वैज्ञानिकों को प्लाज्मा से सूर्य जैसी ऊर्जा पैदा करने की उम्मीद

अहमदाबाद : गुजरात स्थित एक अनुसंधान संस्थान ने पदार्थ के चौथे रूप प्लाज्मा को स्थिर अवस्था सुपर कंडक्टिंग टोकामक (एसएसटी-1) में रोक कर रखने में अहम सफलता मिलने का दावा किया है. टोकामक ऐसा उपकरण है जिसमें प्लाज्मा को रोककर रखने अर्थात एक निश्चित आकार में बनाये रखा जाता है. एक अधिकारी ने बताया कि […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 21, 2015 2:15 PM

अहमदाबाद : गुजरात स्थित एक अनुसंधान संस्थान ने पदार्थ के चौथे रूप प्लाज्मा को स्थिर अवस्था सुपर कंडक्टिंग टोकामक (एसएसटी-1) में रोक कर रखने में अहम सफलता मिलने का दावा किया है. टोकामक ऐसा उपकरण है जिसमें प्लाज्मा को रोककर रखने अर्थात एक निश्चित आकार में बनाये रखा जाता है. एक अधिकारी ने बताया कि प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान (आइपीआर) की खोज से ऊर्जा उत्पादन में मदद मिलेगी.

आइपीआर के निदेशक धीरज बोरा ने कहा, ‘अपने प्रयोगों के दौरान हमें कई बार प्लाज्मा को रोककर रखने में बडी सफलता मिली. हमने मशीन (टोकामक) के भीतर सुपरकंडक्टिंग चुंबकों की मदद के जरिए हाइड्रोजन से उच्च तापमान वाले प्लाज्मा का निर्माण किया है.’ उन्होंने बताया कि यह ऐसा है जैसे कि एक प्रयोगशाला के भीतर सूरज जैसी ऊर्जा पैदा की जाए. प्लाज्मा को रोके रखकर स्थिर अवस्था सुपर कंडक्टिंग टोकामक (एसएसटी-1) के भीतर ऊर्जा दी गयी.

धरती पर हमारी ऊर्जा का सबसे बडा स्रोत सूर्य है जो गरम प्लाज्मा का गोला है. आंतरिक संवहनी गति वाली इस प्रक्रिया के दौरान डायनेमो प्रक्रिया की तरह चुंबकीय क्षेत्र बनता है. इसी तरह, शहर के बाहरी हिस्से में स्थित आइपीआर में वैज्ञानिकों ने टोकामक नामक उपकरण के साथ एक फ्यूजन प्रयोग किया और उन्हें प्लाज्मा को रोककर रखने में कामयाबी मिली. इससे निकट भविष्य में सूर्य जैसी ऊर्जा पैदा करने की उम्मीद जगती है.

बोरा ने बताया, ‘प्लाज्मा को गर्म करने के लिए माइक्रोवेब करंट गुजारा जाता है और टोकामक के भीतर इसे रोककर रखा जाता है. 70,000 एंपीयर के क्रम में करंट गुजारा जाता है और प्लाज्मा 20 से 30 करोड डिग्री तक गर्म हो जाता है. इस तरह प्लाज्मा को इसके (उपकरण) भीतर रोका लिया जाता है और इसके जरिए ऊर्जा पैदा की जा सकती है.’ उन्होंने कहा, ‘हम आगे प्लाज्मा को गर्म करना चाहेंगे और दीर्घावधि तक इसे रोककर रखा जा सकेगा. इस गरमी को ऊर्जा के रूप में बदला जा सकता है और टरबाइन को इससे जोडा जा सकता है.’

बोरा के मुताबिक, महज 50 मेगावाट बिजली का प्रयोग कर करीब 5000 मेगावाट थर्मल ऊर्जा पैदा की जा सकती है. आइपीआर करीब 50 वैज्ञानिकों के योगदान के साथ करीब 25 साल से इस तरह के प्रयोगों को अंजाम दे रहा है. यह एक स्वायत्त भौतिकी संस्थान है. इसमें मूलभूत प्लाज्मा भौतिकी, चुंबकीय रूप से रोककर रखे गये गर्म प्लाज्मा और उद्योगों के लिए प्लाज्मा तकनीक सहित प्लाज्मा विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन होता है.

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