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संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता बैठक (COP15) कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में शुरू

COP15 संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता बैठक 7 दिसंबर से 19 दिसंबर तक कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में चलेगी . दुनिया के 600 से ज्यादा राजनीतिक नेताओं, नागरिक समाज संगठन, वैज्ञानिक और स्थानीय समुदायों, इसमें हिस्सा लेने के लिये मांट्रियल में जमा हुए हैं .

जब से यह दुनिया बनी है तब से आज तक इस धरती पर पाँच महा विलुप्तियां हुई है और अब ऐसा लगता है कि जलवायु परिवृतन के चलते हम छठी महाविलुप्ति के कगार पर खड़े हैं, यह विचार COP15 जिसे जुरासिक COP, संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता बैठक भी कहा जाता है की आज पहल पर उभर कर सामने आये.

COP15 संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता बैठक 7 दिसंबर से 19 दिसंबर तक कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में चलेगी . दुनिया के 600 से ज्यादा राजनीतिक नेताओं, नागरिक समाज संगठन, वैज्ञानिक और स्थानीय समुदायों, इसमें हिस्सा लेने के लिये मांट्रियल में जमा हुए हैं . इसका मक़सद एक नए ग्लोबल बायो डाइवर्सिटी फ्रेमवर्क या वैश्विक जैव विविधता ढांचे (GBF) (जीबीएफ) को अपनाने का ढांचा बनाना है जो दुनिया में पाये जाने वाले पशु पक्षी, कीड़े पतंगे, वनस्पति, फूल पौधों की किस्में, जड़ी बूटियों की हिफाजत कर सके और उन्हें क्लाइमेट चेंज की वीजे से होने वाले विनाश से बचा सके .

आखिरी महाविलुप्ति 65.5 मिलियन वर्ष पहले हुई थी जिसने डायनासोर को अस्तित्व से मिटा दिया था. विशेषज्ञ अब मानते हैं कि पिछली सभी महाविलुप्ति की घटनाओं की वीजे धरती का अत्यधिक बढ़ता तापमान, समुद्र के स्तर में वृद्धि और एक विशाल ज्वालामुखी विस्फोट जैसी विनाशकारी हालत थे जिनसे एक बार फिर यह दुनिया रूबरू हो रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि अब तक जितनी भी महाविलुप्ति हुई उनका निशान उस वक्त में पायी जाने वाली सर्वाधिक प्रजाति थी अब अगर ऐसा हुआ तो इस छठी महा विलुप्ति का निशाना खुद इंसान होगा . उसका अपना अस्तित्व इस महा विनाश का निशाना बन सकता है

वर्तमान विलुप्ति दर को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन द्वारा मानव गतिविधि द्वारा धकेला जा रहा है जो ग्लोबल वार्मिंग, अत्यधिक तापमान, समुद्र के स्तर में वृद्धि, लोगों के विस्थापन और बाढ़ का कारण बन रहीं हैं. अच्छी खबर यह है कि हम इस व्यापक विलुप्ति को रोक सकते हैं और इसका मतलब है कि मानव गतिविधि भी इस प्रवृत्ति को उलट सकती है.

इंसानी ज़िंदगी और ख़ुशहाली के लिए जैव विविधता ज़रूरी है. अगर पेड़ पौधे पशु पक्षी वनस्पति हैं तो हम भी हैं और यह नहीं तो हम भी नही रहेंगे. 1992 में रियो अर्थ समिट में 150 देशों के प्रतिनिधियों ने जैव विविधता पर कन्वेंशन सस्टेनेबल विकास को बढ़ावा देने की बात पर रज़ामंदी जतायी थी. यह कन्वेंशन मानता है कि जैव विविधता -पौधों, जानवरों और सूक्ष्म जीवों और उनके पारिस्थितिक तंत्र से बढ़कर है – यह लोगों और खाद्य सुरक्षा, दवाओं, साफ हवा और पानी, आश्रय, और रहने के लिए एक साफ और स्वस्थ वातावरण की हमारी जरूरत और निर्भरता की बात है. क्योंकि मानवीय गतिविधियों केचलते होने वाले बेतहाशा उत्सर्जन के कारण प्रजातियों का विलुप्त होना खतरनाक दर से जारी है.

जहां तक भारत की बात है, भारत में 18 बायोस्फीयर रिजर्व हैं, जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) द्वारा पारिस्थितिकी के कारण उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के रूप में नामित किया गया है. ये नीलगिरि (तमिलनाडु, केरेला और कर्नाटका), नंदा देवी (उत्तराखंड), नोकरेक (मेघालय), निकोबार द्वीप, मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु), मानस (असम), सिमपाल (ओडिशा) सुंदरबन (पश्चिम बंगाल), पन्ना (मध्य प्रदेश), शेषचलम हिल्स (आंध्र प्रदेश), कच्छ (गुजरात), अमरकंटक (छत्तीसगढ़), अगस्त्यमलाई (केरेला), खंगचेनज़ोंगा (सिक्किम), पचमढ़ी (मध्य प्रदेश), देहंग दिबांग (अरुणाचल प्रदेश), डिब्रू सैखोवा (असम) हैं.

आईयूसीएन रेड सूची (IUCN RED लिस्ट) 2021 के अनुसार,कुल 199 प्रजातियाँ भारत में गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों( क्रिटिकली एनडेंजेरड) के अंतर्गत हैं. 2021 के बाद से आईयूसीएन रेड सूची में भारत की गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की संख्यामें 20 और जुड़ गयी है, चौदह पशु प्रजातियाँ और छह पौधों की प्रजातियां जिनमें असम रूफ्ड टर्टल, एशियन जायंट सोफ्टशेल टर्टल, ब्लैक सॉफ्टशेल टर्टल, गंगा शार्क, बंगाल गिटारफिश, शर्ट टेल विपरे आदि शामिल हैं.

भारत में एनिमल किंगडम में अब तक छह विलुप्त प्रजातियां हैं – भारतीय एशियाई चीता, भारतीय जवन गैंडा, गुलाबी सिर वाली बत्तख, भारतीय औरोक्स, हिमालयी बटेर, एशियाई सीधे टस्कड हाथी. पांच गंभीर रूप से लुप्तप्राय जानवर हैं- रॉयल बंगाल टाइगर, घड़ियाल, एशियाई शेर, लाल पांडा और एक सींग वाला गैंडा. इनमें कीट पतंगे वनस्पति जेडी बूटियाँ शामिल नहीं हैं . जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान को जल्द ही नहीं रोका गया तो इन 18 जैवमंडलों की पारिस्थितिकी और विविधता नष्ट हो जाएगी. सुंदरबन पहले से ही जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है. मॉन्ट्रियल संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन से 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता ढांचे को अपनाने के नेतृत्व की उम्मीद है.

लेखक : डॉ सीमा जावेद

(पर्यावरणविद एवं जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा की कम्युनिकेशन एक्सपर्ट)

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