित अनुमति सभा के पहले ही प्राप्त करनी जरूरी है.
कोई पार्टी या उम्मीदवार ऐसे किसी स्थान पर सभा नहीं कर सकता है, जहां प्रशासन ने निषेधाज्ञा लगाया है. यह स्थान निजी भी हो सकता है और सार्वजनिक भी.
सभी में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर भी आयोग ने दिशा-निर्देश दिया है. इसके मुताबिक लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने की लिखित अनुमति पहले से प्राप्त करना जरूरी है.
पुलिस को यह अधिकार है कि वह किसी भी सभा के आयोजक में बाधा डालने वालों के खिलाफ फौरन कार्रवाई करे.
जुलूस के लिए
राजनीतिक दल चुनाव के दौरान अगर कोई जुलूस निकालते हैं, तो उन्हें इसकी लिखित सूचना पुलिस को देनी होती है. यह सूचना जुलूस के निकालने के पहले देनी है. इसमें जुलूस निकलने के समय, शुरू होने के स्थान, जिस रास्ते से जुलूस गुजरेगा उसका ब्योरा, जहां तक जुलूस को जाना है, उस स्थान का तथा जुलूस में लगने वाले समय के बारे में जानकारी जरूरी है. जुलूस निकालने वाले की यह जिम्मेवारी है कि वह यातायात को प्रभावित होने से बचाये.
अगर राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के जुलूस निकालने का दिन और रास्ता एक ही हो, तो प्रशासन की जवाबदेही है कि वह उनसे बातचीत कर उनके लिए अलग-अलग समय का निर्धारण करे.
आयोग के मुताबिक जुलूस को सड़क के बीचों-बीच नहीं, दायीं ओर से निकालना है, ताकि यातायात प्रभावित न हो.
जुलूस में लाठी-डंडा या किसी प्रकार के हथियार लेकर चलने की अनुमति नहीं होती है. ऐसा कोई सामान लेकर जुलूस में शामिल नहीं होना है, जिनका दुरूपयोग उत्तेजना की स्थिति में हो सकता है.