27.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

क्षेत्रीय युद्ध के मुहाने पर पश्चिम एशिया

भारत और ब्रिक्स के अन्य सदस्य देशों ने सभी पक्षों को संयम से काम लेने का अनुरोध किया है. ईरान भी ब्रिक्स समूह का सदस्य है. हालांकि भारत के संबंध ईरान और इस्राइल दोनों से अच्छे हैं.

ईरान और इस्राइल के बीच तनातनी और हिंसक कार्रवाइयों का इतिहास पुराना है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है, जब ईरान ने अपनी धरती से इस्राइल पर सीधे हमले किये हैं. इससे पहले के हमले ईरान अपने समर्थक समूहों, जैसे- हमास, हिज्बुल्लाह, अंसारअल्लाह, पॉपुलर मोबिलाइजेशन आदि के जरिये कराता रहा है. अब तक वह सीधे इस्राइल से लड़ाई से बचता रहा है. सीरिया में उसके दूतावास पर हुए हमले की जवाबी कार्रवाई में किये गये इन हमलों से यह संकेत मिलता है कि ईरान अपनी पुरानी रणनीति में बदलाव कर रहा है. ईरान ने दूतावास हमले को अपनी संप्रभुता पर हमला बताया है. ईरान ने इन हमलों को सीमित हमला कहा है, जिसके कुछ निशाने तय थे. हमलों के बाद उसने यह भी कहा है कि उसका जवाब पूरा हो गया और वह आगे हमले नहीं करेगा. साथ ही, उसने यह भी चेतावनी दी है कि अगर इस्राइल ने फिर हमला किया, तो वह ज्यादा ताकत के साथ जवाब देगा. मेरी राय में ये हमले सांकेतिक थे और इनकी पूरी तैयारी की गयी थी. इस कार्रवाई के बारे में पश्चिमी देशों को बता भी दिया गया था. इसी कारण अमेरिका और भारत समेत विभिन्न देशों ने अपने नागरिकों को निकल जाने को कहा था तथा हवाई सेवाओं को भी रोक दिया गया था.


उल्लेखनीय है कि ईरानी शासन पर उनके अपने लोगों का भी दबाव बहुत था. अगर ऐसी कार्रवाई नहीं होती, तो शासन के प्रति लोगों के भरोसे में कमी आना स्वाभाविक था. इसलिए ये हमले हुए. और, हमले भी ऐसे थे, जिनसे इस्राइल अपना बचाव कर सकता था. एक तो पूर्व सूचना थी, सो तैयारी के लिए समय मिल गया. दूसरी बात यह है कि ईरान से ड्रोन, मिसाइल आदि इस्राइल पहुंचने में जो वक्त लगा, उससे भी बचाव में मदद मिली. इसके साथ-साथ जॉर्डन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन आदि कुछ देशों ने भी अपने स्तर से सहयोग किया. ईरान को यह भी पता था कि इस्राइल के पास मिसाइल डिफेंस क्षमता है. अगर ईरान चाहता, तो वह लेबनान स्थित हिज्बुल्लाह के जरिये भी सैकड़ों मिसाइलों से हमला करा सकता था. हिज्बुल्लाह के पास ऐसे हथियारों का बड़ा जखीरा है. उससे इस्राइल को भारी नुकसान हो सकता था. ईरान यमन और इराक में अपने समर्थकों के साथ एक-साथ हमले भी कर सकता था. या वह बैलेस्टिक मिसाइलों या बड़े पैमाने पर बमबारी वाले हथियारों का इस्तेमाल कर सकता था. कुछ जानकार यह भी कह रहे हैं कि ईरान ने पश्चिमी देशों को बता भी दिया था. पश्चिम एशिया में अमेरिकी सेना के प्रमुख ने बचाव की तैयारियों का जायजा लेने के कुछ दिन पहले इस्राइल की यात्रा भी की थी.


अब देखना यह है कि इस्राइल की ओर से क्या प्रतिक्रिया होती है. अगर दोनों तरफ से हमलों का सिलसिला इसी तरह जारी रहा, तो निश्चित रूप से पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय युद्ध की स्थिति पैदा हो जायेगी. इस्राइल की कोशिश है कि इस क्षेत्रीय तनाव में अमेरिका पूरी तरह शामिल हो जाए. अगर लड़ाई आगे बढ़ती है, तो अमेरिका को इसमें आना ही होगा और यही इस्राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू चाहते हैं. अमेरिका ने कहा है कि अगर इस्राइल द्वारा ईरान पर हमला किया जाता है, तो वह उसमें शामिल नहीं होगा. वह केवल इस्राइल के बचाव में मददगार होगा. लेकिन हमले और बचाव को लेकर इस तरह की नीति बहुत भ्रामक होती है. जब हमले और जवाबी हमले का सिलसिला शुरू हो जायेगा, तो यह तय कर पाना मुश्किल होगा कि क्या हमला है और क्या बचाव है. लेकिन अमेरिका की अभी यही रणनीति है कि वह इस्राइल को रोके. इसका कारण यह है कि पहले ही अफगानिस्तान को लेकर राष्ट्रपति बाइडेन की बहुत आलोचना हो चुकी है. गाजा में पिछले कई महीने से जो भयावह स्थिति है, उसे लेकर भी उनकी आलोचना हो रही है. यूक्रेन युद्ध में अमेरिकी रवैये को उनके देश में बहुत समर्थन नहीं मिल रहा है. उनसे विरोधी रिपब्लिकन पार्टी के ही नहीं, बल्कि डेमोक्रेटिक पार्टी के भी बहुत से नेता एवं समर्थक नाराज हैं. पश्चिम एशिया में नया युद्ध चुनाव में बाइडेन के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है.


ईरान और इस्राइल सैन्य शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं. ईरान के पास अपनी क्षमता के साथ-साथ विभिन्न देशों में लड़ाकों का समूह है. इस्राइल के साथ अमेरिका और पश्चिम के देश हैं. इस बार की तरह अरब के देश भी उसे सहयोग कर सकते हैं, पर तब अरब के शासकों को अपनी जनता के विरोध का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही, युद्ध की स्थिति में फिलिस्तीन का मसला पीछे हो जायेगा और ईरान से लड़ाई या युद्धविराम मुख्य मुद्दा बन जायेगा. बाइडेन चुनाव के समय इस तरह के मामले में उलझना नहीं चाहते. उस जटिल स्थिति से सभी परहेज करना चाहते हैं. अपने राजनीतिक लाभ के लिए केवल नेतन्याहू चाहते हैं कि यह युद्ध बढ़े ताकि उन्हें अधिक समर्थन मिले और उनकी सरकार बची रह सके. यह एक तथ्य है कि ईरान को हरा पाना संभव नहीं होगा. तो, युद्ध बहुत लंबा खींच सकता है. उस स्थिति में पश्चिम एशिया में जो तबाही होगी, वह तो होगी ही, वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी उसके असर को भुगतना होगा. बीते दिनों तेल के दाम बढ़े हैं. युद्ध की स्थिति में लाल सागर, फारस की खाड़ी, स्वेज नहर आदि तमाम महत्वपूर्ण रास्ते बाधित होंगे. तब केवल तेल ही नहीं, सभी तरह की चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ेंगे.


भारत और ब्रिक्स के अन्य सदस्य देशों ने सभी पक्षों को संयम से काम लेने का अनुरोध किया है. ईरान भी ब्रिक्स समूह का सदस्य है. हालांकि भारत के संबंध ईरान और इस्राइल दोनों से अच्छे हैं, पर इन पर शांति के लिए दबाव बनाना आसान नहीं है. यही स्थिति चीन के साथ है. पश्चिम एशिया में बड़ी अशांति चीन के आयात और निर्यात पर बड़ी चोट कर सकती है. युद्ध की स्थिति रूस के लिए कुछ फायदेमंद हो सकती है क्योंकि दुनिया का ध्यान यूक्रेन से हट जायेगा और तेल व गैस की कीमतें बढ़ेंगी. अमेरिका और पश्चिम के देश यूक्रेन को पर्याप्त मात्रा में हथियारों की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं. उनके यहां उत्पादन भी धीमी गति से चल रहा है. ऐसे में पश्चिम एशिया में हथियारों की खपत करना पश्चिम के लिए बहुत घाटे का सौदा हो सकता है. पश्चिम एशिया में युद्ध किसी के लिए हितकर नहीं है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसे रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए. अभी भी वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी के असर में है. यूक्रेन और अन्य लड़ाइयों ने भी नुकसान किया है. एक और युद्ध भयावह साबित होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें