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Explainer : रोहिंग्याओं को बसाने के लिए क्यों नहीं मिल रही जमीन, बड़े से बड़े संगठन लगे जुगाड़ में

म्यांमार में एक क्रूर सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए 700,000 से अधिक जातीय रोहिंग्या म्यांमार से विस्थापित होकर बांग्लादेश की ओर पलायन कर गए. उनके इस विस्थापन को पांच साल हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उनकी दुर्दशा को समाप्त करने में मदद करने की अपील की है.

नई दिल्ली : रोहिंग्या मुसलमानों का विस्थापन भारतीय उपमहाद्वीप के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं. बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में विशाल शिविर में करीब 10 लाख से अधिक शरणार्थी रहते हैं, जिसमें से करीब 1.5 लाख से अधिक रखाइन के रोहिंग्या मुसलमान शरण लिये हुए हैं. इसके अलावा, भारत और श्रीलंका समेत दुनिया के कई देशों में ये रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के तौर पर अपना जीवन गुजार रहे हैं. फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट होने के बाद म्यांमार में मानवीय, मानवाधिकार और सुरक्षा की स्थिति तेजी से बिगड़ गई. इस कारण इन रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी की संभावनाएं पहले के मुकाबले और कम हो गईं. संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, महासचिव एंटोनियो गुटारेस रोहिंग्या मुसलमानों के विस्थापन को रोकने के लिए व्यापक समाधान तलाश रहे हैं. आइए, जानते हैं कि रोहिंग्या मुसलमानों के विस्थापन को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की ओर से व्यापक समाधान कैसे तलाशा जा रहा है.

महत्वपूर्ण भागीदारी

संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने देश के कई जातीय और धार्मिक समूहों के बीच एक समावेशी भविष्य के लिए निर्विवाद आकांक्षाओं को नोट करते हुए रेखांकित किया है कि रोहिंग्या लोगों की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी संकट के म्यांमार के नेतृत्व वाले समाधान का एक अंतर्निहित हिस्सा है. संयुक्त राष्ट्र और उसके भागीदारों के लिए प्रभावित क्षेत्रों में अधिक मानवीय और विकास पहुंच महत्वपूर्ण है. म्यांमार में किए गए सभी अंतरराष्ट्रीय अपराधों के अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. पीड़ितों के लिए न्याय देश और उसके निवासियों के लिए एक स्थायी और समावेशी राजनीतिक भविष्य में योगदान देगा.

क्यों गहराया संकट

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के उच्चायुक्त (OHCHR) मिशेल बाचेलेट ने जिनेवा में अपने एक संबोधन में कहा म्यांमार की तातमाडॉ फोर्सेज ने दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और मध्य क्षेत्रों के आबादी वाले इलाकों में नागरिकों के खिलाफ तेज से अभियान चलाया. यहां तक ​​कि 18 महीने तक चलाए गए अभियान के बाद लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सदन में तख्तापलट दिया. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि गांवों और नागरिक आबादी वाले क्षेत्रों के खिलाफ हवाई कार्रवाई और तोपखाने का तेजी से इस्तेमाल किया गया. इसके साथ ही, यह चेतावनी भी दी है कि हाल ही में रोहिंग्या के ऐतिहासिक पूर्व घर रखाइन में हिंसा की स्पाइक रिश्तेदार शांति को परेशान कर सकती है. रोहिंग्या समुदायों के लोगों को अक्सर तातमाडॉ और विद्रोही अराकान सेना के लड़ाकों के बीच पकड़ा गया है या सीधे ऑपरेशन में निशाना बनाया गया. आज आलम यह है कि 14 मिलियन से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को मानवीय सहायता की जरूरत है.

गुटारेस ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से की मदद की अपील

बता दें कि म्यांमार में एक क्रूर सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए 700,000 से अधिक जातीय रोहिंग्या म्यांमार से विस्थापित होकर बांग्लादेश की ओर पलायन कर गए. उनके इस विस्थापन को पांच साल हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उनकी दुर्दशा को समाप्त करने में मदद करने के लिए व्यापक, टिकाऊ और समावेशी समाधान खोजने की अपील की है.

बांग्लादेश की उदारता से ले सकते हैं सबक

म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष दूत नोलीन हेजर ने बांग्लादेश में अपने चार दिवसीय मिशन के दौरान रोहिंग्या मुसलमानों की वर्षगांठ पर कहा कि हम इसे एक भूला हुआ संकट नहीं बनने दे सकते. उन्होंने बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना को उनके नेतृत्व के लिए धन्यवाद दिया और बांग्लादेश की जनता और सरकार की उनके अपार योगदान के लिए संयुक्त राष्ट्र की गहरी प्रशंसा व्यक्त की. मानवीय संकट की घड़ी में म्यांमार से विस्थापित रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के तौर पर देश में शरण देना बांग्लादेश की उदारता पूरी दुनिया में एक मिसाल पेश करता है और इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सबक लेना चाहिए. हेजर ने अपने संबोधन में कहा कि संकट की घड़ी में रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति बांग्लादेश और मेजबान समुदायों की उदारता साझा करने के लिए अधिक अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रतिबद्धता की महत्वपूर्ण आवश्यकता दर्शाती है और यह सुनिश्चित करती है कि रोहिंग्या को भुलाया न जाए.

एकजुटता के साथ खड़े होने की जरूरत

म्यांमार में निर्वाचित सरकार और सैन्य बलों के संघर्ष में यौन हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैटन ने भी अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का आग्रह किया है और दुनिया के देशों से न्याय और निवारण तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों के रोहिंग्या पीड़ितों के साथ एकजुटता से खड़े होने की अपील की है, जो क्षेत्रीय शांति के लिए जरूरी है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 और 2018 में कॉक्स बाजार में शरणार्थी शिविरों की अपनी यात्राओं के दौरान मैंने महिलाओं और लड़कियों पर यौन हिंसा के प्रत्यक्ष निशान देखे. जिन महिलाओं से मैंने बात की, उन्होंने कहा कि वे अपराधियों को दंडित होते देखना चाहती हैं. वे सभी (बिना किसी अपवाद के) न्याय की मांग करते हैं.

कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान

बता दें कि म्यांमार या पुराने बर्मा के पश्चिमी छोर पर रखाइन राज्य स्थित है, जिसे अराकान भी कहते हैं. इस रखाइन या अराकान में 16वीं शताब्दी से ही मुस्लिम आबादी निवास करती आ रही है. 1826 में पहले एंग्लो-बर्मा युद्ध के बाद अराकान पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया. युद्ध में जीत के बाद अंग्रेजों ने बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) से मुसलमान मजदूरों को अराकान लाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे रखाइन में मुस्लिम मजदूरी की आबादी बढ़ती गई. बांग्लादेश से आकर रखाइन में बसी इसी मुस्लिम आबादी की रोहिंग्या कहा जाने लगा.

1982 में समाप्त किया गया नागरिक का दर्जा

1948 में म्यांमार पर से ब्रिटिश शासन का अंत हुआ और वह आजाद मुल्क के रूप में अस्तित्व में आया. तभी से यहां की बहुसंख्यक बौद्ध आबादी और मुस्लिम आबादी के बीच विवाद शुरू हो गया. रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल विन की सरकार ने 1982 में देश में नया राष्ट्रीय कानून लागू किया. इस कानून में रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया. तभी से म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती रही है. तब से रोहिंग्या बांग्लादेश और भारत में घुसपैठ करके यहां आते रहे हैं.

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2012 से ही रखाइन में जारी हैं सांप्रदायिक दंगे

21वीं सदी के दूसरे दशक के बाद 2012 में रखाइन में सांप्रदायिक दंगे हुए. इसके बाद यहां से रोहिंग्या मुसलमानों का विस्थापन और तेज हो गया. रखाइन में 2012 से ही सांप्रदायिक हिंसा जारी है. इस हिंसा में हजारों लोग मारे गए, तो लाखों विस्थापित भी हुए. 2014 में हुई जनगणना में म्यांमार सरकार के रखाइन के करीब 10 लाख लोगों को जनगणना में शामिल नहीं किया गया.

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