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Friday, March 29, 2024

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बढ़ती ही जा रही है महिलाओं के प्रति हिंसा

दिल्ली का श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड हो या झारखंड का रूबिका पहाड़िन हत्याकांड, हाल-फिलहाल ऐसे कई मामले सामने आये हैं जो बताते हैं कि देश में महिलाओं के खिलाफ न केवल अपराध बढ़े हैं

हाल ही में दिल्ली के कंझावला में ऐसी घटना घटी, जिसने नृशंसता की सारी हदें पार कर दीं. काम खत्म कर देर रात घर लौट रही अंजलि की स्कूटी पलट गयी और वह एक कार में फंस गयी. पर कार में बैठे लड़के पीड़िता की मदद करने की बजाय उसे किसी निर्जीव वस्तु की तरह कई किलोमीटर तक घसीटते रहे. महिलाओं के साथ क्रूरता की हद पार करने वाली यह कोई पहली घटना नहीं है.

दिल्ली का श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड हो या झारखंड का रूबिका पहाड़िन हत्याकांड, हाल-फिलहाल ऐसे कई मामले सामने आये हैं जो बताते हैं कि देश में महिलाओं के खिलाफ न केवल अपराध बढ़े हैं, बल्कि क्रूरता और नृशंसता भी बढ़ी है. देश में महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराध चिंता का विषय हैं. एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई, जबकि बलात्कार के मामले 12 प्रतिशत तक बढ़ गये. बीते 10 वर्षों में महिलाओं के विरुद्ध अपराध में 75 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई है.

हमें स्वीकारना होगा कि सारे मानवीय संबंधों में क्रूरता बढ़ती जा रही है. जहां तक महिलाओं का प्रश्न है, तो उनके खिलाफ बढ़ती नृशंसता का कारण है उनका सामने से पलटवार करने की स्थिति में नहीं होना. इसी कारण उनके व बच्चों के साथ कहीं ज्यादा हिंसक अपराध को अंजाम दिया जाता है. जैसा दिल्ली के कंझावला मामले में हुआ. इस तरह की बर्बरता को अंजाम देने वाले लोगों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति को लेकर सरकारों को अपनी जवाबदेही समझनी चाहिए और संवेदनशील होना चाहिए. पर देखने में आता है कि जब भी इस तरह की कोई घटना घटती है, तो विभिन्न एजेंसियां, जिन्हें महिला सुरक्षा के लिए काम करना चाहिए, वे लड़कियों को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश में जुट जाती हैं. जबकि उनकी प्राथमिकता यह पता करना होना चाहिए कि अपराध किसने किया, उसने इतनी नृशंसता करने की कैसे सोची और अपराधी को सजा मिले. इस कारण कानून-व्यवस्था को लेकर अपराधियों के मन में किसी तरह का डर-भय नहीं रह गया है.

निर्भया केस के बाद जब पूरे देश में आंदोलन खड़ा हुआ, तो जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशों के आधार पर बलात्कार के कानून में बदलाव हुआ. इसी तरह, दहेज के खिलाफ आंदोलन के बाद हर जिला में दहेज विरोधी सेल गठित किये गये. कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए समितियां बनीं. घरेलू हिंसा के खिलाफ हर जिले में प्रोटेक्शन ऑफिसर की नियुक्ति का कानून बना. ये सब कानून जन दबाव में बने तो हैं, पर उनको लागू करने के लिए जिस तरह की इच्छाशक्ति और बजट की जरूरत है, उससे हाथ खींच लिया जाता है.

ऐसे में महिलाओं को न्याय मिल ही नहीं पाता है. अपराध और अपराधियों के खिलाफ जिस तरह का एक वातावरण बनना चाहिए, उसका देश में अभाव नजर आता है. ऐसी परिस्थिति में महिला संगठनों और सामाजिक संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. उन्हें बड़े आंदोलनों के जरिये सरकार की हर कदम पर जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी. दरअसल, कानून का दुरुपयोग और महिलाओं के खिलाफ हिंसा व नृशंसता को लेकर सरकार, एजेंसियों का संवेदनशील नहीं होना, इस तरह के अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं.

अपराध में कमी के लिए समाज को महिला अपराधों को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी. उन्हें अपराध के खिलाफ आगे आना होगा, न कि चुपचाप अपराध होते देखते रहना होगा. सरकार की जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी पड़ेगी. कानून लागू करवाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है, तो उसे यह जिम्मेदारी पूरी सक्रियता से निभानी होगी. महिलाओं की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक बजट का आवंटन करना होगा.

ऐसे अपराधों पर लगाम तभी लगेगी जब पुलिस जांच प्रक्रिया में बदलाव होगा. वर्तमान जांच प्रक्रिया में बहुत सी कमियां हैं. पुलिस के पास संसाधनों, उपकरणों की भी कमी है. ऐसे में कई बार वे सीमाओं में बंध जाते हैं. अपराध पर लगाम के लिए पुलिस की जांच प्रक्रिया को कुशल और प्रभावशाली बनाना होगा. भ्रष्टाचार भी कानून-व्यवस्था को बेअसर कर देती है.

सो इसे समाप्त करना होगा. तभी सही दिशा में जांच होगी और पीड़िता को न्याय मिल सकेगा. न्याय मिलने में देरी भी अपराध बढ़ने का एक प्रमुख कारण है. देश में न केवल जजों की संख्या, बल्कि उनके नीचे कार्यरत कर्मियों की संख्या भी बहुत कम है. न्यायपालिका को भी पूरी सक्रियता के साथ अपना काम करना होगा.

महिलाओं को भी परिस्थितियों से समझौता करने के बजाय मुखर होकर अपराध का विरोध करना होगा. इस बात को समझना होगा कि जो जितना अधिक कमजोर होता है, उसको उतना ही ज्यादा सताया जाता है. उन्हें एकजुट होना होगा. जब महिलाएं एकजुट होंगी, तभी अपने प्रति हिंसक प्रवृत्ति पर लगाम लगवा पायेंगी. महिलाएं जागरूक बनें. उनके हित में कौन-कौन से कानून बने हैं, कौन-कौन सी संस्थाएं हैं, जो उनकी मदद कर सकती हैं, उसके बारे में जानें. सामाजिक और सार्वजनिक क्षेत्र में भी अपनी थोड़ी भागीदारी बढ़ाएं.

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