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Thursday, March 28, 2024

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चुनौती को अवसर में बदलें

विकास की नीति कुछ ऐसी बनानी पड़ेगी कि केंद्रीकृत उद्योग का विकास अब विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था के तौर पर हो. उत्पादन का विकेंद्रीकरण कर मजदूर के गांव स्तर पर लाया जाए.

प्रो नंद कुमार यादव, कुलपति, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय

delhi@prabhatkhabr.in

गिरती हुई अर्थव्यवस्था और मजदूरों का अपने राज्यों को लौटना सरकारों के समक्ष निस्संदेह एक चुनौती है. इसका सामना करने के लिए हमने आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य बनाया है और इस लक्ष्य की प्राप्ति अर्थव्यवस्था का विकेंद्रीकरण कर किया जा सकता है. अर्थव्यवस्था में श्रमिक वर्ग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. आजादी के बाद जिस प्रकार से कारखाना आधारित आर्थिक नीतियों को बढ़ावा दिया गया, उसके परिणामस्वरूप विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था का स्वाभाविक रूप से केंद्रीकरण होता गया. उद्योग आधारित शहर रोजगार प्राप्त करने के प्रमुख केंद्र के तौर पर उभरे. दूसरी तरफ परंपरागत व्यवसायों को अपेक्षाकृत न्यून सरकारी सहयोग मिलने के कारण इनमें कार्यरत मजदूरों को रोजगार के लिए पलायन कर औद्योगिक शहर या आधुनिक प्रणाली पर आधारित कृषि व्यवस्था वाले राज्यों में जाने को विवश कर दिया.

पिछले सात दशकों से झारखंड, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों के अधिकतर ग्रामीण मजदूर परिवारों का जीवन प्रवासी श्रमिकों के भेजे मेहनताने पर आश्रित हो चुका है. दूसरी तरफ केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था की गतिशीलता भी इन्हीं मजदूरों पर आश्रित हो चुकी है. कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था गरीब राज्यों से आये मजदूरों और उद्योगों के पारस्परिक सहयोग से चल रही थी. लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण कारखाने अब पहले की तरह श्रमिक संख्याबल के साथ काम करने में असमर्थ हैं. परिणामतः बड़ी संख्या में मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं और उद्योग बंद हो चुके हैं या बंदी के कगार पर हैं. यह स्थिति अर्थव्यवस्था के साथ कानून-व्यवस्था के लिए भी चिंताजनक है.

मजदूर जिन राज्यों में लौट रहे हैं, वहां पहले से ही गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली है. सरकार लगातार दावे कर रही है कि मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार देंगे. लेकिन चिंताजनक सवाल यह है कि पिछले सात दशकों से जो उद्योग-धंधे विकसित हुए थे, वे अब कैसे पहले की भांति अर्थव्यवस्था में योगदान कर सकेंगे? वापस आ रहे मजदूरों में कुशल और अकुशल दोनों मजदूर हैं, अकुशल मजदूर तो मनरेगा या नयी योजनाओं में कार्य करने लगेंगे, असली चिंता तो कुशल मजदूरों की है जो एक ही प्रकार के काम में दक्ष हैं.

विकास की नीति कुछ ऐसी बनानी पड़ेगी कि केंद्रीकृत उद्योग का विकास अब विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था के तौर पर हो. अर्थात, कंपनियों के उत्पादन का विकेंद्रीकरण कर मजदूर के गांव स्तर पर लाया जाए. इससे मजदूरों को दक्षता के अनुरूप कार्य करने का अवसर मिलेगा तथा कंपनियों की मजदूरों से संबंधित समस्या का समाधान भी हो सकेगा. केंद्र सरकार के राहत पैकेज का उपयोग इस दिशा में एक बेहतर विकल्प हो सकता है. विकेंद्रीकृत प्रणाली का लाभ यह भी है कि इससे हमारे उद्योग पहले की तरह अर्थव्यस्था में योगदान कर सकेंगे. विकेंद्रीकरण के विकास में हमें इस बात का अनिवार्य रूप से ध्यान रखना होगा कि निर्माण भारत में ही हो.

इसकी सफलता में निर्णायक योगदान बेहतर परिवहन व्यवस्था का होगा ताकि उत्पादों को निर्धारित समय में एकत्र कर बाजार पंहुचाया जा सके. इससे उत्पादन लागत बढ़ने की संभावना है, लेकिन इसका समाधान भी हो सकता है. गांव में ही रोजगार मिलने से कंपनियों को कम मूल्य पर मजदूर उपलब्ध होंगे. प्रवासी जीवन के अतिरिक्त खर्चों से मजदूरों को छुटकारा भी मिलेगा. सरकार को भी अपेक्षाकृत कम खर्चीली परिवहन व्यवस्था को बढ़ावा देना होगा. इसके लिए जलीय परिवहन मार्ग का विस्तार किया जा सकता है. पूर्व में भी नदियों को जोड़ने की योजना पर चर्चा हो चुकी है.

विकेंद्रीकरण के सकारात्मक सामाजिक परिणाम भी दिखेंगे. भारतीय संस्कृति में संस्कार का प्रथम पाठ परिवार में पढ़ाया जाता है. पलायन कर चुके परिवारों के बच्चों को अधिकांशतः माता का स्नेह ही मिल पाता है, लेकिन पिता के अनुशासन से वे वंचित रह जाते हैं. मजदूरों के लगातार बाहर रहने से समाज से उनका जुड़ाव कम होने लगता है. ऐसे में अब अगर मजदूरों को उनके गांवों में ही रोजगार मिल गया, तो हमारे बच्चे, जो अब तक अभिभावक के पास समयाभाव या साथ न रहने के कारण पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होते रहे हैं, अभिभावकों के सान्निध्य में भारतीय संस्कृति के और करीब आ सकेंगे.

बाहर से आ रहे परिवार अब स्थायी रूप से गांव में रहेंगे, तो फिर से उनका परिवार गांव-समाज से जुड़ जायेगा. अब पुनः लौट कर आ रहे कुशल और अकुशल दोनों मजदूरों को अगर उनकी योग्यता के अनुरूप रोजगार उपलब्ध करवाने में सरकारें सफल हो जाती हैं, तो जिस कानून-व्यवस्था को लेकर अब व्यक्त की जा रही चिंता का समाधान भी अर्थव्यस्था को गति देने के साथ हो सकता है.

वर्तमान समय में अर्थव्यवस्था चिंता का विषय अवश्य है. लेकिन अगर हमने इस चुनौती का सामना आर्थिक प्रणाली के विकेंद्रीकरण के साथ कर लिया, तो इसके न केवल सकारात्मक आर्थिक परिणाम सामने आयेंगे, बल्कि भारतीय संस्कृति और कानून-व्यवस्था के प्रति भी लोगों का विश्वास बढ़ेगा. (ये लेखक के निजी िवचार हैं़)

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